जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-31

सम्‍यक दर्शन के आठ अंग—प्रवचन—इकतीसवां

सूत्र:

निस्‍संकिय निक्‍कंखिय निव्‍वितिगिच्‍छा अमूढ़दिट्ठी य।

उवबूह थिरीकरणे, वच्‍छल पभावणे अट्ठ।। 78।।

जत्‍थेव पासे कई दुप्‍पउत्‍तं, काएण वाया अदु माणसेण।

तत्‍थेव धीरो पडिसाहरेज्‍जा, आइन्‍नओ खिप्‍पमिक्‍खलीणं।। 79।।

तिण्‍णो हु सि अण्‍णवं महं, किं पुणचिट्ठसि तीरमागओ।

अभितुर पारं गमित्‍तए, समयं ! मा पमायए।। 80।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-31”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-30

प्रेम है आत्‍यंतिक मुक्‍ति–प्रवचन—तीसवां

प्रश्‍न सार:

1—नरहरि कैसे भगति करूं मैं तोरी, चंचल है मति मोरी।

2—आपने कहा कि जहां उत्‍कट प्‍यास होगी वहां पानी को आना ही पड़ेगा। अब पानी तो आ गया है; लेकिन क्‍या मैं तुरंत अंजुलि भरकर पानी पीना शुरू करूं, या पानीमुंह तक आ जाए, उसकी प्रतीक्षा करूं?

3—आपके प्रति इतना प्रेम हुए भी आपको सुनते वक्‍त कभी—कभी अकुलाहट और क्रोध क्‍यों उठने लगता है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-30”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-29

मोक्ष का द्वार: सम्‍यक दृष्‍टि—प्रवचन—उनतीसवां

सूत्र:

दंसणभट्ठा भट्ठ, दंसणभट्ठस्‍स नत्‍थि निव्‍वाणं।

सिज्झंति चरियभट्ठा, दंसणभट्ठा ण सिज्झंति।। 71।।

सम्‍मत्‍तस्‍स य लंभो, तलोक्‍कस्‍स य हवेज्‍ज जो लंभो।

सम्‍मदंसणलंभो, वरं खु तेलोक्‍कलंभादो।। 72।।

किं बहुण भणिएणं, जे सिद्ध णरवरा गए काले।

सिज्‍झिहिंति जे वि भविया, तं जाणइ सम्‍ममाहप्‍पं।। 73।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-29”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-28

जीवन का ऋत्: भाव, प्रेम, भक्‍ति—प्रवचन—अट्ठाईसवां

प्रश्‍नसार:

1— आप कहते हैं कि पुण्य भी बांधता है और पाप भी बांधता है। तो तीर्थंकरों को उनका करुणाजन्य कर्म क्यों नहीं बांधता?

2—पहली बार मैं किसी के प्रेम में पडा हूं, लेकिन मेरा अहंकार मुझे पूरी तरह प्रेम में डूबने नहीं देता। मेरा ह्रदय तो नारद के साथ है, लेकिन बुद्धि महावीर के साथ। उलझन है, खींचतानी है। कृपया मार्गनिर्देश दें।

3—कृपाकर कीर्तन—ध्‍यान के बारे में कुछ समझाएं। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-28”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-27

साधु का सेवन: आत्‍मसेवन—प्रवचन—सत्‍ताईसवां

सूत्र:

सम्‍मदंसणणाणं, एसोलहदि त्‍ति णवरिववदेसं।

सव्‍वणयपक्‍खरहिदो, भणिदोजोसोसमयसारो।। 66।।

दंसणाणचरित्‍तणि, सेविदव्‍वाणि साहुणा णिच्‍चं।

ताणि पुण जाण तिणिण वि, अप्‍पाणं जाण णिच्‍छयदो।। 67।।

णिच्‍छयणयेण भणिदो, तिहि तेहिं समाहिदो हु जो अप्‍पा।

ण कुणदि किंचि वि अन्‍नं,ण मुयदि सो मोक्‍खमग्‍गो त्ति।। 68।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-27”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-26

तुम्‍हारी संपदा—तुम हो—प्रवचन—छब्‍बीसवां

प्रश्‍नसार:

1— न मालूम खोपड़ी में कहां से कहां चला गया! चाहता था योग से शक्ति, यहां समझने को मिली शांति। चाहता था धर्म से प्रभुता, यहां समझने को मिली शून्यता। कुछ निर्णय नहीं कर पाता हूं। मन विक्षिप्त हुआ जाता है। यह यात्रा न मालूम कहां जाकर रुकेगी। पुराना विश्वास बिखर चुका है, नये का जन्म नहीं हो रहा। अब न पीछे जा सकता हूं और न आगे ही बढ़ पाता हूं। कृपया मार्गदर्शन दें!

2—दर्शन के तत्‍क्षण बाद घटी घटना को ही क्‍या भजन कहते है?

3—जो दिन आपके साथ प्रेमपूर्वक बिताए उनको मैं कैसे भूलूं? अतीत को भूलना मेरे बस की बात नहीं है। आप वीतराग है। अब इन आसुओं के सिवा मेरे पास कुछ भी नहीं है। मन बार—बार कहता है, आप कब आएंगे? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-26”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-25

दर्शन, ज्ञान, चरित्र—और मोक्ष—प्रवचन—पच्‍चीसवां

सूत्र:

नाणेण जाणई भावे, दंसणेण या सद्दहे।

चरित्‍तेणे निगिण्‍हाई, तवेण परिसुज्‍झई।। 62।।

नादंसणिस्‍स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरण गुणा।

अगुणिस्‍स नत्‍थि मोक्‍खो, नत्‍थि अमोक्‍खरस निव्‍वाणं।। 63।।

हयं नाणं कियाहीणं, हया अण्‍णाणओ किया।

पासंतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो य अंधओ।। 64।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-25”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-24

मांग नहीं—अहोभाव, अहोगीत—प्रवचन—चौबीसवां

प्रश्‍न सार:

1—बैठे-बैठे दिले-नादां ये खयाल आया है  हम नहीं आए यहां कोई हमें लाया है। किसने नन्हा-सा मुहब्बत का ये जला के दिया  दिले-वीरां के अंधेरे पे तरस खाया है। पर दीया तो जलता नजर नहीं आता…?

2—भगवान, तुम्‍हारे चरणों में शत—शत प्रणाम !

3—कल जिस क्षण आपने कहा कि महावीर ने स्‍वाधीनता को आत्‍यंतिक मूल्‍य दिया, उस क्षण मैं आपको निहारता ही रहा। क्‍या कर दिया आपने?

4—मुझे इतना कुछ मिल रहा था कि अंतर में समाता नहीं—और प्‍यास भी इतनी ही है।…… प्रभु ! यह सब क्‍या हो रहा है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-24”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-23

जीवन की भव्‍यता:  अभी और यहीं—प्रवचन—तेईसवां

सूत्र:

सदहदि य पत्‍तेदि य, रोचेदि य तह पुणो य फासोदि।

धम्‍मं भोगनिमित्‍तं, ण दु सो कम्‍मक्‍खयाणिमित्‍तं।। 55।।

सुहपरिणमो पुण्‍णं, असुहो पाव ति भणियमन्‍नेसु।

परिणामो णन्‍नगदो, दुक्‍खक्‍खयकारणरं समयं।। 56।।

पुण्‍णं पि जो समिच्‍छदि, संसारो तेण ईहिदो होदि।

पुण्‍णं सुगईहेंदु, पुण्‍णखएणेव णिव्‍वाणं।। 57।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-23”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-22

परमात्‍मा के मंदिर का द्वार: प्रेम—प्रवचन—बाईसवां

प्रश्‍न—सार:

1—इस जगत में न पकड़ने—योग्‍य कुछ है न छोड़ने—योग्‍य। लेकिन एक बात पकड़ने और छोड़ने के बीच बेचैन कर गयी: प्रेम—वासना—मेरे जीवन की एक मात्र समस्‍या।

2—आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक

   कौन जीता है तेरे जुल्‍फ के सर होने तक

   हमने माना के तगाफुल न करोगे, लेकिन

   खाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक।

3—आपने प्रवचन के समय बड़ी मीठी और गहरी नींद आती है। क्‍या कारण है?

4—सन्‍यास के शुरू के कुछ साल संन्‍यासिनी होने का भ्रम रहा। लेकिन संन्‍यास संन्‍यास के फूल की जो आप बात करते है, आपने को उसके योग्‍य नहीं पाती। जमीन से पैर उखड़ गए है, लेकिन पंख अभी तक नहीं उगे। यही कैसी अवस्‍था है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-22”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-21

जिन—शासन अर्थात आध्‍यात्‍मिक ज्‍यामिति—प्रवचन—इक्‍कीसवां

सूत्र:

मग्‍गो मग्‍गफलं ति य, द्रविहं जिणसासणे समक्‍खादं।

मग्‍गो खलु सम्‍मतं मग्‍गफलं होई निव्‍वाणं।। 52।।

दंसणाणचरित्‍ताणि, मोक्‍खमग्‍गो त्‍ति सेविदव्‍वाणि।

साधूहि इदं भणिदं, तेहिं दु बंधो व मोक्‍खो वा।। 53।।

आण्‍ण्‍णाणादो पाणी, जदि मण्‍णादि सुद्धसंपओगादो।

हवदि त्‍ति दुक्‍खमोक्‍खं परसमयरदो हवदि जीवो।। 54।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-21”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-20

पलकन पग पोंछूं आज पिया के—प्रवचन—बीसवां

प्रश्‍न सार:

1—आपको सुनने के बाद मुझे व्‍यवहारिक जीवन में शिथिलता आती है। लेकिन जब आप प्रेम और भक्‍ति पर बोलते है तो मन खिल जाता है। कृपा कर मुझे मार्ग दें।

2—मेरे भीतर स्‍तब्‍धता, सन्‍नाटा सा लग रहा है। और साथ ही अच्‍छे बुरे विचारों का आक्रमण भी। मैं अपने को बहुत असहाय पा रही हूं। भय लगता है।

3—आप महावीर की अहिंसा पर, बुद्ध के शून्‍य पर, या कुछ भी बोलते है तो उसमें अनिवार्यत: प्रेम जोड़ देते है। क्‍या हम संन्‍यासियों में प्रेम का अत्‍यंत अभाव देखकर ही प्रेम का पुन:–पुन: स्‍मरण कराते है?

4—मुझे समर्पण में बहुत आनंद आता है, ज्ञान से थोड़ा अहंकार जगता है। मैं कौन—सा ध्‍यान करूं—बताने की कृपा करें। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-20”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-19

धर्म की मूल भित्‍ति: अभय—प्रवचन—उन्‍नीसवां

सूत्र:

णवि होदि अप्‍पमत्‍तो, ण पमत्‍तो जाणओ दु जो भावो।

एवं भणंति सुद्धं, णाओ जो सो उ सो चेव।। 48।।

णाहं देहो ण मणो, ण चेव वाणी ण कारणं तेसि।

कत्‍ता ण ण कारयिदा, अणुमंता णेव कत्‍तीणं।। 49।।

को णाम भणिज्‍ज बुहो णाउं णाउं सव्‍वे सव्‍वे पराइए भावे।

मज्‍झमिणं ति य वयणं, जाणंतो अप्‍पयं सुद्धं।। 50।।

अहमिक्‍को खलु सुद्धो, णिम्‍ममओ णाणदं सणसमग्‍गो।

तम्‍हि ठिओ तच्‍चित्‍तो, सव्‍वे एए खयं णेमि।। 51।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-19”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-18

धर्म आविष्‍कार है—स्‍वयं का—प्रवचन—अठारहवां

प्रश्‍नसार:

1—कृष्ण कहते हैं कि मारो और महावीर कहते हैं कि हिंसा का विचार-मात्र हिंसा है। कृपया बतायें कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है?

2—बहुत समय से मैं आपके पास हूं और में बहुत अज्ञानी और निर्बुद्धि हूं—यह आप भली भांति जानते है। आपकी कहीं अनेक बाते मेरे सर के ऊपर से गुजर जाती है। परमात्‍मा की प्‍यास का मुझे कुछ पता नहीं? फिर मैं क्‍यों यहां हूं और यह ध्‍यान—साधना वगैरह क्‍या कर रही हूं?

3—जीवन व अस्‍तित्‍व के परम सत्‍यों की क्‍या निरपेक्ष अभिव्‍यक्‍त्‍िा संभव नहीं है?

4—किसी प्‍यासे को जब मैं आपके पाल लाती हूं तो वह मुझसे दूर हो जाता है। मुझे एक तड़प सी होती है।

5—लेकिन ‘तेरी जो मर्जी’ कहकर गा पड़ती हूं: ‘राम श्री राम जय जय राम।’ Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-18”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-17

आत्‍मा परम आधार है—प्रवचन—सत्रहवां

सूत्र:

आरूहवि अंतरप्‍पा बहिरप्‍पो छंडिऊण तिविहेण।

झाइज्‍जइ परमप्‍पा, उवइट्ठं जिणवरिदेहिं।। 45।।

णिद्दण्‍डो णिद्दण्‍डो, णिम्‍ममो णिरालंबो।

णीरागो णिद्दोसो, णिम्‍मूढो णिब्‍भयो अप्‍पा।। 46।।

णिग्‍गंथो णीरागो, णिस्‍सल्‍लो सयलदोसणिम्‍मूक्‍को।

णिक्‍कामो णिस्‍कोहो, णिम्‍माणो अप्‍पा।। 47।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-17”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-16

उठो, जागो—सुबह करीब है—प्रवचन सोलहवां

प्रश्‍नसार:

1—जैसे महावीर के ‘अहिंसा’ शब्‍द का गलत अर्थ लिया गया,

   ऐसे ही क्‍या आपका ‘प्रेम’ शब्‍द खतरे से नहीं भरा है?

2—जो दीया तूफान से बुझ गया, उसे फिर जला के क्‍या करूं?

   जो परमात्‍मा घर से ही भटक गया, उसे घर वापस बुला के क्‍या करूं?

3—तेरे गुस्‍से से भी प्‍यार, तेरी मार भी स्‍वीकार। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-16”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-15

मनुष्‍यो सतत जाग्रत रहो—प्रवचन—पंद्रहवां

सूत्र:

सीतंति सुवंताणं, अत्‍था पुरिसाण लोगसारत्‍था।

तम्‍हा जागरमाणा, विधुणध पोराणयं कम्‍मं।। 39।।

जागरिया धम्‍मीणं, अहंम्‍मीणं च सुत्‍तया संया।

वच्‍छाहिवभगिणीए, अकहिंसु जिणो जयंतीए।। 40।।

पमायं कम्‍ममाहंसु, अप्‍पमायं तहाउवरं।

तब्‍भावादेसओ वावि, बालं पंडितमेव वा।। 41।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-15”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-14

प्रेम से मुझे प्रेम है—प्रवचन—चौदहवां

प्रश्‍नसार:

1–परंपरा-भंजक महावीर ने स्वयं को चौबीसवां तीर्थकर क्‍यों स्‍वीकार किया?

2—महावीर का स्‍वयं सदगुरू, तीर्थंकर बनना व शिष्‍यों को दीक्षा देना—क्‍या उनके ही सिद्धांत के विपरीत नहीं है?

3—वर्तमान शताब्‍दि में आप हमें कौन—सा शब्‍द देना पसंद करेंगे?

4—आपके सामने दिन खोलूं कि नहीं खोलूं—मुझे घबराहट होती है। और क्‍या मैं कुछ भी नहीं कर पाती? मेरी हिम्‍मत अब टूटी जा रही है। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-14”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-13

वासना ढपोरशंख है—प्रवचन—तेरहवां

सारसूत्र:

जीववहो अप्‍पवहो, जीवदया अप्‍पणो दया होइ।

ता सव्‍वजीवहिंसा, परिचत्‍ता अत्‍त कामेहिं।। 32।।

तुमं सि नाम स चव, जं हंतव्‍वं ति मन्‍नसि।

तुमं सि नाम स चेव, जं अज्‍जावेयव्‍वं ति मन्‍नसि।। 33।।

रागादीणमणुप्‍पासो, अहिंसकत्‍तं त्ति देसियं समए।

तेसिं चे उप्‍पत्‍ती, हिंसेत्‍ति जिणेहि णिद्दिट्ठा।। 34।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-13”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-12

संकल्‍प की अंतिम निष्‍पत्‍ति: समर्पण—प्रवचन—बारहवां

प्रश्‍नसार:

1—मुझसे न समर्पण होता है और न मुझमें संकल्‍प की शक्‍ति है।

  और आपसे दूरी भी बरदाश्‍त नहीं होती। क्‍या करूं?

2—आपका कहना है कि प्‍यास है तो जल भी होगा ही, और प्‍यासा ही जल को नहीं     खोजता, जल भी प्‍यासे को खोजता है…… ? मेरा मार्ग—निर्देश करें।

3—आश्‍चर्य है कि में आपके प्रति अनाप—शनाप बकता हूं कभी गाली भी देता हूं,

   ये क्‍या है?

4—मेरी विचित्र धारणाओं के कारण आप मुझे भगवान जैसे नहीं लगते…. ?

5—मेरी दिनचर्या आनंदचर्या बन गयी है। अब पिधलूं और बहूं—बस यही कह दें। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-12”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-11

अध्‍यात्‍म प्रक्रिया है जागरण की—प्रवचन—ग्‍यारहवां

सूत्र:

अणथोवं वणथोवं, अग्‍गीथोवं कसायथोवं च।

न हु भे वीससियव्‍वं, थोवं पि हु तं बहु होई।। 26।।

कोहो पीइं पणसोइ, माणो विण्‍यनासणो।

माया मित्‍ताणि नासेइ, लोहो सव्वविणासणो।। 27।।

उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे।

मायं चउज्‍जवभावेण, लोभं संतोसओ जिणे।। 28।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-11”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-10

जिंदगी नाम है रवानी का—प्रवचन—दसवां

प्रश्‍नसार:

1—लोग आपको धर्म—भ्रष्‍ट करनेवाला कहते है, विरोध करते है।

  उनके साथ कैसे जीया जाए?

2—जो कुछ मुझे मिला है, वह कम नहीं—

   फिर भी आखिर क्‍या पाकर मुझे संतोष होगा?

3—कागा सब तन खाइयो, चुन—चुन खाइयो मांस।

  दो नैना नहिं खाईयो, पिया मिलन की आस।।

4—आप न जाने गुरूदेव मेरे, मैं तुम्‍हें पुकारा करती हूं।

   एक बार ह्रदय में छेद करो,वह क्षण मैं निहारा करती हूं।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-10”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-09

अनुकरण नहीं—आत्‍म अनुसंधान—प्रवचन—नौवां

सारसूत्र:

अप्‍पा कत्‍ता विकत्‍ता य, दुहाण य सुहाण य।

अप्‍पा मित्‍तममित्‍तं च, दुप्‍पट्ठिय सुप्‍पट्ठिओ।। 22।।

एगप्‍पा सजिए सत्तू, कसाया इंदियाणि य।

ते जिणित्‍तु जहानायं, विहरामि अहं मुणी।। 23।।

एगओ विरइं कुज्‍जा, एगओ य पवत्‍तणं।

असंजमे जियत्‍तिं च, संजमे य पवत्‍तणं।। 24।।
Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-09”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-08

सम्‍यक ज्ञान मुक्‍ति है—प्रवचन—आठवां

प्रश्‍नसार:

1—आपने कहा कि सत्‍य संज्ञा नहीं है, क्रिया है।

  क्‍या प्रेम, आनंद, ध्‍यान, समाधि भी क्रिया ही है?

  क्‍या क्रिया का समझ से कोई संबंध है?

2—तीर्थंकर चौबीस ही क्‍यों, ज्‍यादा क्‍यों नहीं?

3—क्‍या परंपरा की जरूरत नहीं है? क्‍या परंपरा से हानि ही हानि हुई है?

4—किसी सुंदर युवती को देख कर मन उसकी और आकर्षित हो जाता है। क्‍या वासना यह है, या प्रेम, या सुंदरता की स्‍तुति? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-08”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-07

जीवन एक सुअवसर है—प्रवचन—सातवां

सूत्र:

सच्‍चाम्‍म” विसदि तवो, सच्‍चाम्‍मि संजमो तह वसे तेसा वि गुणा।

सच्‍चं णिबंधणं हि य, गुणाणमदधीव मच्‍छाणं।। 17।।

सुबण्‍णरूप्‍पस्‍स उ पव्‍वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया।

नरस्‍स लुद्धस्‍स न तेहि कींचि, इच्‍छा हु आगाससमा अणन्‍तिया।। 18।।

जहा पोम्‍मं जले जायं, नोवलिप्‍पइ वारिणा।

एवं अलितं कामेहिं, तं वयं बूम माहणं।। 19।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-07”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-06

तुम मिटो तो मिलन हो—प्रवचन—छठवां

प्रश्‍नसार:

1—श्‍याम—श्‍याम रटते जीवन की सांझ हो गयी है, अभी तक मेरा श्‍याम नहीं आया। मुझे उसके दर्शन कराना है।

2—नककटे साधु की कहानी…….क्‍या आपके संन्‍यासियों की यही स्‍थिति नहीं है?

3—भीतर विचारों की भीड़ है और अहंकार से विक्षुब्‍ध हूं….. ?

4—बेमुरोबत बेवफा बेगाना—ए—दिल आप है।…….?

5—बहुत शुक्रिया बहुत मेहेरबानी।

   मेरी जिंदगी में हुजूर आप आए।।….. Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-06”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-05

परम औषधि: साक्षी—भाव—प्रवचन—पांचवां

सूत्र:

रागो य दोसो वि य कम्‍मवीयं, कम्‍मं च मोहप्‍पभवं वयंति।

कम्‍मं च जाईमरणस्‍य मूलं, दुक्‍खं च जाईमरणं वयंति।। 11।।

न य संसारीम्‍मि सुहं, जाइजरामरणदुक्‍खगहियस्‍स।

जीवस्‍स अत्‍थि जम्‍हा,तम्‍हा मुक्‍खो उवादेओ।। 12।।

तं जइ इच्‍छसि गंतुं,तीरं भवसायरस्‍स घोरस्‍स।

तो तव संजमभंडं, सुविहिय गिण्‍हाहि तूरंतो।। 13।।

जणे विरोगो जायइ, तं तं सव्‍वायरेण करणिज्‍जं।

मुच्‍चइ हु संसवेगी, अणतंवो होई असंवेगी।। 14।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-05”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-04

धर्म: निजी और वैयक्‍तिक—प्रवचन—चौथा

प्रश्‍न सार:

1—कोई आठ वर्षों से आपको सुनती—पढ़ती हूं: लेकिन सिर्फ आप ही है सामने।…….रोना ही रोना। यह क्‍या है?

2—शास्‍त्रीय परंपरा में संन्‍यासी काम—भोग से विमुख और प्रभु—प्राप्‍ति के लिए उन्‍मुख होता है; लेकिन आपके संन्‍यास में विरक्‍ति पर जोर क्‍यों नहीं?…….

3—क्‍या भक्‍ति–मार्ग में बुरे कर्मों का फल भोगना पड़ता है अथवा नहीं?

4—यदि इस पृथ्‍वी पर कहीं स्‍वर्ग है तो वह यहीं है, यहीं है यहीं है। ऐसा क्‍यों हुआ,कृप्‍या समझांए? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-04”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-03

बोध—गहन बोध—मुक्‍ति है—प्रवचन—तीसरा

सूत्र:

जाणिज्जइ चिन्तिज्जइ, जन्मजरामरणंसंभवं दुक्खं।

न य विसएसु विरज्जई, अहो सुबद्धो कवडगंठी।।6।।

जन्‍मं दुक्‍खं जरा दुक्‍खं, रोगा य मरणाणि य।

अहो दुक्‍खो हु संसारो, जत्‍थ कीसति जतंवो ।।7।।

हाँ जह मोहियमइणा, सुग्‍गइमग्‍गं अजाणमाणेणं।

भीमे भवकंतारे, सुचिरं भमियं भयकरम्‍मि।।8।।

“मिच्छत्तं वेदन्तो जीवो विवरीयदंसणो होइ।

न य धम्म रोचेदु हु, महुरं पि रसं जह जरिदो।।9।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-03”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-02

प्‍यास ही प्रार्थना है—दूसरा—प्रवचन

प्रश्‍न सार:

1—क्‍या यह आरोप सही है कि महावीर और बुद्ध यह कह कर कि जीवन दुःख—ही—दुख है, भारत और एशिया के जीवन को विपन्‍न बना गया?

2—प्रतिक्रमण इतना असहज—सा लगता है?

3—प्रसाद संकल्‍प से मिला या समर्पण से, मालूम नहीं….ओर अयाचित और असमय। उसकी वर्षा हो रही है……. ?

4—श्रवण और पठन—पाठन में क्‍या भेद है? Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-02”

जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-01

शासन की आधारशिला: संकल्‍प—प्रवचन—पहला

सूत्र:

जं इच्‍छसि अप्‍पणतो, जं च न इच्‍छसि अप्‍पणतो।

तं इच्‍छ परस्‍स वि या, एत्‍तियगं जिणसासणं।। 1।।

अधुवेअसससयम्‍मि, संसारम्‍मि दुक्‍खपउराए।

किं नाम होज्‍ज तं कम्‍मयं, जेणाउहं दुग्‍गइ न गच्‍छेजा।। 2।।

खणामित्‍तसुक्‍खा बहुकालदुक्‍खा, पगामदुक्‍खा अणिगामसुक्‍खा।

संसारमाक्‍खस्‍स विपक्‍खभूया, खाणी अणत्‍थाण उ कामभोगा।। 3।।

सुट्ठवि मग्‍गिज्‍जंतो, कत्‍थवि केलीइ नत्‍थि जह सारो।

इंदियाविसएसु तहां, नत्‍थि सुहं सुट्ठ वि गविट्ठं।। 4।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-01”

जिन सूत्र-(महावीर)-(भाग-01)

जिन सूत्र (महावीर) -भाग—01   ओशो

जिन—दर्शन गणित, विज्ञान जैसा दर्शन है। काव्‍य की उसमें कोई जगह नहीं। वही उसकी विशिष्‍टता है।

दो और दो जैसे चार होते है, ऐसे ही महावीर के वक्‍तव्‍य है।

महावीर धर्म की परिभाषा करते है : जीवन के स्‍वभाव के सूत्र को समझ लेना धर्म है। जीवन के स्‍वभाव को पहचान लेना धर्म है। स्‍वभाव ही धर्म है।

इसलिए महावीर के वचन……..जैसे महावीर नग्‍न है वैसे ही महावीर के वचन भी नग्‍न है। उनमें कोई सजावट नहीं है। जैसा है वैसा कहा है। Continue reading “जिन सूत्र-(महावीर)-(भाग-01)”

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