कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-10)

मीन जायकर समुंद समानी–(प्रवचन–दसवां)

कानो सुनी सो झूठ सब-(संत दरिया दास)

दिनांक:२०. ७. १९७७,  श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्न सार:

1–संन्यास मनुष्य की संभावना है या नियति?

2–झूठ इतना प्रभावी क्यों हैं?

3–प्रार्थना सम्राट की तरह कैसे की जाए?

4–क्या प्रेम की जिज्ञासा ही अद्वैत प्रेम के अनुभव में परिणत होती है? Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-10)”

कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-09)

पारस परसा जानिए–(प्रवचन–नौवा  )

दिनांक १९.७.१९७७,  श्री रजनीश आश्रम, पूना

सारसूत्र-

पारस परसा जानिए, जो पलटे अंग अंग।

अंग अंग पलटे नहीं, तो है झूठा संग।।

पारस जाकर लाइए जाके अंग में आप।

क्या लावे पाषाण को घस-घस होए संताप।।

दरिया बिल्ली गुरु किया उज्वल बगु को देख।

जैसे को तैसा मिला ऐसा जक्त अरू भेख।।

साध स्वांग अस आंतरा जेता झूठ अरु सांच। Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-09)”

कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-08)

निहकपटी निरसंक रहि–(प्रवचन–आठवां)

दिनांक: १८.७.१९७७, श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्न-सार:

1–अगर कान से सुना सब झूठ है तो फिर सदगुरु के उपदेश का प्रयोजन क्या?

2–समझ जीवन में प्रामाणिकता कैसे लाए?

3–आपसे मुलाकात होने का अनुभव–सपना है या सच? Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-08)”

कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-07)

दरिया लच्छन साध का–(प्रवचन– सतावां)

दिनांक: १७.७.१९७७, श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सारसूत्र:

दरिया लच्छन साध का क्या गिरही क्या भेख।

निहकपटी निरसंक रहि बाहर भीतर एक।

सत सब्द सत गुरुमुखी मत गजंद-मुखदंत।

यह तो तोड़ै पौलगढ़ वह तोड़ै करम अनंत।

दांत रहै हस्ति बिना पौल न टूटे कोए।

कै कर थारै कामिनी कै खेलारां होए।

मतवादी जाने नहीं ततवादी की बात।

सूरज ऊगा उल्लुआ गिन अंधारी रात।। Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-07)”

कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-06)

शून्य-शिखर में गैब का चांदना–(प्रवचन — छट्ठवां)

दिनांक: १६.७.१९७७, श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्न सार:

1–हरि से लगे रहो रे भाई

2–अष्टावक्र, कृष्णमूर्ति और बोधिधर्म के दर्शन का नामकरण क्या करेंगे?

3–शून्य के शिखर में गैब का चांदना

4–ध्यान से उदभूत नशे को कैसे सम्हालें? Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-06)”

कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-05)

अनहद में बिसराम–(प्रवचन–पांचवां)

दिनांक: १५.७.१९७७, श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सारसूत्र:

रतन अमोलक परख कर रहा जौहरी थाक।

दरिया तहां कीमत नहीं उनमन भया अवाक।।

धरती गगन पवन नहीं पानी पावक चंद न सूर।

रात दिवस की गम नहीं जहां ब्रह्म रहा भरपूर।।

पाप पुण्य सुख दुख नहीं जहां कोई कर्म न काल।

जन दरिया जहां पड़त है हीरों की टकसाल।।

जीव जात से बीछड़ा धर पंचतत्त को भेख।

दरिया निज घर आइया पाया ब्रह्म अलेख।। Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-05)”

कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-03)

सूर न जाने कायरी–(प्रवचन: तीसरा)

दिनांक १३.७.१९७७  श्री रजनीश आश्रम, पूना

सारसूत्र:

पंडित ग्यानी बहु मिले बेद ग्यान परबीन।

दरिया ऐसा न मिला रामनाम लवलीन।।

वक्ता स्रोता बहु मिले करते खैंचातान।

दरिया ऐसा न मिला जो सन्मुख झेले बान।।

दरिया सांचा सूरमा सहै सब्द की चोट

लागत ही भाजै भरम निकस जाए सब खोट।।

सबहि कटक सूरा नहीं कटक माहिं कोई सूर।

दरिया पड़े पतंग ज्यों जब बाजे रन तूर।। Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-03)”

कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-02)

रंजी सास्तर ग्यान की–(प्रवचन: दूसरा)

दिनांक १२.७. १९७७  श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्न सार

1–गैर-पढ़े लिखे लोगों के मन पर शास्त्रों की धूल कैसे जमती है?

2–गुरु के निकट अपना हृदय खोलना इतना कठिन क्यों मालूम पड़ता है?

3–राम सदा कहत जाई, राम सदा बहत जाई?

4–क्या दादू की तरह आप भी सौ साल बाद की भविष्यवाणी करेंगे? Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-02)”

कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-01)

सतगुरु किया सुजान –(प्रवचन– पहला)

कानो सुनी सो झूठ सब-(संत दरिया)  ओशो 

दिनांक: ११.७.७७  श्री रजनीश आश्रम, पूना

सारसूत्र:

जन दरिया हरि भक्ति की, गुरां बताई बाट।

भुला उजड़ जाए था, नरक पड़न के घाट।

नहिं था राम रहीम का, मैं मतिहीन अजान।

दरिया सुध-बुध ग्यान दे, सतगुरु किया सुजान।।

सतगुरु सब्दां मिट गया, दरिया संसय सोग।

औषध दे हरिनाम का तन मन किया निरोग।।

रंजी सास्तर ग्यान की, अंग रही लिपटाय।

सतगुरु एकहि सब्द से, दीन्ही तुरत उड़ाय।।

जैसे सतगुरु तुम करी, मुझसे कछू न होए।

विष-भांडे विष काढ़कर, दिया अमीरस मोए। Continue reading “कानो सुनी सो झूठ सब-(प्रवचन-01)”

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