आपुई गई हिराय-(प्रवचन-10)

प्रवचन-दसवां-(अपने ही प्राणों को पढ़ो)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

दिनांक 10-फरवरी, सन् 1981,   ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार

01-*     जब-जब  आया  द्वार  तिहारे, बस  खाली  हाथ  चला।

      फूल न लगा एक हाथ भी, मन का माली साथ चला।

      तेरे  दया  भंडार  में  मेरे  लिए  ही  कुछ  कम  है।

      हाथ  पसारे  दुआ  मांगते  अब  मेरी  आंखें  नम  हैं।

      अब  तक  न  की  दया  मुझ  पे, बस  इतना  सा  गम  है।

      दया के सागर से अपनी ले, खाली प्याली साथ चला।

      जब-जब  आया  द्वार  तिहारे, बस  खाली  हाथ  चला। Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-10)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-09)

प्रवचन-नौवां-(प्रेम अर्थात परमात्मा)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

 दिनांक 09-फरवरी, सन् 1981,  ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार

01-*     है इश्क नहीं आसां, इतना तो समझ लीजे।

      इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।।

      क्या सच ही प्रेम इतना दुस्तर है?

02-*     आश्रम के संबंध में ऐसा कुप्रचार क्यों है? इस कुप्रचार के कारण अनेक लोग आपके सत्य

      और प्रसाद से वंचित हो रहे हैं। Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-09)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-08)

प्रवचन-आठवां-(सितारों के आगे जहां और भी हैं)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

 दिनांक 08-फरवरी, सन् 1981,  ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार:

01-*     मैं गुजरात का एक माननीय कथाकार हूं। मैंने अपने वाकचातुर्य से अपने आस-पास एक

      समूह खड़ा किया है। उसमें से पचास व्यक्ति तो ऐसे ही आए कि जिन्होंने मुझे ही भगवान

      माना और कहा कि गुरु-मंत्र दें। लेकिन उनको धोखा देने की मुझमें हिम्मत नहीं। और मेरे

द्वारा जब कोई सत्य को उपलब्ध होने की इच्छा रखते हैं, तब मुझे लगता है कि मैं क्या करूं!

      मुझे चाहने वाले आपके विचारों का सत्कार कर रहे हैं, संन्यास का नहीं। तो क्या बिना

      संन्यास लिए सत्य की उपलब्धि संभव है?

      मुझे क्या करना चाहिए? प्रकाश डालने की अनुकंपा करें।

02-*     आप क्या कर रहे हैं? आपका इस कलियुग में विशिष्ट कार्य क्या है? Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-08)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-07)

प्रवचन-सातवां-(निमंत्रण–दीवानों की बस्ती में)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

दिनांक 07-फरवरी, सन् 1981,  ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार

01-*     पुरुषस्य भाग्यं त्रिया चरित्रम्।

      देवो न जानाति कुतो मनुष्यः।।

      पुरुष का भाग्य, स्त्री का चरित्र देव भी नहीं जानते,

फिर मनुष्य के जानने का तो सवाल कहां।

      क्या आप इससे सहमत हैं? Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-07)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-06)

प्रवचन-छठ्टवां-(बांस की पोंगरी का संगीत)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

दिनांक 06-फरवरी, सन् 1981,  ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार

*01-     किं भूषणाद्भूषणमस्ति शीलं

           तीर्थं परं किं स्वमनो विशुद्धम्।

      किमत्र हेयं कनकं च कांता

           श्राव्यं सदा किं गुरुवेदवाक्यम्।।

      क्या आपको आद्य शंकराचार्य के इन उत्तरों पर भी कोई आपत्ति है?

      आप क्या कहेंगे, बताने की कृपा करें।

* 02-    मैं एक छोटा-मोटा कवि हूं। आपके पास बड़ी आशा लेकर आया हूं।

      आशीष दें कि मैं काव्य-जगत में खूब ख्याति पाऊं। Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-06)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-05)

प्रवचन-पांचवां-(अहंकार और समर्पण)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

दिनांक 05-फरवरी, सन् 1981,  ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार:

01;     अपने अहंकार को पूरी तरह और सदा के लिए मिटाने का सबसे तेज और सबसे खतरनाक

      ढंग क्या है?

02;     तुम्हारे कदमों में सर झुकाया था हमने,

      अब कहां सर झुकाऊं तुम्हें अपना खुदा बनाने के बाद? Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-05)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-04)

प्रवचन-तीसरा-(फिकर गया सईयो मेरियो नी)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

दिनांक 04-फरवरी, सन् 1981,  ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार:

1     आद्य शंकराचार्य की एक और प्रश्नोत्तरी उपस्थित करने के लिए क्षमा चाहता हूं–

      आपसे और शंकराचार्य से भी।

      उपस्थिते प्राणहरे कृतान्ते

           किमाशु कार्यं सुधिया प्रयत्नात्।

      वाक्कायचित्तेः सुधिया यमघ्नं

           मुरारिपादांबुजचिंतनं च।।

      इस प्रश्न का उत्तर देने की अनुकंपा करें।

2     दुख का मूल आधार क्या है? आनंद इतना दुर्लभ क्यों है?

      अनुकंपा करें और मुझे दुख-निरोध का उपाय समझाएं। Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-04)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-03)

प्रवचन-तीसरा-(सत्संग अर्थात आग से गुजरना)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

दिनांक 03-फरवरी, सन् 1981,  ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार/:

     01;आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले भगवान बुद्ध के एक श्रावक बिना भिक्षु हुए बुद्ध से जुड़े थे,

      02;और बुद्ध उन्हें भिक्षुओं से अधिक स्वस्थ और निकट मानते थे।

      03;जो लोग आपसे बिना संन्यास लिए शिष्यत्व स्वीकार करके आपसे जुड़ना चाहते हैं,

      04;आप उन्हें अपने साथ जोड़ कर उनका शिष्यत्व क्यों स्वीकार नहीं करते हैं?

      05;ऐसे लोगों में से एक मैं भी हूं। जरा मुझ पर भी दया करें। Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-03)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-02)

प्रवचन-दुसरा-(धर्म तो आंख वालों की बात है)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

दिनांक 02-फरवरी, सन् 1981,  ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार:

1-विश्वविख्यात धर्म-चिंतक पाल टिलिक कहते हैं कि अकेला होना हर आदमी की किस्मत में

      बदा है। हर आदमी अकेला रहने के लिए अभिशप्त है।

क्या यह सच है? क्या आप भी आदमी को उसके अकेलेपन से छुटकारा नहीं दिला सकते हैं?

2-बुल्लेशाह ने एक अक्षर का गुण गाया है। बुल्लेशाह कहते हैं: एक अक्षर पढ़ो–और छुटकारा है।

      समझाएं कि यह एक अक्षर क्या है और इसके पढ़ने से मुक्ति का क्या संबंध है। Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-02)”

आपुई गई हिराय-(प्रवचन-01)

प्रवचन-पहला –(नी सईयो मैं गई गुवाची)

आपुई गई हिराय-(प्रश्नत्तोर)-ओशो

दिनांक 01-फरवरी, सन् 1981,   ओशो आश्रम, पूना।

प्रश्न-सार

*     आज प्रारंभ होने वाली प्रवचनमाला का शीर्षक है: आपुई गई हिराय।

      संत पलटू के इस वचन का आशय हमें समझाएं।

*     “आपुई गई हिराय’–यह बात कुछ गूढ़ मालूम पड़ती है।

      क्या बात है, खोजने वाला खुद को पा लेता है या खो देता है?

      खोज का क्या अर्थ, जिसमें खोजी न रहा!

पहला प्रश्न: भगवान,

आज प्रारंभ होने वाली प्रवचनमाला का शीर्षक है: आपुई गई हिराय। निवेदन है कि संत पलटू के इस वचन का आशय हमें समझाएं।

आनंद दिव्या, Continue reading “आपुई गई हिराय-(प्रवचन-01)”

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