पोनी-एक कुत्ते की आत्म कथा

पोनी–एक कुत्ते की आत्म कथा (सारांश)

समय-पोनी की आत्म कथा लिखने में मुझे 2006 से 2022 यानि की 16 साल लगे।

पहले मैं ‘’पोनी-एक कुत्ते की आत्म कथा’’ सबसे पहले मैं अपने छोटे बेटे को माध्यम बना कर इस आत्म कथा को लिखना चाहता था। फिर सोचा बच्चे से गहरी ध्यान की बात ठीक नहीं होंगी। या हो सकता बड़ा हो कर बच्चा ध्यान ही न करें। तब अचानक मेरे मस्तिष्क में विचार कौंधा की क्यों न सोचा की पिरामिंड को खूद ही अपनी कथा कहता हुआ दिखलाता हूं। परंतु कुछ क्षण बाद ही वह विचार थिर हो गया। क्योंकि वह तो थिर था। चल फिर नहीं सकता था। तब इसका नाम होता ‘’एक पिरामिंड की आत्म कथा’’-

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आर्य रेवत-कहानी-(मनसा दसघरा)

      आर्य रेवत-(ऐतिहासिक कहानी)

रेवत स्‍थविर सारि पुत्र को छोटा भाई था। राजगृह के पास एक छोटे से गांव का रहने वाला था। सारि पुत्र और मौद्गल्यायन स्‍थविर बचपन से ही संग साथ खेल और बड़े हुए। दोनों ने ही राजनीति ओर धर्म में  तक्ष शिला विश्‍वविद्यालय से शिक्षा प्राप्‍त की । और एक दिन घर परिवार छोड़ कर दोनों ही बुद्ध के अनुयायी हो गये। उस समय घर में बूढ़े माता-पिता, पत्‍नी दो बच्‍चे, दो बहने और छोटा रेवत था। इस बात की परिवार को दु:ख के साथ कही गर्व भी था की उनके सपूत ने बुद्ध को गुरु माना। पर परिवार की हालत बहुत बदतर होती चली गई। कई-कई बार तो खानें तक लाले पड़ जाते। जो परिवार गांव में कभी अमीरों में गिना जाता था। खुशहाल था। अब शरीर के साथ-साथ मकान भी जरजर हो गया था। Continue reading “आर्य रेवत-कहानी-(मनसा दसघरा)”

अंगुलीमाल-कहानी-(मनसा दसघरा)

 अंगुलीमाल-(ऐतिहासिक कहानी)

क्षशिला विद्यालय का प्रांगण, संध्‍या की बेला थी। सूर्य प्राचीर की उतंग पहाड़ियों  के पीछे छिपने के लिए ललाईत था। मानो दिन भर की इस धुल—धमास और भाग दौड़ के बाद वि‍श्राम के लिए आपने घर जा रहा हो। अभी भी उसकी कुछ किरणें लालिमा लिए हुए तक्ष शिला के प्रांगण में पसरी—फैली पड़ी थी। परन्‍तु वह शायद उन्‍हें बहका फुसला कर, अपने साथ ले जाने के लिए मना रहा था। और किरणें हे कि एक छोटे बच्‍चे की भाति‍ तक्षशिला का प्रांगण छोड़ कर जाने के लिए तैयार ही न हो रही थी। वह की हवा, मिट्टी, पानी, और वातावरण इतना भा गया था कि उनका वहां से जाने को मन ही न कर रहा था। दूर वृक्षों की परछाई लम्‍बी होने के साथ—साथ धुँधली भी होती जा रह थी। अंधेरी की चादर उन रंगों को धीरे—धीरे अपने चीवर से ढक रही थी। मानों अंधकार छद्म रूप से अपना जाल फैला रहा हो। एक बलिषट नवयुवक गुरु माता कि कुटिया के आँगन में फूल पौधों की नलाई—गुड़ाई  में इतना तल्‍लीन था। उसे सुर्य छिपने और घटती रोशनी का अहसास ही नहीं रहा था। जब अंदर से गुरु माता ने उसे आवाज लगाई, तब जाकर शायद उसकी तल्लीनता टूटी, और वह खुद से बुडबुडाय अरे इतनी देर हो गई आज तो संध्या भी नहीं की…. यह कह कर उसने हाथ का सामान एक और रखा और पोखरे की और हाथ पैर धोने के लिए चल दिया।

इस युवक का नाम अहिंसक है। वह गुरु मां की कुटिया के बाहर की वाटिका की देख भाल करता है। केवल अपने आनंद और प्रेम के लिए। आश्रम की और से उसके लिये ये बंदिश नहीं है। परंतु वह गुरु माता के स्नेह के कारण खाली समय पर ये सब कार्य करता है।

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अधूरी वासना—(कहानी) लेखक-ओशो

अधूरी वासना—(कहानी) लेखक–ओशो

( 28 नवंबर 1953 के नव भारत (जबलपुर) में इस संपादकीय टिप्‍पणी के साथ यह कहानी पहली बार प्रकाशित हुई थी)

      ‘’ अधूरी वासना ’’ लेखक की रोमांटिक कहानी है।

      भारत के तत्‍व दर्शन में पुनर्जन्‍म का आधार इस जीवन की अधूरी छूटी वासनायें ही है। कहानी के लेखक नह ऐ अन्‍य जगह लिखा है कि ‘’ शरीर में वासनायें है पर वह शरीर के कारण नहीं है, वरन शरीर ही इन वासनाओं के कारण से है।

      अधूरी वासनायें जीवन के उस पास भी जाती है। और नया शरीर धारण करती है। जन्‍मों–पुनर्जन्‍मों का चक्र इन अधूरी छूटी वासना ओर का ही खेल है, लेखक की इस कहानी का विषय केंन्‍द्र यही है।

      23 अगस्‍त 1984 को पुन: नव भारत ने इस के साथ इस कहानी को प्रकाशित किया: संपादकीय टिप्‍पणी:-

      श्री रजनीश कुमार से आचार्य रजनीश और भगवान रजनीश तक का फासला तय करने वाले आचार्य रजनीश का जबलपुर से गहरा संबंध रहा है। अपनी चिंतन धारा और मान्‍यताओं के कारण भारत ही नहीं समूचे विश्‍व में चर्चित श्री रजनीश ने आज से लगभग 31 वर्ष पूर्व नव भारतको एक रोमांटिक कहानी प्रकाशनार्थ भेजी थी और वह जिस संपादकीय टिप्‍पणी के साथ प्रकाशित की गई थी, 28 नवंबर 1953 के ‘नव भारत से लेकिर अक्षरशः: प्रकाशित कर रहे है।‘ Continue reading “अधूरी वासना—(कहानी) लेखक-ओशो”

10-मोती-कहानी-(मनसा दसघरा)

मोती— (दसघरा गांव की दस कहानी)

रोज की तरह आज भी सूर्य दिन भर की भाग दौड़ और धुल-धमास से बाद अपने घर विश्राम के लिए जाने की तैयारी कर रहा था। जाते-जाते उसे बादलों ने उसे चारो और से ऐसे घेर लिया था। मानों वह अपने उपर जमी घुल-धमास को झाड़-पोच सकने में उसकी मदद कर सके। ताकी इस क्रिया में उसे कोई निर्वस्त्र न देख सके। शायद वहीं धूल-धमास झाड़ कर गिरने के कारण जो जमा हो गई होगी वहीं उसके आस पास बादल होने का भ्रम दे रही थी।  घुल बिखर कर सुर्य की किरणों के कारण कैसे सुनहरे और नारंगी रंगों की छटा आसमान में बिखरे हुई थी । सूरज के घर जाने की तैयारी को देख पक्षियों ने चहक गान गाने शुरू कर दिये थे। पृथ्‍वी जो पूरा दिन आग की तरह जल रही थी अब उसने भी कुछ ठंडी उसास ली। पेड़ पौधे भी जो गर्मी के मारे अपने कोमल और नाजुक पत्तों को समेटे हुए थे। उन्‍हें भी अब लहराने और चहकनें के लिए प्रेरित करने लगे थे। हवा के कारण पूरा पेड़ कैसे झूमता इठलाता सा लग रहा था। गर्मी जरूर अभी थी पर हवा में थोड़ी ठंडक हो गई थे। Continue reading “10-मोती-कहानी-(मनसा दसघरा)”

01-पोकर कहानी-( मनसा दसघरा)

पोकर -(दसघरा गांव की दस कहानियां)

 बढ़ी अम्माँ बैल गाडियों की लीक के किनारे बैठी दूर तक देखने का असफल प्रयास रही थी, जैसे कोई मूर्ति थकी हारी बैठी हो राह के किनारे। उसका शरीर एक दम थिर था, बिना हलचल के शांत मौन मुद्रा लिए हुए पाषाण वत लग रही थी। कितनी-कितनी देर तक बिना हीले-डूले अपनी मुद्रा बदले वह इसी तरह वह सालों से बैठती आ रही थी। उसके चेहरे की झुर्रियां में दुख, पीड़ा और संताप की लकीरें साफ देखाई दे रही थी। सालों से अम्माँ इसी तरह नितान्त अकेली यहाँ आकर रोज बैठती थी गांव का प्रत्येक प्राणी जानता था कुछ उसे पागल भी कहने लगे थे। परंतु उसका सहास अदम्य था। दूर दराज उन धुँधली आँखों से क्षतिज का पोर-पोर निहार लेना चाहती थी। लीक पर उडी मिट्टी की धूल से अंबर में बनती मिटती धूधूंली उन अकृर्तियां सा ही उसके मन मष्तिष्क कुछ कुछ छपता मिटता रहता था। परंतु उसको न वह किसी पर विभेद होने देती थी ओर नहीं उसे कोई जान पाया। दूर कहीं जब कोई आहट या बेलों के पैरो से उड़ती घुल वह देखती तो तपाक से वह अपना दायां हाथ आँखों पर हाथ रख अपनी मुद्रा बदल कर उस और देखने की बेकार कोशिश करती थी। Continue reading “01-पोकर कहानी-( मनसा दसघरा)”

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