मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-16)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-सौलहवां

 ओ. के.। पोस्ट-पोस्टस्क्रिप्ट में मैं कितनी पुस्तकों के बारे में चर्चा कर चुका हूं? हूंऽऽऽ…?

‘‘चालीस, ओशो।’’

चालीस?

‘‘हां, ओशो।’’

तुम्हें पता है कि मैं एक जिद्दी आदमी हूं। चाहे कुछ भी हो जाए मैं इसे पचास तक पूरा करके रहूंगा; वरना दूसरा पोस्ट-पोस्ट-पोस्टस्क्रिप्ट प्रारंभ कर दूंगा। सच में मेरी जिद ने ही मुझे लाभ पहुंचाया है: दुनिया में जो हर प्रकार की बकवास भरी पड़ी है, उससे मुकाबला करने में मुझे इससे मदद मिली है। दुनिया में हर जगह हर किसी के चारों ओर यह जो अति सामान्य योग्यता वाला आदमी है, उसके विरुद्ध अपनी बुद्धिमत्ता को बचाए रखने में इसने मेरी काफी मदद की है। इसलिए मैं इस बात से बिलकुल भी दुखी नहीं हूं कि मैं जिद्दी हूं; असल में, मैं भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं कि उसने मुझे इस तरह से बनाया है: पूरी तरह से जिद्दी। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-16)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-15)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-पंद्रहवां

ओ. के.। आज की इस पोस्टस्क्रिप्ट में जिस पहली पुस्तक के बारे में मैं चर्चा करने जा रहा हूं, उसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगाकि मैं उसकी चर्चा करूंगा। वह है महात्मा गांधी की आत्मकथा: ‘माइ एक्सपेरिमेंट्‌स विद ट्रूथ’–सत्य के साथ मेरे प्रयोग।’ सत्य के उनके प्रयोगों के बारे में चर्चा करना सच में अदभुत है। यह सही समय है।

आशु, तुम अपना काम जारी रखो; वरना मैं महात्मा गांधी की निंदा करना शुरू कर दूंगा। काम जारी रखो ताकि मैं इस बेचारे के प्रति नरम रह सकूं। अब तक तो मैं कभी भी नरम नहीं रहा। महात्मा गांधी के प्रति थोड़ा नरम रहने में शायद तुम मेरी मदद कर सको। हालांकि मुझे पता है कि यह लगभग असंभव है। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-15)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-14)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-चौदहवां

मुझे पता चला है, देवगीत, सुबह तुम बहक कर आपे से बाहर हो गए थे। कभी-कभी बहक जाना एक अच्छा व्यायाम है, लेकिन आपे से बाहर होने का मैं समर्थन नहीं करता हूं। यह एक सामान्य बात है–जिसे गार्डन वैरायटी भी कह सकते हैं। बहको भीतर की ओर! यदि तुम्हें बहकना ही है, तो आपे से बाहर क्यों? स्वयं के भीतर क्यों नहीं? यदि तुम भीतर की ओर बहक जाओ तो ओशो दीवाने बन जाओे, और यह मूल्यवान है। तुम ओशो दीवाना होने के मार्ग पर हो, लेकिन तुम बहुत सावधानीपूर्वक चल रहे हो; कहना चाहिए वैज्ञानिक ढंग से, तर्कसंगत उपाय से। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-14)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-13)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-तेहरवां

आज की पहली पुस्तक है: इरविंग स्टोन की ‘लस्ट फॉर लाइफ’–‘जीवेषणा।’ यह विनसेंट वानगॉग के जीवन पर आधारित एक उपन्यास है। स्टोन ने  इतना अदभुत कार्य किया है कि मुझे याद नहीं आता कि किसी और ने इस तरह का कार्य किया हो। किसी ने भी किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में इतनी अंतरंगता से नहीं लिखा है, जैसे कि वह अपने ही खुद के अस्तित्व के बारे में लिख रहा हो।

‘लस्ट फॉर लाइफ’ मात्र एक उपन्यास नहीं है, यह एक आध्यात्मिक पुस्तक है। मेरे अर्थ में यह आध्यात्मिक है, क्योंकि मेरी दृष्टि में कोई केवल तभी आध्यात्मिक हो सकता है जब जीवन के सभी आयाम एक साथ संयुक्त हों। यह पुस्तक इतनी खूबसूरती से लिखी गई है कि इरविंग स्टोन स्वयं कभी इससे बेहतर लिख पाएगा इसकी दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-13)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-12)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-बारहवां

ओ. के., अब यह पोस्ट-पोस्टस्क्रिप्ट है। मेरी परेशानी समझना मुश्किल है। जहां तक मुझे याद है मैं हमेशा से पढ़ता ही रहा हूं और दिन हो कि रात हो मैंने पढ़ने के सिवाय और कुछ भी नहीं किया है, लगभग आधी शताब्दी मैं पढ़ता ही रहा हूं। इसलिए स्वभावतः, किसी पुस्तक का चुनाव करना करीब-करीब एक असंभव सा कार्य है। लेकिन मैंने इन सत्रों में यह काम जारी रखा है, इसलिए जिम्मेवारी तुम्हारी है। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-12)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-11)

मेरी प्रिय पुस्तकेंओशो

सत्र-ग्यारहवीं

 ओ. के.। पोस्टस्क्रिप्ट में अब तक मैंने कितनी पुस्तकों के बारे में बताया होगा?

‘‘अब तक चालीस पुस्तकें पोस्टस्क्रिप्ट में हो गई हैं, ओशो।’’

ठीक है। मैं एक जिद्दी आदमी हूं।

 पहली: कॉलिन विलसन की दि आउटसाइडर।यह इस सदी की सबसे प्रभावशाली पुस्तकों में से एक है–लेकिन आदमी साधारण है। वह अदभुत क्षमतावानविद्वान है, और हां, यहां-वहां कुछ अंतर्दृष्टियां हैं–लेकिन पुस्तक सुंदर है। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-11)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-10)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-दसवां

ओ. के., मैंने पोस्टस्क्रिप्ट में कितनी किताबों के बारे में बात कर ली है–चालीस?

‘‘मेरे खयाल से, तीस, ओशो।’’

तीस? अच्छा है। कितनी राहत की बात है यह, क्योंकि बहुत सारी पुस्तकें अभी भी प्रतीक्षा कर रही हैं। जो राहत मुझे मिली है उसको तुम केवल तभी समझ सकते हो जब तुम्हें हजार में से एक पुस्तक को चुनना हो। और ठीक यही कार्य मैं कर रहा हूं। पोस्टस्क्रिप्ट जारी है… Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-10)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-09)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-नौवां

 अब मेरा समय है। मुझे नहीं लगता है कि किसी ने भी एक दंत-चिकित्सक की कुर्सी पर बैठ कर बोला होगा। यह मेरा विशेषाधिकार है। मैं देख रहा हूं कि संबुद्ध लोगों को भी मुझसे ईर्ष्या हो रही है।

पोस्टस्क्रिप्ट जारी है…

 आज की पहली पुस्तक: हास की दि डेस्टिनी ऑफ दि माइंड।मुझे पता नहीं कि उसके नाम का उच्चारण कैसे किया जाता है: एच-ए-ए-एस–मैं उसे हास कहूंगा। यह पुस्तक बहुत प्रसिद्ध नहीं है, इसका सीधा सा कारण यह है कि यह बहुत गहरी है। मुझे लगता है कि यह व्यक्ति हास जर्मन होना चाहिए; फिर भी उसने अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। वह कवि नहीं है, वह एक गणितज्ञ की तरह लिखता है। यही वह व्यक्ति है जिससे मैंने फिलोसियाशब्द पाया है। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-09)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-08)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो 

सत्र–आठवां

एक साधक बनो–एक खोजी। पोस्टस्क्रिप्ट, पश्चलेख जारी है।

 पहली किताब है फ्रेड्रिक नीत्शे की: विल टु पॉवर। जब तक वह जीवित था, इसे प्रकाशित नहीं किया गया। यह उसके मरने के बाद प्रकाशित हुई, और इस बीच, पुस्तक के छपने से पहले ही, तुम्हारे बहुत से तथाकथित महान व्यक्ति इसकी पाडुंलिपी से चोरी कर चुके थे।

अल्फ्रेड एडलर महानतममनोवैज्ञानिकों में से एक था। मनोवैज्ञानिकों की त्रिमूर्ति में से वह एक था: फ्रायड, जुंग और एडलर। वह बस एक चोर है। एडलर ने अपना पूरा मनोविज्ञान फ्रेड्रिक नीत्शे से चुराया है। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-08)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-07)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र–सातवां

ओ. के.। मैं तुम्हारी नोटबुक के खुलने की आवाज सुन रहा हूं। अब यह एक घंटे का समय मेरा है, और मेरे एक घंटे में साठ मिनट नहीं होते। वे कुछ भी हो सकते हैं–साठ, सत्तर, अस्सी, नब्बे, सौ… या संख्याओं के पार भी। यदि यह एक घंटा मेरा है तो इसे मेरे साथ संगति बिठानी होगी, इससे विपरीत नहीं हो पाएगा।

पोस्टस्क्रिप्ट, पश्चलेख जारी है।

आज का जो पहला नाम है: मलूक, इस नाम को पश्चिम में किसी ने सुना भी नहीं होगा। वे भारत के अत्यंय महत्वपूर्ण रहस्यदर्शियों में से एक हैं। उनका पूरा नाम है, मलूकदास, लेकिन वे अपने को केवल मलूक कहते हैं, जैसे कि वे कोई बच्चे हों–और वे सच में ही बच्चे थे, ‘बच्चे जैसे’ नहीं। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-07)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-06)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-छठवां

अब पोस्टस्क्रिप्ट, पश्चलेख। पिछले सत्र में जब मैंने कहा था कि यह उन पचास पुस्तकों की श्रृंखला का अंत है, जिनको मुझे अपनी सूची में शामिल करना था, यह तो मैंने बस ऐसे ही कह दिया था। मेरा मतलब यह नहीं था कि मेरी प्रिय पुस्तकों का अंत हो गया है, बल्कि संख्या से था। मैंने इसलिए पचास चुनी थी, क्योंकि मुझे लगा कि वह एक सही संख्या होगी। फिर भी निर्णय तो लेना ही पड़ता है, और सभी निर्णय स्वैच्छिक होते हैं। लेकिन आदमी प्रस्ताव रखता है और परमात्मा निपटारा करता है–परमात्मा, जो कि है नहीं। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-06)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-05)

मेरी प्रिय पुस्तकें–ओशो 

सत्र—पांचवां

अब काम शुरू होता है…

‘‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा–अब ब्रह्म की जिज्ञासा’’… इस तरह से बादरायण अपनी महान पुस्तक की शुरुआत करते हैं, शायद महानतम। बादरायण की पुस्तक प्रथम है जिस पर आज मैं बोलने जा रहा हूं। वे अपनी महान पुस्तक ‘ब्रह्मसूत्र’ का प्रारंभ इस वाक्य से करते हैं: ‘‘ब्रह्म की जिज्ञासा।’’ पूरब में सभी सूत्र हमेशा इसी तरह से शुरू होते हैं ‘‘अब… अथातो’’ कह कर, इससे अन्यथा कभी नहीं। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-05)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-04)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-चौथा

ओ. के.। नोट्‌स लिखने के लिए तैयार हो जाओ।

देवगीत जैसे लोग अगर न होते तो संसार से बहुत कुछ खो जाता। यदि प्लेटो ने नोट्‌स न लिखे होते तो सुकरात के बारे में हम कुछ भी नहीं जान पाते, न बुद्ध के बारे में, न ही बोधिधर्म के बारे में। जीसस के बारे में भी उनके शिष्यों के नोट्‌स के माध्यम से पता चलता है। कहा जाता है कि महावीर एक शब्द कभी नहीं बोले। मैं यह जानता हूं कि ऐसा क्यों कहा जाता है। ऐसा नहीं है कि वे एक शब्द भी नहीं बोले, लेकिन संसार से सीधे उनका संवाद कभी नहीं रहा। शिष्यों के नोट्‌स के माध्यम से ही जानकारी प्राप्त हुई। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-04)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-03)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-तीसरा

अब मेरा काम शुरू होता है। यह कैसा मजाक है! सबसे बड़ा मजाक यह कि चीनी संत सोसान मेरी चेतना का द्वार खटखटा रहे थे। ये संत भी बड़े अजीब होते हैं। तुम कुछ नहीं कह सकते कि कब ये तुम्हारे दरवाजे खटखटाने लगें। तुम अपनी प्रेमिका के साथ प्रेम कर रहे हो और सोसान लगे दरवाजा खटखटाने। वे कभी भी आ जाते हैं–किसी भी समय–वे किसी शिष्टाचार में विश्वास नहीं करते। और वे मुझसे क्या कह रहे थे? वे कह रहे थे कि तुमने मेरी पुस्तक शामिल क्यों नहीं की?’ Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-03)”

मेरी प्रिय पुस्तकें-सत्र-02

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र–दूसरा

मैं क्षमा चाहता हूं, क्योंकि कुछ पुस्तकों का उल्लेख आज सुबह मुझे करना चाहिए था, लेकिन मैंने किया नहीं। जरथुस्त्र, मीरदाद, च्वांग्त्सु, लाओत्सु, जीसस और कृष्ण से मैं इतना अभिभूत हो गया था कि मैं कुछ ऐसी पुस्तकों को भूल ही गया जो कि कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। मुझे भरोसा नहीं आता कि खलील जिब्रान की ‘दि प्रोफेट’ को मैं कैसे भूल गया। अभी भी यह बात मुझे पीड़ा दे रही है। मैं निर्भार होना चाहता हूं–इसीलिए मैं कहता हूं मुझे दुख है, किंतु किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-सत्र-02”

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-01)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र–पहला 

अतिथि, आतिथेय, श्वेत गुलदाउदी… यही वे क्षण हैं, श्वेत गुलाबों जैसे, उस समय कोई न बोले:

न तो अतिथि,

न ही आतिथेय…

केवल मौन।

लेकिन मौन अपने ही ढंग से बोलता है, आनंद का, शांति का, सौंदर्य का और आशीषों का अपना ही गीत गाता है; अन्यथा न तो कभी कोई ‘ताओ तेह किंग’ घटित होती और न ही कोई ‘सरमन ऑन दि माउंट।’ इन्हें मैं वास्तविक काव्य मानता हूं जब कि इन्हें किसी काव्यात्मक ढंग से संकलित नहीं किया गया है। ये अजनबी हैं। इन्हें बाहर रखा गया है। एक तरह से यह सच भी है: इनका किसी रीति, किसी नियम, किसी मापदंड से कुछ लेना-देना नहीं है; ये उन सबके पार हैं, इसलिए इन्हें एक किनारे कर दिया गया है। Continue reading “मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-01)”

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें