सम्यक दर्शन के आठ अंग—प्रवचन—इकतीसवां
सूत्र:
निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढ़दिट्ठी य।
उवबूह थिरीकरणे, वच्छल पभावणे अट्ठ।। 78।।
जत्थेव पासे कई दुप्पउत्तं, काएण वाया अदु माणसेण।
तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा, आइन्नओ खिप्पमिक्खलीणं।। 79।।
तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुणचिट्ठसि तीरमागओ।
अभितुर पारं गमित्तए, समयं ! मा पमायए।। 80।। Continue reading “जिन सूत्र-(भाग-1)प्रवचन-31”