मानवीय पहलूयुक्त भगवत्ता के प्रतीक कृष्ण—(प्रवचन—ग्यारहवां)
दिनांक 30 सितंबर, 1970; संध्या, मनाली (कुल्लू)
“भगवान श्री, कृष्णा अर्थात द्रौपदी के चरित्र को लोग बड़ी गर्हित दृष्टि से देखते हैं, तथा कृष्ण का उससे वृहत अनुराग है। इस सब की चर्चा करें और आज के संदर्भ में द्रौपदी का चरित्र स्पष्ट करें।’
पुरुषों के व्यक्तित्व में जैसे कृष्ण को समझना उलझन की बात है, वैसे ही स्त्रियों के व्यक्तित्व में द्रौपदी को समझना भी उलझन की बात है। और लोगों को जो गर्हित दिखाई पड़ता है, उनके दिखाई देने में वे अपने संबंध में ज्यादा खबर देते हैं, द्रौपदी के संबंध में कम। जो हमें दिखाई पड़ता है, वह हमारे संबंध में खबर होती है। हम वही देख पाते हैं, जो हम हैं। हम अपने अतिरिक्त और कुछ भी नहीं देख पाते हैं। Continue reading “कृष्ण-स्मृति-(प्रवचन–11)”