मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो
सत्र-सौलहवां
ओ. के.। पोस्ट-पोस्टस्क्रिप्ट में मैं कितनी पुस्तकों के बारे में चर्चा कर चुका हूं? हूंऽऽऽ…?
‘‘चालीस, ओशो।’’
चालीस?
‘‘हां, ओशो।’’
तुम्हें पता है कि मैं एक जिद्दी आदमी हूं। चाहे कुछ भी हो जाए मैं इसे पचास तक पूरा करके रहूंगा; वरना दूसरा पोस्ट-पोस्ट-पोस्टस्क्रिप्ट प्रारंभ कर दूंगा। सच में मेरी जिद ने ही मुझे लाभ पहुंचाया है: दुनिया में जो हर प्रकार की बकवास भरी पड़ी है, उससे मुकाबला करने में मुझे इससे मदद मिली है। दुनिया में हर जगह हर किसी के चारों ओर यह जो अति सामान्य योग्यता वाला आदमी है, उसके विरुद्ध अपनी बुद्धिमत्ता को बचाए रखने में इसने मेरी काफी मदद की है। इसलिए मैं इस बात से बिलकुल भी दुखी नहीं हूं कि मैं जिद्दी हूं; असल में, मैं भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं कि उसने मुझे इस तरह से बनाया है: पूरी तरह से जिद्दी। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-16)”