प्रवचन-दसवां
न कोई लक्ष्य, न कोई प्रयास
( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)
पहला प्रश्नः
ओशो! झेन परम्परा है कि जब कोई भिक्षु अपनी शिक्षाएं देने बाहर जाता था तो उसके पूर्व उसे अपने सदगुरु के साथ दस वर्षों तक मठ में ठहरना होता था। एक बार एक भिक्षु ने मठ में दस वर्षों का समय पूरा कर लिया था। वह एक दिन भारी बरसात के दौरान अपने सदगुरु ‘नानइन’ से भेंट करने के लिए गया। उसका स्वागत करने के बाद नानइन ने उस से पूछा : ‘निसंदेह रूप से तुमने अपने जूते दालान में उतारे होंगे। तुमने अपने छाते के किस ओर जूते उतारे हैं’ एक क्षण के लिए भिक्षु हिचकिचाया और उसने महसूस किया कि वह प्रतिपल ध्यानपूर्ण नहीं था।
आपने हमें बतलाया है कि जीवन एक स्फुरण है, स्पंदन है : अंदर और बाहर, यिन और यांग, तो क्या हमें प्रत्येक क्षण सचेतन बने रहने का प्रयास करना होगा? अथवा क्या हम भी जीवन के साथ स्पंदित हो सकते हैं और क्या उस समय हमें प्रयास छोड़ देना चाहिए? Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-10)”