सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-10)

दसवां प्रवचन-(नीति: कागज का फूल)

दिनांक 20 सितम्बर सन् 1975,

श्री ओशो आश्रम पूना।

प्रश्न-सार:

1—आचरणवादी (बिहेवियरिस्ट) मनस्विदों का यह खयाल कि आचरण के प्रशिक्षण से आदमी को बेहतर बनाया जा सकता है, कहां तक सही है?

2—आरोपित दिखाऊ नीति से क्या समाज का काम चल जाता है?

क्या उसे धर्म से उदभूत नीति की और संतों की आवश्यकता नहीं रहती है? Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-10)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-09)

नौवां –प्रवचन-(भीतर के मल धोई)

दिनांक 19 सितम्‍बर सन् 1975,                         

श्री ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

ऊपरि आलम सब करै, साधु जन घट मांहि।

दादू ऐतां अंतरा, ताथैं बनती नाहिं।।

झूठा सांचा कर लिया, विष अमृत जाना।

दुख को सुख सबके कहै, ऐसा जगत दिवाना।।

सांचे का साहब धनी, समरथ सिरजनहार। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-09)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-08)

आठवां–प्रवचन-(प्रेम जीवन है)

दिनांक 18 सितम्‍बर सन् 1975,

श्री ओशो आश्रम पूना।

प्रश्न-सार

1—ध्यान, समाधि और प्रेम के अंतर्संबंध को समझाने की कृपा करें।

2—क्या प्रेम ही जीवन है? जीवंतता है?

3—जिसके प्रति भी समर्पण का भाव हो, चाहे परमात्मा के प्रति या गुरु के प्रति, उसके संबंध में कोई न कोई धारणा तो होगी ही। तो यह समर्पण भी एक धारणा के प्रति ही होगा न! Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-08)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-07)

सातवां -प्रवचन-(इसक अलह का अंग)

दिनांक 17 सित्‍मबर सन् 1975,

श्री ओशो आश्रम पूना।

सूत्र:

जब लगि सीस न सौंपिए, तब लगि इसक न होई।

आसिक मरणै न डरै, पिया पियाला सोई।।

दादू पाती प्रेम की, बिरला बांचै कोई।

बेद पुरान पुस्तक पढ़ै, प्रेम बिना क्या होई।।

प्रीति जो मेरे पीव की, पैठी पिंजर माहिं।

रोम-रोम पिव-पिव करै, दादू दूसर नाहिं।। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-07)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-06)

छठवां -प्रवचन-(तथागत जीता है तथाता में)

दिनांक 16 सित्‍मबर सन् 1975,

श्री ओशो आश्रम पूना।

प्रश्न-सार

1—क्या झेन संत बोकोजू का अपनी मृत्यु का पूर्व-नियोजन तथाता के विपरीत नहीं था?

2—दादू कहते हैं: ज्यूं राखै त्यूं रहेंगे, अपने बल नाहीं।

इसी तरह का एक पद संत मलूक का है–

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।

दास मलूका कहि गए, सब के दाता राम।।

क्या संत मलूक भी सही हैं? Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-06)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-05)

पांचवां प्रवचन-(समरथ सब बिधि साइयां)

दिनांक : 15 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रमपूना।

सारसूत्र:

समरथ सब बिधि साइयां, ताकी मैं बलि जाऊं।

अंतर एक जु सो बसे, औरां चित्त न लाऊं।।

ज्यूं राखै त्यूं रहेंगे, अपने बल नाहीं।

सबै तुम्हारे हाथि है, भाजि कत जाहीं।।

दादू दूजा क्यूं कहै, सिर परि साहब एक।

सो हमको क्यूं बीसरै, जे जुग जाहिं अनेक।। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-05)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन-(मृत्यु श्रेष्ठतम है)

दिनांक : 14 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रम,  पूना।

प्रश्न-सार:

1—कृष्ण पूर्णावतार कहे जाते हैं, पर सभी सयाने उनके प्रति एकमत क्यों नहीं हैं?

2—आपने कहा है, गुरु मृत्यु है, ध्यान मृत्यु है, समाधि मृत्यु है। जीवन में जो भी श्रेष्ठतम है उसे मृत्यु ही क्यों कहा गया है? Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-04)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-03)

तीसरा -प्रवचन-(मेरे आगे मैं खड़ा)

दिनांक : 13 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रमपूना।

सूत्र:

जीवत माटी हुई रहै, साईं सनमुख होई।

दादू पहिली मरि रहै, पीछे तो सब कोई।।

(दादू) मेरा बैरी मैं मुवा, मुझे न मारै कोई।

मैं ही मुझको मारता, मैं मरजीवा होई।।

मेरे आगे मैं खड़ा, ताथैं रह्या लुकाई।

दादू परगट पीव है, जे यहु आपा जाई।। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-03)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-02)

दूसरा -प्रवचन-(प्रार्थना क्या है?)

दिनांक : 12 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रम,  पूना।

प्रश्न-सार:

1—क्या प्रार्थना ही पर्याप्त है?

2—हम अंधे हैं, अंधकार में जी रहे हैं। प्रकाश का कुछ अनुभव नहीं।

ऐसी अवस्था में हम प्रार्थना क्या करें?

3—आपने कहा कि पाप की स्वीकृति से पात्रता का जन्म होता है।

लेकिन उसी से आत्मदीनता का जन्म भी तो हो सकता है! Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-02)”

सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-01)

पहला-प्रवचन-(तुम बिन कहिं न समाहिं)    

दिनांक : 11 सित्‍म्‍बर, सन् 1975,

श्री रजनीश आश्रम,  पूना।

 सारसूत्र:

तिल-तिल का अपराधी तेरा, रती-रती का चोर।

पल-पल का मैं गुनही तेरा, बक्सौ औगुन मोर।।

गुनहगार अपराधी तेरा, भाजि कहां हम जाहिं।

दादू देखा सोधि सब, तुम बिन कहिं न समाहिं।।

आदि अंत लौ आई करि, सुकिरत कछू न कीन्ह।

माया मोह मद मंछरा, स्वाद सबै चित दीन्ह।।

दादू बंदीवान है, तू बंदी छोड़ दिवान।

अब जनि राखौं बंदि मैं, मीरा मेहरबान।। Continue reading “सबै सयाने एक मत-(प्रवचन-01)”

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