सुन भई साधो-(प्रवचन-20)

उपलब्धि के अंतिम चरण—(प्रवचन—बीसवां)

दिनांक: 20 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

पारब्रह्म के तेज का, कैसा है उनमान।

कहिवे को सोभा नहीं, देखा ही परमान।।

एक कहौं तो है नहीं, दोय कहौं तो गारि।

है जैसा तैसा रहे, कहै कबीर विचारि।।

ज्यों तिल माहीं तेल है, चकमक माहीं आग।

तेरा साईं तुज्झ में, जागि सकै तो जाग।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-20)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-19)

प्रार्थना है उत्सव—(प्रवचन—उन्‍नीसवां)

दिनांक: 19 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

सुख में सुमिरन ना किया, दुख में कीया याद।

कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद।।

सुमिरन सुरत लगाइके, मुख ते कछू न बोल।

बाहर के पट देइकै, अंतर के पट खोल।।

माला कर कर में फिरै, जीभ फिरै मुख माहिं। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-19)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-18)

शिष्यत्व महान क्रांति है—(प्रवचन—अट्ठारहवां)

दिनांक: 18 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

गूंगा हूवा बावला, बहरा हूवा कान।

पाऊं थैं पंगुल भया, सतगुरु मारया बान।।

माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं परंत।

कहैं कबीर गुरु ग्यान थैं, एक आध उबरंत।।

पासा पकड़ा प्रेम का, सारी किया सरीर।

सतगुरु दाव बताइया, खेलै दास कबीर।।

कबिरा हिर के रुठते, गुरु के सरने जाय। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-18)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-17)

मन रे जागत रहिये भाई—(प्रवचन—सतरहवां)

दिनांक: 17 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

मेरा तेरा मनुआ कैसे इक होइ रे।

मैं कहता हौं आंखन देखी, तू कागद की लेखी रे।।

मैं कहता सुरझावनहारी, तू राख्यो अरुझाई रे।

मैं कहता तू जागत रहियो, तू रहता है सोई रे।।

मैं कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे।

जुगन—जुगन समुझावत हारा, कहा न मानत कोई रे।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-17)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-16)

अभीप्सा की आग: अमृत की वर्षा–(प्रवचन–सोहलवां)

दिनांक: 16 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

मो को कहां ढूंढ़ो रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।

ना मैं बकरी ना मैं भेड़ी, ना मैं छुरी गंड़ास में।।

नहिं खाल में नहिं पोंछ में, ना हड्डी ना मांस में।

ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में।।

ना तो कौनो क्रिया कर्म में, नहिं जोग बैराग में।

खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।।

मैं तो रहौं सहर के बाहर, मेरी पुरी मवास में।

कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब सांसों की सांस में।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-16)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-15)

धर्म और संप्रदाय में भेद—(प्रवचन—पंद्रहवां)

दिनांक: 15 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

साधो देखो जग बौराना।

सांची कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।

हिंदू कहत है राम हमारा, मुसलमान रहमाना।

आपस में दोउ लड़े मरतु हैं, मरम कोई नहिं जाना।।

बहुत मिले मोहि नेमी धरमी, प्रात करै असनाना।

आतम छोड़ि पखाने पूजैं, तिनका थोथा ग्याना।।

आसन मारि डिम्भ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-15)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-14)

विराम है द्वार राम का—(प्रवचन—चौहदवां)

दिनांक: 14 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

घर घर दीपक बरै, लखै नहिं अंध है।

लखत लखत लखि परै, कटै जमफंद है।।

कहन सुनन कछु नाहिं, नहिं कछु करन है।

जीते—जी मरि रहै, बहुरि नहिं मरन है।।

जोगी पड़े वियोग, कहैं घर दूर है।

पासहि बसत हजूर, तू चढ़त खजूर है।।

बाह्मन दिच्छा देत सो, घर घर घालिहै।

मूर सजीवन पास, तू पाहन पालिहै।।

ऐसन साहब कबीर, सलोना आप है।

नहीं जोग नहिं जाप, पुन्न नहिं पाप है।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-14)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-13)

मन के जाल हजार—(प्रवचन—तैरहवां)

दिनांक: 13 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

चलत कत टेढ़ौ रे।

नऊं दुवार नरक धरि मूंदै, तू दुरगंधि कौ बेढ़ौ रे।।

जे जारै तौ होइ भसम तन, रहित किरम उहिं खाई।

सूकर स्वान काग को भाखिन, तामै कहा भलाई।।

फूटै नैन हिरदै नाहिं सूझै, मति एकै नहिं जानी।

माया मोह ममता सूं बांध्यो, बूड़ि मुवौ बिन पानी।।

बारू के घरवा मैं बैठो, चेतत नहिं अयांना।

कहै कबीर एक राम भगति बिन, बूड़े बहुत सयांना।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-13)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-12)

धर्म कला है—मृत्यु की, अमृत की—(प्रवचन—बारहवां)

दिनांक: 12 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

जग सूं प्रीत न कीजिए,समझि मन मेरा।

स्वाद हेत लपटाइए, को निकसै सूरा।।

एक कनक अरु कामिनी, जग में दोइ फंदा।

इन पै जो न बंधावई, ताका मैं बंदा।।

देह धरै इन मांहि बास, कहु कैसे छूटै।

सीव भए ते ऊबरे, जीवत ते लूटै।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-12)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-11)

अंतयात्र्रा के मूल सूत्र—(प्रवचन—ग्‍यारहवां)

दिनांक: 11 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

तेरा जन एकाध है कोई।

काम क्रोध अरु लोभ विवर्जित, हरिपद चीन्है सोई।।

राजस तामस सातिग तीन्यू, ये सब तेरी माया

चौथे पद को जे जन चीन्हैं, तिनहि परमपद पाया।।

अस्तुति निंदा आसा छाड़ै, तजै मान अभिमाना।

लोहा कंचन सम करि देखै, ते मूरति भगवाना।।

च्यंतै तो माधो च्यंतामणि, हरिपद रमै उदासा।

त्रिस्ना अरु अभिमान रहित हवै, कहै कबीर सो दासा।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-11)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-10)

मन मस्त हुआ तब क्यों बोले—(प्रवचन—दसवां)

दिनांक: 20 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना

सूत्र:

मस्त हुआ तब क्यों बोले।

हीरा पायो गांठ गठियायो, बारबार बाको क्यों खोले।

हलकी थी तब चढ़ी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोले।।

सुरत कलारी भई मतवारी, मदवा पी गई बिन तोले।

हंसा पाये मानसरोवर, तालत्तलैया क्यों डोले।।

तेरा साहब है घर मांही, बाहर नैना क्यों खोले।

कहै कबीर सुनो भाई साधो, साहब मिल गए तिल ओले।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-10)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-09)

रस गगन गुफा में गजर झरै—(प्रवचन—नौवां)

दिनांक: 19 नवंबर 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना

सूत्र:

रस गगन गुफा में अगर झरै।

बिन बाजा झनकार उठे जहां, समुझि परै जब ध्यान धरै।।

बिना ताल जहं कंवल फुलाने, तेहि चढ़ि हंसा केलि करै।

बिन चंदा उजियारी दरसै, जहं तहं हंसा नजर परै।।

दसवें द्वार तारी लागी, अलख पुरुष जाको ध्यान धरै।

काल कराल निकट नहिं आवै, काम—क्रोध—मद—लोभ जरै।।

जुगत—जुगत की तृषा बुझानी कर्म—कर्म अध—व्याधि टरै।

कहै कबीर सुनो भाई साधो, अमर होय कबहूं न मरै।।

धर्म है अमृत की खोज। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-09)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-08)

सुनो भाई साधो—(प्रवचन—आठवां)

दिनांक: 18 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना

सूत्र:

संतों जागत नींद न कीजै।

काल न खाय कलप नहि व्यापै, देह जरा नहि छीजै।।

उलट गंग समुद्र ही सौखे, ससिं ओ सूरहि ग्रासै।

नवग्रह मारि रोगिया बैठे, जल, मंह बिंब प्रगासै।।

बिनु चरनन को दहं दिसि धावै, बिनु लोचन जग सूझै।

ससै उलटि सिंह कंह ग्रासै, ई अचरज को बूझै।।

औंधे घड़ नहीं जल बूड़ै, सूधे सों जल भरिया। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-08)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-07)

घूंघट के पट खोल रे—(प्रवचन—सातवां)

दिनांक: 17 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना

सूत्र:

घूंघट का पट खोल रे, तो को पीव मिलेंगे।

घट घट में वह साईं रमता, कटुक वचन मत बोल रे।।

धन जोवन को गरब न कीजै, झूठा पचरंग बोल रे।

सुन्न महल में दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे।।

जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे।

कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे।।

कबीर के पद पहले, कुछ बातें समझ लें। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-07)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-06)

भक्ति का मारग झीनी रे—(प्रवचन—छठवां)

दिनांक: 16 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना।

सूत्र:

भक्ति का मारग झीना रे।

नहिं अचाह नहिं चाहना, चरनन लौ लीना रे।

साधन के रसधार में रहै, निसदिन भीना रे।।

राम में श्रुत ऐसे बसै, जैसे जल मीना रे।

साईं सेवत में देइ सिर, कुछ विलय न कीना रे।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-06)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-05)

झीनी झीनी बिनी चदरिया—(प्रवचन—पांचवां)

दिनांक: 15 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना

सूत्र:

झीनी झीनी बिनी चदरिया

काहे के ताना काहे के भरनी, कौन तार से बिनी चदरिया।

इंगला पिंगला ताना भरनी, सुषमन तार से बिनी चदरिया।।

आठ कंवल दस चरखा डोले, पांच तत्तगुन तिनी चदरिया।

सांई को सीयत मास दस लागै, ठोक ठोक के बिनी चदरिया।।

सोई चादर सुर न मुनि ओढ़ी, ओढ़ी के मैली किनी चदरिया।

दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-05)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-04)

गुरु कुम्हार सिष कुंभ है—(प्रवचन—चौथा)

दिनांक: 14 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना

सूत्र:

गुरु मानुष करि जानते, ते नर कहिए अंध।

महादुखी संसार में, आगे जम के बंध।।

तीन लोक नौ खंड में, गुरु ते बड़ा न कोय।

करता करै न करि सकै, गुरु करै सो होय।।

गुरु समान दाता नहिं, जाचक सिष समान।

तीन लोक की संपदा, सो गुरु दीन्हा दान।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-04)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-03)

अपन पौ आपु ही बिसरो—(प्रवचन—तीसरा)

दिनांक: 13 नवंबर, 1974;

श्री ओशो आश्रम, पूना.

सूत्र:

अपन पौ आपु ही बिसरो।

जैसे श्वान कांच मंदिर मह, भरमते भुंकि मरो।।

जौं केहरि बपु निरखि कूपजल, प्रतिमा देखि परो।

वैसे ही गज फटिक सिला पर, दसनन्हि आनि अरो।।

मरकट मूठि स्वाद नहिं बिहुरै, घर घर रटत फिरो।

कहहिं कबीर ललनि के सुगना, तोहि कवने पकड़ो।।

सूत्र में प्रवेश के पहले कुछ आधारभूत बातें समझ लेनी जरूरी है। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-03)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-02)

मन गोरख मन गोविन्दौ—(प्रवचन—दूसरा)

दिनांक: 12 नवंबर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना.

सूत्र:

मन माया तो एक है, माया मनहिं समाय।

तीन लोक संशय पड़ा, काहिं कहूं समुझाय।।

बेढ़ा दीन्हों खेत को, बेढ़ा खेतहि खाय।

तीन लोक संशय पड़ा, काहिं कहूं समुझाय।।

मन जानै सब बात, जानत ही औगुन करै।

काहे की कुसलात, कर दीपक कुंबै पड़ै।।

मन सागर मनसा लहरि, बूड़ै बहुत अचेतन।

कहहिं कबीर ते बांचि हैं, जिनके हृदय विवेक।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-02)”

सुन भई साधो-(प्रवचन-01)

माया महाठगिनी हम जानी—(प्रवचन—पहला)

दिनांक: 11 नवम्बर, 1974; श्री ओशो आश्रम, पूना.

सूत्र:

माया महाठगिनी हम जानी।

निरगुन फांस लिए डोलै, बोलै मधुरी बानी।।

केसव के कमला होइ बैठी, सिव के भवन भवानी।

पंडा के मूरत होइ बैठी, तीरथ हू में पानी।।

जोगि के जोगिन होइ बैठी, राजा के घर रानी।

काहू के हीरा होइ बैठी, काहू के कौड़ी कानी।। Continue reading “सुन भई साधो-(प्रवचन-01)”

सुनो भई साधो-(कबीरदास)-ओशो

सुनो भई साधो—(कबीरदास)–ओशो

कबीर दास के अमृृृत वचनों पर फिर से एक बार ओशो के दिये गये बीस अमुुुुल्यप्रवचनों को संकलन, जो दिनांक 11-11-1974  से 20-11-1974 ओर 11 मार्च 1974 से 20 मार्च 1974 तक पूना आश्रम ।

बीर अनूठे हैं। और प्रत्येक के लिए उनके द्वारा आशा का द्वार खुलता है। क्योंकि कबीर से ज्यादा साधारण आदमी खोजना कठिन है। और अगर कबीर पहुंच सकते हैं, तो सभी पहुंच सकते हैं। कबीर निपट गंवार हैं, इसलिए गंवार के लिए भी आशा है; बे—पढ़े—लिखे हैं, इसलिए पढ़े—लिखे होने से सत्य का कोई भी संबंध नहीं है। जाति—पाति का कुछ ठिकाना नहीं कबीर की—शायद मुसलमान के घर पैदा हुए, हिंदू के घर बड़े हुए। इसलिए जाति—पाति से परमात्मा का कुछ लेना—देना नहीं है। Continue reading “सुनो भई साधो-(कबीरदास)-ओशो”

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