तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-01)

     तंत्र, अध्यात्म और काम-(ओशो)
पहला-प्रवचन-(तंत्र और योग)

(Tantra Spiituality and Sex का हिन्दी अनुवाद)

प्रश्न: भगवान, पारंपारिक योग और तंत्र में क्या अंतर है? क्या वे दोनों समान हैं?

तंत्र और योग मौलिक रूप से भिन्न हैं। वे एक ही लक्ष्य पर पहुंचते हैं लेकिन मार्ग केवल अलग-अलग ही नहीं, बल्कि एक दूसरे के विपरीत भी हैं। इसलिए इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है। योग की प्रक्रिया तत्व-ज्ञान प्रणाली-विज्ञान भी है योग विधि भी है। योग दर्शन नहीं है। तंत्र की भांति योग
भी किया, विधि, उपाय पर आधारित है। योग में करना होने की ओर ले जाता है लेकिन विधि भिन्न है। योग में व्यक्ति को संघर्ष करना पड़ता है; वह योद्धा का मार्ग है। तंत्र के मार्ग पर संघर्ष बिल्कुल नहीं है। इसके विपरीत उसे भोगना है लेकिन होशपूर्वक बोधपूर्वक। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-01)”

तंत्र-अध्यात्म और काम-(ओशो)

तंत्र, अध्यात्म और काम-ओशो

(तांत्रिक-प्रेम विधियों के संबंध में छ: प्रवचनों का संकलन)

(Tantra Spiituality and Sex का हिन्दी अनुवाद)

इस पुस्तक से:

योग होशपूर्वक दमन है तंत्र होशपूर्वक भोग है।

तंत्र कहता है कि तुम जो भी हो परम-तत्व उसके विपरीत नहीं है। यह विकास है तुम उस परम तक विकसित हो सकते हो। तुम्हारे और सत्य के बीच कोई विरोध नहीं है। तुम उसके अंश हो इसलिए प्रकृति के साथ संघर्ष की, तनाव की, विरोध की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें प्रकृति का उपयोग करना है; तुम जो भी हो उसका

उपयोग करना है ताकि तुम उसके पार जा सको। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(ओशो)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-03)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

प्रवचन-तीसरा (काम, प्रेम और प्रार्थना: दित्यता के तीन चरण)

(The Psychology of the Esoteric-का हिन्दी रूपांतरण है)

ओशो कृपया हमारे लिए काम-ऊर्जा के आध्यात्मिक
महत्व की व्याख्या करें। काम का ऊर्ध्वगमन और
आध्यात्मीकरण हम किस प्रकार से कर सकते हैं? क्या
यह संभव है कि काम का संभोग का ध्यान की भांति
चेतना के उच्चतर आयामों में जाने के लिए छलांग लगाने
के एक तख्ते की भांति उपयोग किया जा सके?

काम-ऊर्जा जैसी कोई चीज नहीं होती है। ऊर्जा एक है और एक समान है। काम इसका एक निकास द्वार, इसके लिए एक दिशा, इस ऊर्जा के उपयोगों में से एक है। जीवन-ऊर्जा एक है; किंतु यह बहुत सी दिशाओं में प्रकट हो सकती है। काम उनमें से एक है। जब जीवन-ऊर्जा जैविक हो जाती है तो यह काम-ऊर्जा होती है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-03)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-02)

बुद्धत्व  का मनोविज्ञान-ओशो

प्रवचन-दूसरा-(ध्यान का रहस्य) 

(The Psychology of the Esoteric-का हिन्दी रूपांतरण है)

पहला प्रश्न:

   ओशो मैं एक वर्तुल में घूमता रहा हूं और कभी-कभी

लगता है कि मैंने वर्तुल पूरा कर लिया है। लेकिन दूसरे ढंग

से देखने पर लगता है कि मैं परिधि से चिपका हुआ हूं।

क्या आपके पास ऐसी कोई कार्य योजना या ध्यान की

कोई विधि या व्यक्ति को ध्यान के योग्य बना देने की कोई

तरकीब है जिसे आप आरंभ में बताएंगे?

ध्यान केवल एक विधि नहीं है; यह केवल कोई तकनीक नहीं है। तुम इसे सीख नहीं सकते। यह एक विकास है-तुम्हारे संपूर्ण जीवन का, तुम्हारी संपूर्ण जीवनचर्या से। ध्यान कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे, जैसे कि तुम हो, उसमें जोड़ा जा सके। इसको तुमसे जोड़ा नहीं जा सकता है; यह तुम्हारे पास एक मौलिक रूपांतरण, एक परिवर्तन के माध्यम से आ सकता है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-02)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-01)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

प्रवचन-पहला-(अंतस-क्रांति)

(The Psychology of the Esoteric-का हिन्दी अनुवाद है)

 ओशो मनुष्य के विकास के पथ पर क्या यह संभव है कि
भविष्य में किसी समय सारी मनुष्य-जाति संबुद्ध हो जाए?
आज मनुष्य विकास के किस बिंदु पर है?

मनुष्य के साथ विकास की प्राकृतिक स्वत: चलने वाली प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। मनुष्य अचेतन विकास की अंतिम रचना है। मनुष्य के साथ सचेतन विकास का आरंभ होता है। बहुत सी बातें खयाल में ले लेनी है।

पहली बात अचेतन विकास यांत्रिक एवं प्राकृतिक होता है। यह अपने आप से होता है। इस प्रकार के विकास के माध्यम से चेतना विकसित होती है। किंतु जैसे ही चेतना अस्तित्व में आती है, अचेतन विकास रुक जाता है, क्योंकि इसका उद्देश्य पूरा हो चुका है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-01)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

 (The Psychology of the Esoteric-का हिन्दी रूपांतरण है)

 प्रवेश से पूर्व

परंपरागत विधियां व्यवस्थित है क्योंकि उस समय का व्यक्ति, उस समय लोग और वे लोग जिनके लिए उन विधियों को विकसित किया गया था-भिन्न थे। आधुनिक मनुष्य एक बहुत नवीन घटना है, और किसी भी परंपरागत विधि का, जिस रूप में वह है, ठीक उसी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि आधुनिक

मनुष्य कभी अस्तित्व में था ही नहीं। आधुनिक मनुष्य एक नई घटना है। इसलिए एक प्रकार से तो सारी परंपरागत विधियां असंगत हो चुकी हैं। उनका सार-तत्व असंगत नहीं Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो”

पूना आवास और कार्य ध्यान-(मधुुुर यादें )

पूना आवास और कार्य ध्यान-(2019)

अभी पििछले ही दिनों पूना में कार्य-ध्यान आवास का मोका मिला, उन मधुर क्षणों की कुछ मधुर व खट्टी यादें आपके साथ साझा कर रहा हूं, हम चाहे तो कहीं भी, किसी भी स्तिथिि में रह कर सिख सकते है, हर घटना हमें एक नये आयाम की और इशारा करती है, ठीक ऐसा ही मेरे उन तीस दिनों में देखने को मिला, क्योंकि पूना ध्यान के लिए तो मैं 1994 से लगातार जा ही रहा हूं, वहां एक-एक महीना या उस से अधिक रह कर भी ध्यान किया है, परंतु बेटी के कहने पर की आप अंदर ही रहो और अंदर काम करो उस अनुभव को भी लोगे तो आपको अच्छा लगेगा। सो मैंने कार्य ध्यान के लिए एक फार्म भर दिया, मैं चाहता था कि, मैं कम से कम दो महीने तो रहूं, तब उन्होंने एक महीने की मंजुरी मुझे दे दी। मैंने 15,000/- रु भी जमा करा दिए, टोटल 30,130/- मैंने वहां जाकर जमा करा दिए, एक सुंदर, स्वछ, ऐ सी कमरा, यह सब देख कर अच्छा लगा, उस दिन तो मुझे इवेंटस में लगा दिया, मुझ से दिन में पुछ लिया गया था कि आप क्या-क्या कार्य कर सकते हो, उसमें हिन्दी टंकन भी मेंने लिख दिया था, तब उन्होंने मुझे उसी श्याम कहां गया की आप सुबह नो बजे मुझे दफतर में मिले आपको हिन्दी टाईपिंग आती है, आप उसका टेस्ट दे दे, मुझे साधना जी के पास ले जाया गया, वह कहने लगी लो करो टाईपिंग, Continue reading “पूना आवास और कार्य ध्यान-(मधुुुर यादें )”

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