रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-12)

प्रार्थना की गूंज—बारहवां प्रवचन

दिनांक १० अप्रैल १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—क्या लिखूं, कुछ समझ में नहीं आता। बस प्रणाम उठता है। कैसे करूं; करना भी नहीं आता! इतना संवारा आपने, आप ही आप रह गए हैं। अहंकार आपसे ही गलेगा। गलाएं और इस पीड़ा से छुड़ाएं, यही मेरी प्रार्थना है। मेरी प्रार्थना गूंजती है, आगे भी गूंजेगी–क्या ऐसी आशा रख सकता हूं।

1—तुसी सानूं परमात्मा दे दरसन करा देओ। तुहाडी बड़ी मेहरबानी होगी! Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-12)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-11)

समाधि के फूल—ग्यारहवां प्रवचन

दिनांक ९ अप्रैल; श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्नसार:

1—इसका रोना नहीं कि तुमने क्यों किया दिल बरबाद,

इसका गम है कि बहुत देर में बरबाद किया।

मुझको तो नहीं होश तुमको तो खबर हो शायद,

लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बरबाद किया।।

2—जीवन में तो कुछ मिला नहीं और अब मृत्यु द्वार पर खड़ी है। क्या मृत्यु में कुछ मिलेगा?

3—क्या परमात्मा तक पहुंचने के लिए दर्शन-शास्त्र पर्याप्त नहीं है? Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-11)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-10)

कस्तूरी कुंडल बसै—दसवां प्रवचन

दिनांक ८ अप्रैल, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और क्या मेरी नियति है?

2—आदर और श्रद्धा में क्या फर्क है?

3—मैं राजनीति में हूं। क्या आप मुझे भी बदलेंगे नहीं? क्या मुझ पर कृपा न करेंगे?

4—मोहम्मद ने चार शादियों की आज्ञा दी थी। आप कितनी शादियों की आज्ञा देंगे? Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-10)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-09)

अज्ञात का वरण करो—नौवां प्रवचन

दिनांक ७ अप्रैल, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—संन्यास का मार्ग अपरिचित है और भयभीत हूं। क्या करूं?

2—आप कहते हैं, अनुभव से सीखो। लेकिन हम सोए-सोए बेहोश आदमियों के अनुभव का कितना मूल्य! क्या झूठे आश्वासन दे रहे हैं? हम तो ऐसे गधे हैं जो बार-बार उसी गङ्ढे में गिरते चले जाते हैं। कृपा करके कुछ सीधा मार्ग-दर्शन दें! Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-09)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-08)

स्वानुभव ही मुक्ति का द्वार है—आठवां प्रवचन

दिनांक ६ अप्रैल; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—आप अतीत-विरोधी हैं। क्या इससे युवकों में अराजकता पैदा होने का डर नहीं है?

2—रहिमन बिआह व्याधि है, सकहु तो लेहु बचाय।

पांयन बेड़ी परत है, ढोल बजाया-बजाय।।

रहीम के इस दोहे से क्या आप सहमत हैं? Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-08)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-07)

मैं मधुशाला हूं—सातवां प्रवचन

दिनांक ५ अप्रैल १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—जार्ज गुरजिएफ अपने शिशयों का अंतरतम जाने के लिए उन्हें भरपूर शराब पिलाया करता था। और जब वे मदहोश हो जाते थे तो उनकी बातों को ध्यान से सुनता था। आप भी ऐसा क्यों नहीं करते हैं?

2—एकटक आपकी ओर देखते हुए, अपलक आपके रूप को निहारते हुए, जब आपके मुख से झरते हुए पुशपों को आंचल में भरती हूं, तब एक प्रकार का नशा। जब नशे से बोझिल होती बंद आंखों में आपकी मधुर वाणी के स्वर कानों में गुंजित होते हैं तो एक प्रकार का नशा! आप जो रस पिला रहे हैं, उसको क्या नाम दूं? Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-07)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-06)

प्रेम का मार्ग अनूठा—छठवां प्रवचन

दिनांक १ अप्रैल, १९८०; श्री रजनीश आश्रम पूना,

प्रश्नसार:

01-ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरा दरद न जाने कोय।

न मैं जानूं आरती-वंदन, न पूजा की रीत,

लिए री मैंने दो नयनों के दीपक लिए संजोय।

ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरा दरद न जाने कोय!

02-आंसुओं के सिवाय कुछ नहीं है। मैं आपको क्या चढ़ाऊं?

03-आपका युवकों के लिए क्या संदेश है?

04-शिशय और अनुयायी में क्या फर्क है? Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-06)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-05)

प्रार्थना और प्रतीक्षा—पांचवां प्रवचन

दिनांक ३१ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—और कितनी प्रतीक्षा करूं? और कितनी देर है? प्रभु-मिलन के लिए आतुर हूं और अब और विरह नहीं सहा जाता है!

2—किन अज्ञात हाथों से पैरों में घुंघरू बांध दिए हैं कि अब मैं छम-छम नचंदी फिरां!

3—आपने कहा: कमा लिटिला नियर, सिप्पा कोल्डा बियर। मैं आपसे कहता हूं: आई एम हियर, व्हेयर इज़ दि बियर? Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-05)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-04)

श्रद्धा की अनिवार्य सीढ़ी: संदेहचौथा प्रवचन

दिनांक ३० मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—क सिवाय ध्यान के आपकी हर बात को मैंने सहजता से स्वीकार नहीं किया–संन्यास भी, कपड़े भी और माला भी। हर बात पर मैंने विरोध किया, विद्रोह किया और अवज्ञा भी। बार-बार भागने को चाहा, और हर बार और ज्यादा खिंचता चला आया। फिर भी मुझ अपात्र को आपने स्वीकार किया। आज आपके प्रेम में डूबा जा रहा हूं। भीतर न कोई विरोध है, न विद्रोह; सब शांत और मौन है। फिर भी एक अपराध-भाव सताता है। प्रभु, आप जीते, मैं हारा। मुझे माफ कर दें। आपकी असीम अनुकंपा के लिए अनुगृहीत हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें! Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-04)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-03)

रसो वै सः—तीसरा प्रवचन

दिनांक 29 मार्च, 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—ईश्वर को खोजना है। कहां खोजें?

2—आप कहते हैं, संन्यासी को सृजनात्मक होना चाहिए। सो मैंने काव्य-सृजन शुरू कर दिया है। मगर कोई मेरी कविताएं सुनने को राजी नहीं है। आपका आशीष चाहिए।

3—आपकी “नारी के समान अधिकार‘ की बातें बहुत अच्छी लगीं। इसके अतिरिक्त जो आप इच्छाओं को न दबाने और उनसे न लड़ने की बात कहते हैं, वह भी हृदय को स्पर्श करती है। किन्तु इसके साथ-साथ जब आद्य शंकराचार्य, पतंजलि और तुलसी वगैरह की बातें याद आ जाती हैं तो द्वंद्व खड़ा होता है। शंकराचार्य ने नारी की निंदा किस दृशिट से की है? अद्वय ब्रह्म का अनुभवी क्या ऐसी निंदा कर सकता है? क्या वे भी केवल एक विद्वान मात्र थे, अनुभवी नहीं? पतंजलि समाधि के लिए यम-नियम पर विशेष जोर देते हैं, आप नहीं। इसका क्या कारण हैं? Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-03)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-02)

ध्यान ही मार्ग है-(दूसरा प्रवचन)

दिनांक 28 मार्च; 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—यह संसार माया है। यहां सब झूठ है। मुझे इसमें डूबने से बचाएं!

2—मैं अज्ञान में बच्चे पैदा करता चला गया। दस बच्चे हैं मेरे, अब क्या करूं?

3—वह पांचवां क क्या है? बहुत सोचा लेकिन नहीं सोच पाया। किसी और से पूछूं, हो सकता था कोई बता देता। लेकिन फिर सोचा आप से ही क्यों न पूछूं? Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-02)”

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-01)

आंसू: चैतन्य के फूल—(पहला प्रवचन)

दिनांक २७ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रशनसार:

1–आपकी पहली मुलाकात आंसुओं से हुई थी। इतने साल बीत गए हैं, आंसू अभी मिटते नहीं, मिटने की संभावना लगती नहीं। चाहती हूं इसी तरह मिट जाऊं!

जीवन व्यर्थ लगता है। मैं क्या करूं?

2–आप हमेशा “लिवा लिटिल हॉट, सिप्पा गोल्ड स्पॉट’ कहते हैं। आप इसके स्थान पर कभी ऐसा क्यों नहीं कहते–“लिव ए लिटिल हॉट, सिप ए कोल्ड बियर’? आखिर बियर में बहुत प्रोटीन रहता है। Continue reading “रहिमन धागा प्रेम का-(प्रवचन-01)”

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें