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अष्‍टावक्र महागीता-(प्रवचन-05)
अष्टावक्र की दृष्टि में—और वही शुद्धतम दृष्टि है, आत्यंतिक दृष्टि है—बंधन केवल मान्यता का है। बंधन वास्तविक नहीं है। रामकृष्ण के जीवन में ऐसा उल्लेख है कि जीवन भर तो उन्होंने मां काली की पूजा— अर्च…