मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-10)

सत्संग का संगीत—(प्रवचन—बीसवां)

दिनांक 8 जून, 1975, प्रातः, ओशो कम्यून इंटरनेशनल, पूना

प्रश्नसार :

1—आपकी भक्ति साधना में प्रार्थना का क्या स्थान होगा?

2–कबीर पर बोलते हुए आपने सत्संग पर बहुत जोर दिया। आज के परिप्रेक्ष्य में सत्संग पर कुछ और प्रकाश डालेंगे?

3—समर्पण कब होता है?

पहला प्रश्न :

संत कबीर पर बोलते हुए आपने भक्ति को बहुत-बहुत महिमा दी। लेकिन कबीर की भक्ति तो जगह-जगह प्रार्थना करती मालूम होती है। यथा–“आपै ही बहि जाएंगे जो नहिं पकरौ बांहि।” और आपने प्रार्थना को भी ध्यान बना दिया है। आपकी भक्ति-साधना में प्रार्थना का क्या स्थान होगा? Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-10)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-09)

सुरति करौ मेरे सांइयां—(प्रवचन—उन्‍नीसवां)

दिनांक 8 जून, 1975, प्रातः,ओशो कम्यून इंटरनेशनल, पूना

सारसूत्र :

सुरति करौ मेरे सांइयां, हम हैं भवजल मांहि।

आपे ही बहि जाएंगे, जे नहिं पकरौ बाहिं।।

अवगुण मेरे बापजी, बकस गरीब निवाज।

जे मैं पूत कपूत हों, तउ पिता को लाज।।

मन परतीत न प्रेम रस, ना कछु तन में ढंग।

ना जानौ उस पीव सो, क्यों कर रहसी रंग।।

मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कछु है सो तोर।

तेरा तुझको सौंपते, क्या लागत है मोर।।  Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-09)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-08)

गंगा एक घाट अनेक—(प्रवचन—अट्ठारहवां)

दिनांक 8 जून, 1975, प्रातः,ओशो कम्यून इंटरनेशनल, पूना

प्रश्नसार :

1—जब आप पूना आए। तब यहां कुछ तोते थे; लेकिन अब एक वर्ष में ही न जाने कितने प्रकार के पक्षी यहां आ गए। क्या ये आपके कारण आ गए हैं? क्या आपका उनसे भी कोई विगत जन्म का वादा है?

2—आपसे प्रश्नों का समाधान तो मिलता है, पर समाधि घटित नहीं हो पा रही है। क्या करूं?

3—ज्ञानी का मार्ग भक्त के मार्ग से क्या सर्वथा भिन्न है? यदि होश हो तो प्रेम कैसे घटेगा?

4—कबीर किस गुरु के प्रसाद से आनंद विभोर हुए जा रहे हैं?

5—सत्य की उपलब्धि भीतर, फिर बाहर समर्पण पर इतना जोर क्यों? Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-08)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-07)

उनमनि चढ़ा गगन-रस पीवै—(प्रवचन—सातवां)

दिनांक 7 जून, 1975, प्रातः, ओशो कम्यून इंटरनेशनल, पूना

सारसूत्र :

अवधू मेरा मन मतिवारा।

उनमनि चढ़ा गगन-रस पीवै, त्रिभुवन भया उजियारा।। 

गुड़ करि ग्यान ध्यान करि महुआ, व भाठी करि भारा। 

सुखमन नारी सहज समानी, पीवै पीवन हारा।। 

दोउ पुड़ जोड़ि चिंगाई भाठी, चुया महारस भारी। 

काम क्रोध दोइ किया बलीता, छूटि गई संसारी।। 

सुंनि मंडल में मंदला बाजै, तहि मेरा मन नाचै। 

गुरु प्रसादि अमृत फल पाया, सहजि सुषमना काछै।।

पूरा मिल्या तबै सुख उपज्यौ, तन की तपनि बुझानी। 

कहै कबीर भव-बंधन छूटै, जोतिहिं जोति समानी।। Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-07)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-06)

सुरति का दीया—(प्रवचन—छट्टवां)

दिनांक 6 जून, 1975, प्रातः, ओशो कम्यून इंटरनेशनल, पूनां

प्रश्नसार:

1—ज्ञानी साथ साथ रोता और हंसता है। क्या देखकर रोता है और क्या देखकर हंसता है?

2—क्या हम सबकी मनःस्थितियों को देखकर भी आप कह सकते हैं “साधो सहज समाधि भली”?

3—आपके पास कभी-कभी अकारण सघन पीड़ा का अनुभव। यह क्या है?

4—कृपया बताएं, कि ऊंट किस करवट बैठे? Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-06)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-05)

पांचवां– प्रवचन

आई ज्ञान की आंधी

सारसूत्र:

संतों भाई आई ज्ञान की आंधी रे।

भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बांधी।।

हिति-चत की द्वै थूनी गिरानी, मोह बलींदा तूटा।

त्रिस्ना छानि परी घर ऊपरि, कुबुधि का भांडा फूटा।।

जोग जुगति करि संतौ बांधी निरचू चुवै न पानी।

कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जानी।।

आंधी पीछे जो जल बूढ़ा, प्रेम हरी जन भीना।

कहै कबीर भान के प्रकटे उदित भया तम खीना।। Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-05)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-04)

चौथा– प्रवचन

गुरु-शिष्य दो किनारे

प्रश्नसार :

01-सबके इतने सारे प्रश्न पाकर क्या आप धर्म-संकट में नहीं पड़ते?

02-न संदेह को बढ़ा सकता हूं; न श्रद्धा को शुद्ध कर सकता हूं; ऐसे में क्या करूं?

03-भाव और विचार में कब और कैसे सही-सही फर्क करें।

04-मन में कई प्रश्न का उठना किंतु न पूछने का भाव।

05-जीवन में गहन पीड़ा का अनुभव। फिर भी वैराग्य का जन्म क्यों नहीं? Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-04)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-03)

तीसवां –प्रवचन

पिया मिलन की आस

सारसूत्र:

आंखरिया झांई पड़ी, पंथ निहार निहार।

जीभड़िया छाला पड़ा, राम पुकारि पुकारि।।

इस तन का दीवा करौं, बाती मैल्यूं जीव। .

लोही सीचौं तेल ज्यूं, कब मुख देख्यौं पीव।।

सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै।

दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।।

नैन तो झरि लाइया, रहंट बहै निसुवार।

पपिहा ज्यों पिउ फिउ रटै, पिया मिलन की आस।।

कबीरा वैद बुलाइया, पकरि के देखो बांहि।

वैद न वेदन जानई, करक कलेजे मांहि।। Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-03)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-02)

दूसरा–प्रवचन

गुरु मृत्यु है

प्रश्न-सार:

01-सूत्रों की अपेक्षा हमारे प्रश्नों के उत्तर में आपके प्रवचन अधिक अच्छे लगते हैं। ऐसा क्यों?

02-झटका क्यों, हलाल क्यों नहीं?

03-शिक्षक देता है ज्ञान और गुरु देता है ध्यान। ध्यान देने का क्या अर्थ है?

04-आपके सतत बोलने में मिटाने की कौन सी प्रक्रिया छिपी है?

05-आपने कहा, शिष्य की जरूरत और स्थिति के अनुसार सदगुरु मार्ग-दर्शन करता है। आपके कथन में आस्था के बावजूद मार्गनिर्देशन के अभाव की प्रतीति।

06-आशा से आकाश टंगा है। क्या आशा छोड़ने से आकाश गिर न जाएगा?

07-क्या ब्राह्मणों ने जातिगत पूर्वाग्रह के कारण कबीर को अस्वीकार कर दिया? Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-02)”

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-01)

मेरा मुझमें कुछ नहीं-(कबीरदास)

पहला– प्रवचन

करो सत्संग गुरुदेव से

संत कबीर की वाणी पर ओशो जी द्वारा बोले गये दस अमृत प्रवचनों का संकलन जो दिनांक १ जून, १९७५, प्रातः, ओशो कम्यून इंटरनेशनल, पूना

सारसू्त्र :

गुरुदेव बिन जीव की कल्पना ना मिटै।

गुरुदेव बिन जीव की भला नाहिं।।

गुरुदेव बिन जीव का तिमिर नासै नहिं।

समझि विचार लै मन माहि।।

रहा बारीक गुरुदेव तें पाइये।

जनम अनेक की अटक खोलै।।

कहै कबीर गुरुदेव पूरन मिलै।

जीव और सीव तब एक तोलै।।

करो सतसंग गुरुदेव से चरन गहि।

जासु के दरस तें भर्म भागै।।

सील औ सांच संतोष आवै दया।

काल की चोट फिर नाहिं लागै।।

काल के जाल में सकल जीव बांधिया।

बिन ज्ञान गुरुदेव घट अंधियारा।।

कहै कबीर बिन जन जनम आवै नहीं।

पारस परस पद होय न्यारा।। Continue reading “मेरा मुझमें कुछ नहीं-(प्रवचन-01)”

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