साक्षित्व ही शिवत्व है—(प्रवचन—दसवां)
दिनांक 20 सितंबर, 1974,
प्रात: काल, श्री ओशो आश्रम, पूना।
सारसूत्र:
सुखासुखयोर्बहिर्मननमू।
तद्विमुक्तस्तु केवली।
तदारूढप्रमितेस्तन्धयाज्जीवसंक्षय।
भूतकंचुकी तदाविमुक्तो भूय: पतिसम: पर:।
ओम, श्री शिवार्पण अस्तु।
सुख—दुख बाह्य वृत्तियां है—ऐसा सतत जानता है 1 और उनसे विमुक्त—वह केवली हो जाता है। उस कैवल्य अवस्था में आरूढ़ हुए योगी का अभिलाषा—क्षय के कारण जन्म—मरण का पूर्ण क्षय हो जाता है। ऐसा भूत—कंचुकी विमुक्त पुरुष परम शिवरूप ही होता है। Continue reading “शिव-सूत्र-(प्रवचन-10)”