जैसा हूं, परम आनंदित हूं—(प्रवचन—दसवां)
दिनांक 10 अक्तूबर 1980; श्री ओशो आश्रम, पूना
पहला प्रश्न:
भगवान, एक पत्रकार-परिषद में भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री मोरारजी देसाई ने कहा है:”आचार्य रजनीश के आश्रम में आने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि आचार्य रजनीश का आंदोलन अत्यंत खतरनाक और घातक ही नहीं, वरन भारतीय धर्म और संस्कृति को बदनाम करने वाला भी है।’ श्री देसाई ने गुजरात के मुख्यमंत्री श्री माधवसिंह सोलंकी के इस वक्तव्य के विरुद्ध अपनी तीखी प्रतिक्रिया की है कि “किसी भी धार्मिक नेता को भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कहीं भी आश्रम बनाने की स्वतंत्रता है’ और उन्होंने कहा कि “बुरे कामों को बढ़ावा देने के लिए इस स्वतंत्रता का उपयोग नहीं किया जा सकता है। मैंने तो अपने शासन-काल में आचार्य रजनीश की गतिविधियों की जांच की भी आदेश दिया था।’ श्री देसाई ने यह भी कहा कि “आचार्य रजनीश कभी भी कच्छ में अपना आश्रम स्थापित नहीं कर सकेंगे, यदि कच्छ की जनता इकट्ठी होकर उनका विरोध करने का साहस करे।’ Continue reading “दीपक बारा नाम का-(प्रवचन-10)”