निस्चै कियो निहार—(प्रवचन—दसवां)
प्रातः; 10 अक्टूबर, 1975; श्री ओशो आश्रम, पूना.
प्रश्न सार :
1—साधना की गति बेबूझ मालूम पड़ती है। कभी सब दौड़ व्यर्थ लगती है कभी लगता है अभी यात्रा भी शुरू नहीं हुई। क्या साधना ऐसे ही चलती है?
2—क्या दर्शन के लिए विचार और समझ का कोई भी उपयोग नहीं हो सकता?
3—मेरे जैसे लोग तो जीवन की धूप-छांव से गुजरे बगैर संन्यस्त हो गए। कृपया बताएं हमारा क्या होगा? Continue reading “बिन घन परत फुहार-(प्रवचन-10)”