प्रार्थना की गूंज—बारहवां प्रवचन
दिनांक १० अप्रैल १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—क्या लिखूं, कुछ समझ में नहीं आता। बस प्रणाम उठता है। कैसे करूं; करना भी नहीं आता! इतना संवारा आपने, आप ही आप रह गए हैं। अहंकार आपसे ही गलेगा। गलाएं और इस पीड़ा से छुड़ाएं, यही मेरी प्रार्थना है। मेरी प्रार्थना गूंजती है, आगे भी गूंजेगी–क्या ऐसी आशा रख सकता हूं।
1—तुसी सानूं परमात्मा दे दरसन करा देओ। तुहाडी बड़ी मेहरबानी होगी! Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-12)”