जीवन क्रांति की दिशा-(शून्य समाधि)
चौथा प्रवचन–मैं कौन हूं?
मेरे प्रिय आत्मन्!
एक गांव में एक आदमी पागल हो गया था, वह जगह-जगह खड़े होकर पूछने लगा था कि मैं कौन हूं? एक ही बात पूछने लगा था कि मैं कौन हूं? सारे गांव के लोगों ने समझ लिया था कि वह पागल हो गया है। मैं भी उस गांव में गया था। उस आदमी को मैंने भी चिल्लाते सुना कि मैं कौन हूं? दिन में, रात में, सुबह-सांझ, मकान में, सड़क पर, बाजार में वह आदमी यही चिल्लाता घूमता था कि मैं कौन हूं? कोई मुझे बता दे कि मैं कौन हूं? Continue reading “जीवन क्रांति की दिशा-(प्रवचन-04)”