सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-07)

सहज मिले अविनाशी-ओशो

सातवां प्रवचन

विधायक खोज

 

एक तो यहां एक स्टडी सर्किल निर्मित किया है, तो महीने में सात दिन उस पर बोलता रहता हूं। वह थोड़े से चुने हुए लोगों का ग्रुप है ताकि बहुत गहराई में कुछ बात हो सके। तो उसमें कुछ विशेष किताबों पर बोल रहा हूं। जैसे विज्ञान भैरव पर शुरू करूंगा अगले महीने। विज्ञान भैरव तंत्र का एक ग्रुप है। और मैं मानता हूं कि दुनिया में उससे श्रेष्ठ कोई किताब न कभी लिखी गई और न लिखनी संभव है। तंत्र पर, तंत्र पर, बहुत अदभुत है। बहुत ही अदभुत है, गीता-वीता सब बचकानी हैं। तंत्र में तो बहुत किताबें हैं, जिनके मुकाबले सारी चीजें बचकानी हैं। तो विज्ञान भैरव में कुल एक सौ बारह सूत्र हैं, तो उसमें कोई लगेंगे छह महीने। अगले महीने से शुरू करूंगा, सात दिन, फिर छह महीने उस पर लगूंगा।

 

प्रश्नः टैक्स्ट उसका संस्कृत में है? Continue reading “सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-07)”

सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-06)

छठवां प्रवचन

जीवन में तीव्रता

 

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं। )

 

इस्लाम और क्रिश्चएनिटी दोनों जो नहीं मानते हैं, नहीं मानने का भी कारण है, ऐसा नहीं कि नहीं जानते, इस्लाम भी जानता है कि रि-इनकार्नेशन है, क्रिश्चएनिटी भी जानती है। लेकिन मानते नहीं हैं। और न मानने का कारण समझ लें, तो फिर मानने का ही खयाल रह जाता है। जिन-जिन कौमों ने यह मान लिया कि फिर से जन्म होगा, पुनर्जन्म होगा, री-इनकारनेशन होगा; उन-उन कौमों की जीवन की गति क्षीण हो गई। जीवन का रस भी चला गया, जीवन में तेजी भी कम हो गई। अगर यह भरोसा हो जाए कि मुझे कभी मरना ही नहीं है, तो मेरे जीने की इंटेंसिटी फौरन कम हो जाएगी। वह जो तीव्रता होनी चाहिए जीवन की वह… तत्काल क्षीण हो जाएगी। अगर ऐसा कुछ हो कि मैं मर ही न सकूंगा, तो जीने का सारा मजा चला जाता है। Continue reading “सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-06)”

सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-05)

पांचवां प्रवचन

प्रेम के क्षण

 

आदमी और आदमी के बीच दूरी भी डिस्टेंस है, और दूरी भी बहुत दूर नहीं है। भाई आप एक फीट दूर हों तो कहते हैं कि पास है, हजार फीट दूर हैं तो कहते हैं दूर है, बस एक फीट और हजार फीट का ही फर्क है। लेकिन आदमी आदमी के बीच फासला इतना ज्यादा है कि उसको दूर भी नहीं कहा जा सकता। पास तो कहा ही नहीं जा सकता, दूर भी नहीं कहा जा सकता। और मजा ऐसा है कि कोई उपाय भी नहीं है कि दूरी खत्म की जा सके। और कभी दो आदमियों के बीच की दूरी खत्म नहीं हुई है कभी और न कभी होगी। Continue reading “सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-05)”

सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन

विचारना नहीं–देखना

 

सुनाइए, सुनाइए।

 

ये बहुत लोकप्रिय हैं ये।

 

हां, बहुत लोकप्रिय हैं। मैंने सुना है इसके बाबत। बहुत सुना है। बहुत सुना है।

 

न जाने क्यों मैंने इसको लिख दिया था और किस प्रेरणा से, लेकिन अब मुझे, मैं पढ़ता हूं तो मुझे भी इसका अर्थ दूसरा मालूम होता है कि इसका यह भी अर्थ है। जब मैंने लिखा था तो मैं नहीं जानता था। और इससे मुझे यह आभास होता है कि शायद जीवन में कोई प्रेरणाएं आती हैं, हम केवल अगर अपने आपको शून्य रखें। वैल्यूएं हमें हों तो अपने आप आ जाती हैं। Continue reading “सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-04)”

सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन

नये चित्त का जन्म

और इस जीवन की पूरी प्रफुल्लता को पूरी मुक्ति देनी पड़े और इस तरह सोचना पड़े कि एक आदमी अधिकतम कैसे सुख पा सकता है–हम वैसी जीवन-व्यवस्था भी बनाएं, वैसा परिवार भी बनाएं। लेकिन हमने जो सब ढांचा बनाया था, वह ऐसा था कि कैसे भाग जाएं। और सबके दृष्टिकोण अलग होंगे। अगर तुम इस घर को घर समझ रहे हो, तो एक बात होगी और तुम इसको वेटिंग-रूम समझ रहे हो स्टेशन का, तो बिल्कुल दूसरी बात होगी। एक वेटिंग-रूम समझने वाला आदमी इस घर के साथ दूसरा व्यवहार करेगा।

 

प्रश्नः लेकिन इन बातों को भी हमने निश्चय से तो नहीं माना, इस श्रद्धा में भी सच्चाई तो हमने कभी नहीं रही। Continue reading “सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-03)”

सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन

सृजन की शक्ति

वह बनाने वाला अलग होता है और जैसे-जैसे चित्र बनता जाता है वैसे-वैसे चित्र अलग होता जाता है। जब तक नहीं बना तब तक बनाने वाला और चित्र एक हैं। जब तक चित्र नहीं बना था तब तक चित्रकार ही है और वही चित्र भी है अभी। फिर उसने बनाया है, फिर चित्र अलग हो गया और चित्रकार अलग हो गया।

तो एक तो ऐसा सृजन है जहां स्रष्टा सृष्टि से अलग हो जाता है।

लेकिन दूसरा उदाहरण लें, एक नृत्यकार है, वह नाचता है, लेकिन नृत्य अलग नहीं होता, नृत्य और नृत्यकार एक ही रह जाते हैं। जब नहीं नाच रहा था, तब भी एक थे, अब जब नाच रहा है, तब भी एक है। और नाच बंद हो जाएगा, तो नृत्यकार ही मिलेगा, नाच कहीं खोजने से मिलने वाला नहीं है। यानी वहां क्रिएटर और क्रिएशन एक ही हैं। Continue reading “सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-02)”

सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-01)

सहज मिले अविनाशी-(अंतरंग वार्ताएं)

पहला प्रवचन

कविता और काव्य

 

घर में मैं दिन भर खोज कर कुछ नहीं पा सका, उस अंधेरे में तुम क्या खोजोगे? लेकिन आ गए हो तो कविता सुन कर जाना।

 

तुम एक ही लिबास नहीं पहन सकते

तुम एक ही लिबास नहीं पहन सकते, और वह है सफर

यानी मैं सफर पहनता हूं

यानी आज सत्ताइस बरस के इस अर्सये बे जमीन पर

महज सफर पहन कर चलता रहा हूं

और वह मैं हूं।

तुम नहीं देख सकते दिमाग के पीछे उस रोशनी को

तुम नहीं देख सकते दिमाग के पीछे उस रोशनी को Continue reading “सहज मिले अविनाशी-(प्रवचन-01)”

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