फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-05)

जीवन बहती गंगा है—(प्रवचन—पांचवां)

दिनांक 6 अगस्त, सन् 1986;  प्रात: सुमिला, जुहू, बंबई।

मेरे प्रणाम  को आप स्वीकार करें। मेरा प्रश्न ज्योतिष के संबंध में है। ज्योतिष के संबंध में आपके विचार क्या है? क्या इसमें कोई सत्यांश है? क्या आप इसमें विश्वास करते है? क्या यह सच है कि एक ज्योतिषी ने आपके पिताजी से यह भविष्यवाणी की थी कि आप सात साल से अधिक जीवित नहीं रहेंगे और यदि जीवित रहे तो आप बुद्ध हो जाएंगे?

मैं जीवित रहा, यह पर्याप्त सबूत है कि ज्योतिष में कोई सत्यांश नहीं है। ज्योतिष मनुष्य की कमजोरी है। मनुष्य की कमजोरी है, क्योंकि वह भविष्य के झांक नहीं सकता और वह देखना चाहता है। वह पथभ्रष्ट होने से सदा भयभीत रहता है। वह आश्वस्त होना चाहता है कि वह ठीक रास्ते पर है। और भविष्य बिलकुल ही अज्ञात है, इसके बारे में कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन ऐसे लोग हैं जो मनुष्य की कमजोरियां का फायदा उठाने को सदा तत्पर हैं। Continue reading “फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-05)”

फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-04)

मेरी दृष्टि सृजनात्मक है—(प्रवचन—चौथा) 

दिनांक 4 अगस्त, सन् 1986;  प्रात: सुमिला, जुहू, बंबई।

मोरारजी सरकार से लेकर राजीव सरकार तक के आप केवल आलोचक ही बने रहे है। किंतु इस देश की समस्याओं को सुलझाने के लिए आपके पास कोई विशेष दृष्टिकोण या उत्तर है?

स देश की समस्याएं इस देश से बड़ी है। और आलोचना नकारात्मक नहीं है। वह समस्याओं को सुलझाने का विधायक रूप है। जैसे कि कोई सर्जन किसी के कैंसर का आपरेशन करे, तो क्या तुम उस आपरेशन को नकारात्मक कहोगे? दिखता तो नकारात्मक है, लेकिन वस्तुतः विधायक है। और इसके पहले कि कोई पुरानी इमारत गिरानी हो, नई इमारत खड़ी करनी हो, तो लोगों को सजग करना जरूरी है कि अब पुरानी इमारत के नीचे रहना खतरनाक है। वह जीवन को नष्ट कर सकती है। Continue reading “फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-04)”

फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-03)

एक नया ध्रुवतारा—(प्रवचन—तीसरा)

दिनांक 4 अगस्त, सन् 1986;  सुमिला, जुहू, बंबई।

मैं अभी—अभी आपके प्रश्नों को देख रहा था। यह जानकर दुखा होता है कि भारत की प्रतिभा ऐसी कीचड़ में गिरी है कि प्रश्न भी नहीं पूछ सकती। और जो प्रश्न पूछती भी है, वे सड़े—गले हैं, उनसे दुर्गंध उठती है। यदि तुम चाहते हो तो मैं जवाब दूंगा, लेकिन छाती पर हाथ रख लो, चोट पड़े तो परेशान मत होना। और जो मैं कहूं उसमें से एक भी शब्द काटा न जाए और जो मैं कहूं उसमें एक भी शब्द जोड़ा न जाए। ताकि तुम्हारी तस्वीर न केवल भारत के सामने बल्कि दुनिया के सामने स्पष्ट हो सके। प्रश्न भी पूछना मुश्किल है तो उत्तर तो तुम क्या समझ पाओगे। लेकिन मैं कोशिश करूंगा। शुरू करो। Continue reading “फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-03)”

फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-02)

मैं जीवन सिखाता हूं—(प्रवचन—दूसरा)

दिनांक 1 अगस्त 1986;   प्रात: सुमिला, जुहू बंबई।

मैंने आज के लिए भेजे गए प्रश्न देखे; और उन्हें देखकर मुझे बड़ी शर्म आई। शर्म इस बात की कि भारत की प्रतिभा इतने नीचे गिर गई है कि यह कोई अर्थपूर्ण प्रश्न भी नहीं पूछ सकती। फिर अर्थपूर्ण उत्तरों की खोज करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। जो भी प्रश्न मुझे दिखाए गए वे सब सड़े गले हैं। पीली पत्रकारिता, जो तीसरे दर्जे की मनुष्यता की जरूरत पूरी करती है। उसमें मुझे कोई रस नहीं है। Continue reading “फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-02)”

फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-01)

मैं स्वतंत्र आदमी हूं—(पहला—प्रवचन)

31 जुलाई 1986 प्रातः सुमिला, जुहू बंबई

ड़े दुख भरे हृदय से मुझे आपको बताना है कि आज हमारे पास जो आदमी है, वह इस योग्य नहीं है कि उसके लिए लड़ा जाए।

टूटे हुए सपनों, ध्वस्त कल्पनाओं और बिखरी हुई आशाओं के साथ मैं वापस लौटा हूं। जो मैंने देखा वह एक वास्तविकता है, और अपने पूरे जीवन भर जो कुछ मैं मनुष्य के विषय में सोचता रहा, वह केवल उसका मुखौटा था। मैं आपको थोड़े से उदाहरण दूंगा, क्योंकि यदि मैं अपनी पूरी विश्व यात्रा का वर्णन सुनाने लगूं तो इसमें करीब-करीब एक माह लग जाएगा। इसलिए कुछ महत्वपूर्ण बातें ही आपसे कहूंगा, जो कुछ संकेत दे सकें। Continue reading “फिर अमरित की बूंद पड़ी-(प्रवचन-01)”

फिर अमरित की बूंद पड़ी-ओशो

फिर अमृत की बूंद पड़ी—(राष्ट्री सामाजिक)-ओशो

(ओशो द्वारा मनाली ओर मुम्बई में दिये गये आठ अमृत प्रवचनो का संग्रह। जिसमें उन्होंने अमरीकी सरकार द्वारा दिये गये अत्याचारों की चर्चा है)

दुनिया में आज घोर निराशा की स्थिति है। एक ओर खाड़ी में बमों की बौछार हो

रही है जिसे कोई नहीं रोक पा रहा है। दूसरी ओर पूरे विश्व में आतंकवाद इतना आम है

कि रोजमर्रा की घटना हो गया है। ऐसे माहौल में अमृत की चर्चा अमृत की बूंदों की वर्षा

इस दुनिया की बात नहीं लगती है। नहीं लगता कि यह दुनिया रूपांतरित हो सकती है या

इसे कोई बदल कर अमृत-पथ की ओर ले जा सकता है। Continue reading “फिर अमरित की बूंद पड़ी-ओशो”

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें