सातवां प्रवचन–जागरण के तीन सूत्र
मेरे प्रिय आत्मन्!
जो बाहर है, वह एक स्वप्न से ज्यादा नहीं है। और जो सत्य है, वह भीतर है। जो दृश्य है, वह परिवर्तन है। और जो द्रष्टा है, वह सनातन है।
सत्य की खोज में विज्ञान बाहर देखता है, धर्म भीतर देखता है। विज्ञान परिवर्तन की खोज है, धर्म शाश्वत की। और सत्य शाश्वत ही हो सकता है। इस शाश्वत सत्य की दिशा में तीसरा सूत्र साक्षीभाव है। द्रष्टा को खोजना है, तो द्रष्टा बने बिना और कोई रास्ता नहीं है।
लेकिन हम सब हैं सोए हुए लोग। हम सब करीब-करीब सोए-सोए जीते हैं, सोए-सोए ही जागते हैं। Continue reading “तृषा गई एक बूंद से-(प्रवचन-07)”