जीवन की खोज-(प्रवचन-04)

चौथा-प्रवचन-(प्रवेश

मेरे प्रिय आत्मन्!

सत्य के संबंध में, परमात्मा के प्रेम के संबंध में कुछ बीज आपके भीतर बो सकूं, कोई प्यास आपके भीतर जग जाए, कोई असंतोष आपके भीतर पैदा हो जाए, इसकी चेष्टा करता हूं। संतोष के लिए नहीं, असंतोष आपके भीतर पैदा हो, इसका प्रयास करता हूं। आप अशांत हो जाएं परमात्मा के लिए, सत्य के लिए एक, एक लपट की भांति, आग की भांति आपके भीतर कोई अभीप्सा चलने लगे। जो असंतुष्ट होता है, वह कभी संतुष्ट भी हो जाता है। लेकिन जो कभी असंतुष्ट ही नहीं होता, उसके संतोष के द्वार सदा के लिए बंद हैं। और जो प्यासा होता है उसे कभी पानी भी मिल जाता है और जो प्यासा ही नहीं होता वह पानी से सदा को वंचित रह जाता है। इन चार दिनों में उसी प्यास के संबंध में थोड़ी सी बातें कहीं हैं। Continue reading “जीवन की खोज-(प्रवचन-04)”

जीवन की खोज-(प्रवचन-03)

तीसरा-प्रवचन-(द्वार)

मेरे प्रिय आत्मन्!

बीते दो दिनों में हमने सत्य की तलाश में दो सीढ़ियों की बातें कीं। एक तो जीवन में प्यास चाहिए, उसके बिना कुछ भी संभव नहीं होगा। और बहुत कम लोगों के जीवन में प्यास है। प्यास उनके ही जीवन में संभव होगी परमात्मा की या सत्य की जो इस जीवन को व्यर्थ जानने में समर्थ हो गए हों। जिन्हें इस जीवन की सार्थकता प्रतीत होती है, जब तक सार्थकता प्रतीत होगी, तब तक, तब तक वे प्रभु के जीवन के लिए लालायित नहीं हो सकते हैं। इसलिए मैंने कहा कि इस जीवन की वास्तविकता को जाने बिना कोई मनुष्य परमात्मा की आकांक्षा से नहीं भरेगा। और जो इस जीवन की वास्तविकता को जानेगा, वह समझेगा कि यह जीवन नहीं है, बल्कि मृत्यु का ही लंबा क्रम है। हम रोज-रोज मरते ही जाते हैं, हम जीते नहीं हैं। यह मैंने कहा। दूसरी सीढ़ी में हमने विचार किया कि यदि प्यास हो तो क्या अकेली प्यास मनुष्य को ईश्वर तक ले जा सकेगी? निश्चित ही प्यास हो सकती है और मार्ग गलत हो सकता है। उस स्थिति में प्यास तो होगी, लेकिन मार्ग गलत होगा तो जीवन और असंतोष और असंतोष से और भी दुख और भी पीड़ा से भर जाएगा। साधक अगर गलत दिशा में चले तो सामान्य जन से भी ज्यादा पीड़ित हो जाएगा, यह हमने दूसरे मार्ग के संबंध में विचार किया। Continue reading “जीवन की खोज-(प्रवचन-03)”

जीवन की खोज-(प्रवचन-02)

दूसरा-प्रवचन-(मार्ग)

मेरे प्रिय आत्मन्!

सत्य की खोज में या जीवन के अर्थ की खोज में, जो सबसे पहली बात, सबसे पहली भूमिका आवश्यक है, उसके संबंध में हमने विचार किया। जैसा मुझे दिखाई पड़ता है वह मैंने आपसे कहा, यदि प्यास न हो तो हमारे भीतर जीवन के अर्थ की प्राप्ति का कोई प्रारंभ भी नहीं हो पाता है। प्यास ही बीज है और प्यास का बीज ही विकसित होता है, अंकुरित होता है, मनुष्य के जीवन में सार्थक होता है। प्यास कैसे पैदा हो, उसके संबंध में थोड़ा सा विचार हमने किया।

जीवन को यदि हम देखें और जीवन की सच्चाई को देखें तो जिसे अब तक हम संतुष्टि मान रहे हैं, वहीं असंतोष के अंकुर शुरू हो जाएंगे। और जिन बातों से अभी हम तृप्त हैं, वे ही बातें हमें अतृप्त करती हैं। और जो अभी हमें प्रकाश मालूम हो रहा था, वही अंधकार मालूम होने लगेगा। Continue reading “जीवन की खोज-(प्रवचन-02)”

जीवन की खोज-(प्रवचन-01)

जीवन की खोज-(विविध)

पहला-प्रवचन-(प्यास)

मेरे प्रिय आत्मन्!

मैं आपका स्वागत करता हूं, इससे बड़े आनंद की और कोई बात नहीं हो सकती कि कुछ लोग परमात्मा में उत्सुक हों। कुछ लोग जीवन के सत्य को और सार्थकता को जानने के लिए प्यासे हों, अगर सच में आपकी कोई प्यास है, कोई आकांक्षा है, जीवन को जानने के लिए कोई हृदय में पीड़ा है तो मैं स्वागत करता हूं। यह भी हो सकता है कि बहुत लोग मात्र सुनने को आए हों, यह भी हो सकता है कि थोड़ा समय हो, और उसे व्यतीत करने को आए हों। तो भी मैं उनका स्वागत करता हूं। इस दृष्टि से स्वागत करता हूं कि कई बार अनायास ही हम जिन सत्यों के लिए तैयार नहीं दिखाई पड़ते हैं, वे भी हमारे हृदय में…मैंने कहा कई बार बिल्कुल अनायास ही कोई सत्य हृदय के किसी तार को झनझना देता है। और हम जिसके लिए पहले से तैयार भी नहीं थे, उसकी तैयारी का प्रारंभ हो जाता है। Continue reading “जीवन की खोज-(प्रवचन-01)”

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