सतगुरु करहु जहाज—(प्रवचन-नौवां)
दिनांक 29 जनवरी 1979; श्री ओशो आश्रम, पूना
सारसूत्र :
पांच तत्त की कोठरी, तामें जाल जंजाल।
जीव तहां बासा करै, निपट नगीचे काल।।
दरिया तन से नहिं जुदा, सब किछु तन के माहिं।
जोग-जुगति सौं पाइये, बिना जुगति किछु नाहिं।।
दरिया दिल दरियाव है अगम अपार बेअंत।
सब महं तुम, तुम में सभे, जानि मरम कोइ संत।।
माला टोपी भेष नहिं, नहिं सोना सिंगार।
सदा भाव सतसंग है, जो कोई गहै करार।। Continue reading “दरिया कहैै शब्द निरवाना-(प्रवचन-09)”