प्रेम नदी के तीरा-(अंतरंग-बार्ताएं)
सोलहवां-प्रवचन-(ओशो)
लीला का अर्थ है वर्तमान में जीना
एक तो वर्तमान से एकाकार होने के लिए मैंने नहीं कहा है। एकाकार तो मैं कहता हूं किसी से भी मत होना। क्योंकि एकाकार होने का मतलब मूच्र्छा के और कुछ भी नहीं हो सकता। जब तक तुम्हें होश है तब तक तुम एकाकार कैसे होओगे? जब तुम बेहोश हो तभी हो सकते हो। यानी जब तक भी तुम्हें होश है, तब तक तुम अलग हो। तुम एकाकार हो कैसे सकते हो? इसलिए मूच्र्छित व्यक्ति के सिवाय एकाकार कोई कभी नहीं होता या निद्रा में होता है। प्रकृति से एकाकार हो जाता है। Continue reading “प्रेम नदी के तीरा-(प्रवचन-16)”