जीवन गीत-(प्रवचन-05)

जीवन गीत-ओशो

प्रवचन-पांचवां

एकांत का मूल्य

तीन दिनों के शिविर की अंतिम चर्चा है, कुछ थोड़ी सी ऐसी जरूरी बातें जो तुम्हारे लिए
उपयोगी हो सकें उन पर भी बात करूंगा।

एक तो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उन सभी लोगों के लिए जिनके मन में परमात्मा कोजानने की कोई भी प्यास जगी हो- या परमात्मा की प्यास उसे न कहें, जिनके हृदय में शांत होने की आकांक्षा पैदा हुई हो- या शांति की आकांक्षा भी उसे न कहें, जिनके हृदय में आनंद को उपलब्ध करने की अभीप्सा पैदा हुई हो उन सभी के लिए कुछ बहुत आधारभूत बातें जरूरी हैं। यदि उन बातों पर ध्यान न हो तो इस दिशा में- आनंद की, शांति की या परमात्मा की दिशा में- कोई भी प्रयत्न सफल नहीं हो सकता है। Continue reading “जीवन गीत-(प्रवचन-05)”

जीवन गीत-(प्रवचन-04)

जीवन गीत-ओशो

प्रवचन-चौथा
ध्यान का द्वार:सरलता

बीते दो दिनों में कुछ थोड़ी सी बातें मैंने तुमसे कही हैं।

कैसे हम अपने जीवन को निरंतर सत्य के सौंदर्य के निकट ले जा सकें कैसे हमारा जीवन एक सार्थकता बन जाए, कैसे अंत मृत्यु को हम विजय कर सकें और परमात्मा का दर्शन हो सके बस इस संबंध में थोड़े से विचार कहे।

आज किस भांति हमारा मन संपूर्णतया दर्पण की भांति निर्मल बन सकता है, उसके थोड़े से सूत्र और तुमसे कहूंगा।

एक छोटी सी कहानी से मैं शुरू करूं। Continue reading “जीवन गीत-(प्रवचन-04)”

जीवन गीत-(प्रवचन-03)

जीवन गीत-ओशो

प्रवचन-तीसरा

विचारों से लड़नामत, देखना

मैं समझता हूं कि कोई और प्रश्न नहीं हैं। जो प्रश्न पूछे हैं, कुछ प्रश्न दोपहर भी किसी नेपूछे थे और एक-दो प्रश्न कल के भी बिना उत्तर के रह गए हैं।

प्रश्नों के संबंध में सबसे पहली बात तो यह जाननी जरूरी है कि जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है उसके संबंध में किसी दूसरे से कोई भी उत्तर नहीं पाए जा सकते हैं। और जोभी उत्तर दूसरे से पाए जा सकते हैं वे भीतर जाकर न तो समाधान बनते हैं और न मनुष्यकी उलझन को हल कर पाते हैं। ठीक-ठीक जीवन के उत्तर तो खुद ही खोजने होते हैं – श्रम से साधना से। खुद ही उनके उत्तर पाने पड़ते हैं। Continue reading “जीवन गीत-(प्रवचन-03)”

जीवन गीत-(प्रवचन-02)

जीवन गीत-(विविध) ओशो

प्रवचन-दूसरा

ध्यान आँख के उपाय है

 

बहुत से प्रश्न आए हैं। धीरे- धीरे उत्तर दूंगा। अगर कोई आज छूट जाएगा तो परेशान न
हों, कल या परसों उस पर बातें हो जाएंगी।

 

सबसे पहले तो : ईश्वर सगुण है या निर्गुण? ईश्वर
है या नहीं है? ईश्वर में विश्वास मैं करता हूं या
नहीं करता हूं? या किस भांति के ईश्वर में
विश्वास करता हूं? इस भांति के जो एक-दो प्रश्न
हैं उनको मैं लूंगा।
Continue reading “जीवन गीत-(प्रवचन-02)”

जीवन गीत-(प्रवचन-01) 

जीवन गीत-(विविध)  ओशो

 जीवन की भूमि

पहला प्रवचन

मनुष्य का जीवन जन्म से उपलब्ध नहीं होता है। जन्म के बाद तो अवसर मिलता है कि हम जीवन का निर्माण करें। लेकिन जो लोग जन्म को ही काफी समझ लेते हैं उनका जीवन व्यर्थ हो जाता है। इस संबंध में थोड़ी सी बातें मैंने कल तुमसे कहीं। यह भी स्मरण दिला देना उपयोगी है और उसके बाद ही आज की चर्चा मैं प्रारंभ करूंगा कि जन्म के बाद जिस जीवन को हम वास्तविक जीवन मान लेते हैं वह धीरे- धीरे मरते जाने के सिवाय और कुछ भी नहीं है। उसे जीवन कहना भी कठिन है। जो जानते हैं वे उसे धीमी मृत्यु ही कहेंगे। जन्म के बाद तुम्हें स्मरण होना चाहिए कि हम रोज-रोज धीरे- धीरे मरते जाते हैं। मृत्यु अचानक नहीं आती है। वह एक लंबा विकास है। जन्म के बाद अगर कोई व्यक्ति सत्तर वर्ष जीता है, तो सत्तरवें वर्ष पर अचानक मृत्यु नहीं आ जाती है। Continue reading “जीवन गीत-(प्रवचन-01) “

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