नौवां प्रवचन
शिक्षाः महत्वाकांक्षा और युवा पीढ़ी का विद्रोह
मनुष्य की आज तक की सारी शिक्षा महत्वाकांक्षा की शिक्षा रही है। वह मनुष्य को ऐसी दौड़ में गति देती है जो कभी भी पूरी नहीं होती। और जीवन भर की दौड़ के बाद भी हृदय खाली का खाली रह जाता है। मनुष्य के मन का पात्र जीवन भर की कोशिश के बाद भी अंत अपने को खाली पाता है। इसीलिए मैं ऐसी शिक्षा को सम्यक नहीं कहता।
मैं उसी शिक्षा को सम्यक शिक्षा कहता हूं, तो मनुष्य की मन को भरने की इस व्यर्थ की दौड़ को समाप्त कर दे। मैं उसी शिक्षा को सम्यक कहता हूं जो महत्वाकांक्षा के इस ज्वर से मनुष्य को मुक्त कर दे। मैं उसी शिक्षा को ठीक शिक्षा कहता हूं जो मनुष्य कोई बुनियादी भूल से छुटकारा दिलाने में सहायक हो जाए। लेकिन ऐसी शिक्षा पृथ्वी पर कहीं भी नहीं। उलटे जिसे शिक्षा कहते हैं वह मनुष्य की महत्वाकांक्षा को बढ़ाने का काम करती है। उसकी महत्वाकांक्षा की आग में घी डालती है, उसकी आग को प्रज्वलित करती है, उसके भीतर जोर से त्वरा पैदा करती है, जोर से गति पैदा करती है कि वह व्यक्ति दौड़े और अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में लग जाए। मन की वासनाओं को पूरा करने के लिए व्यक्ति को सक्षम बनाने की कोशिश करती है शिक्षा, मन को महत्वाकांक्षा से मुक्त होने के लिए नहीं। और इसके स्वाभाविक परिणाम फलित होने शुरू हुए हैं। सारे लोग अगर महत्वाकांक्षी हो जाएंगे तो जीवन एक द्वंद्व और संघर्ष के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सकता है। अगर सारे लोग अपनी महत्वाकांक्षा के पीछे पागल हो जाएंगे तो जीवन एक बड़े युद्ध के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकता है। Continue reading “सम्यक शिक्षा-(प्रवचन-09)”