अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-10)

अनंत भजनों का फल : सुरित-प्रवचन-दसवां

दिनांक 30 जूलाई 1977, ओशो आश्रम पूना।

प्रश्नसार:

1-क्या भजन जब पूरा हो जाता है, तब जो शेष रह जाता है, वही सुरति है?

2-रामकृष्ण परमहंस अपने संन्यासियों को कामिनी और कांचन से दूर रहने के लिए सतत चेताते रहते थे। आप प्रगाढ़ता से भोगने को कहते हैं। इस फर्क का कारण क्या है?

3-जहां ज्ञानी मुक्ति या मोक्ष की महिमा बखानते हैं, वहां भक्त उत्सव और आनंद के गीत गाते हैं। ऐसा क्यों है?

4-आपने कहा कि तुम जो भी करोगे गलत ही करोगे, क्योंकि तुम गलत हो। ऐसी स्थिति में आप हमें साफ-साफ क्यों नहीं बताते कि हम क्या करें? Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-10)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-09)

भक्ति आंसुओ से उठी एक पूकार-प्रवचन-नौवा

दिनांक 29 जुलाई, 1977 ओशो आश्रम पूना।

सारसूत्र:

सोई सती सराहिए, जरै पिया के साथ।।

जरै पिया के साथ, सोइ है नारि सयानी।

रहै चरन चित लाय, एक से और न जानी।।

जगत् करै उपहास, पिया का संग न छोड़ै।

प्रेम की सेज बिछाय, मेहर की चादर ओढ़ै।

ऐसी रहनी रहै तजै जो भोग-विलासा।

मारै भूख-पियास याद संग चलती स्वासा।। Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-09)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-08)

धर्म का जन्म..एकांत में—प्रवचन-आठवां

प्रशनसार-

1-क्या ध्यान की तरह भक्ति भी एकाकीपन से ही शुरू होती है?

2-पलटूदास जी कहते हैं : “लगन-महूरत झूठ सब, और बिगाड़ैं काम’। और नक्षत्र-विज्ञान कहता है कि लग्न-मुहूर्त से काम बनने की संभावना बढ़ जाती है?

3-काम पकने पर उसमें रुचि क्षीण होने लगती है। प्रेम पकने पर क्या होता है?

4-सब कुछ दांव पर लगा देने का क्या अर्थ है?

5-प्रबल जीवेषणा के होते हुए भी किस भांति भक्त को अपने हाथ से अपना सीस उतारना संभव होता है?

6-संत पलटूदास उसे गंवार कहते हैं जो जगत् की झूठी माया में फंसा है और उसे बेवकूफ, जो प्रेम की ओर कदम बढ़ाता है। फिर बुद्धिमान कौन है? Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-08)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-07)

सहज आसिकी नाहिं—(प्रवचन—सातवां)

दिनांक 27 जूलाई, 1977;   श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सारसूत्र:

सीस उतारै हाथ से, सहज आसिकी नाहिं।।

सहज आसिकी नाहिं, खांड खाने को नाहीं।

झूठ आसिकी करै, मुलुक में जूती खाहीं।।

जीते जी मरि जाय, करै ना तन की आसा।

आसिक का दिन रात रहै सूली उपर बासा।।

मान बड़ाई खोय नींद भर नाहीं सोना।

तिलभर रक्त न मांस, नहीं आसिक को रोना।। Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-07)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-06)

जानिये तो देव, नहीं तो पत्‍थर—(प्रवचन—छठवां)

दिनांक 26 जुलाई, 1977;  श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍न सार:

1—कहावत हैः”मानिए तो देव, नहीं तो पत्थर’। क्या सब मानने की ही बात है?

2—आपके पास रहकर भी मुझे अपने को मिटाने में भय लगता है। मैं अपना यह भय कैसे दूर करूं?

3—मन से मुक्त होना असंभव-सा लगता है। हमें पता भी नहीं चलता कि मन कई तरह की वासनाओं में भटकने लगता है। और बहुत सावधानी रखकर थोड़ा-सा होश संभालता है कि फिर-फिर मन कल्पनाओं में बहने लगता है। कृपया इसे समझाएं।

4—जब आप अष्टावक्र, बुद्ध या लाओत्से पर बोलते हैं, तब आपकी वाणी में बुद्धि और तर्क का अपूर्व तेज प्रवाहित होता है। लेकिन जब वही आप भक्ति-मार्गी संतों पर बोलते हैं, तब बातें अटपटी होने लगती हैं। ऐसा क्यों? Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-06)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-05)

जीवन : एक बसंत की बेला—(प्रवचन—पांचवां)

दिनांक 25 जुलाई, 1977;   श्री रजनीश आश्रम पूना।

सूत्र:

क्या सोवै तू बावरी, चाला जात बसंत।।

चाला जात बसंत, कंत ना घर में आए।

धृग जीवन है तोर, कंत बिन दिवस गंवाए।।

गर्व गुमानी नारि फिरै जोवन की माती।

खसम रहा है रूठि, नहीं तू पठवै पाती।।

लगै न तेरो चित्त, कंत को नाहिं मनावै।।

कापर करै सिंगार, फूल की सेज बिछावै।।

पलटू ऋतु भरि खेलि ले, फिर पछतावै अंत।

क्या सोवै तू बावरी, चाला जात बसंत।।7।। Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-05)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-04)

जीवन एक श्‍लोक है—(प्रवचन—चौथा)

दिनांक 24 जूलाई, 1977;  श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

।–आप कहते हैं कि शिष्य गुरु को नहीं खोज सकता; गुरु ही शिष्य को खोजता है। लेकिन कोई शिष्य यह कैसे समझे कि उसे सद्गुरु ने खोजा है?

2—हेतु के साथ प्रधानमंत्री के चरण छूने में और हेतु के साथ संत के चरण छूने में क्या कुछ भी फर्क नहीं है?

3—सुबह और शाम, रात और दिन आपका ही खयाल उठता है। घरवाले पागल कहते हैं। प्रभु, एक धक्का और दें कि गहरे ध्यान में डूबूं और आपसे छुटकारा हो।

4—आप तो बड़ी सरलता और सहजता से कह देते हैं कि दुःखी तुम अपने कारण हो, चाहो तो दुःख से मुक्त हो जाओ। आपके लिए तो बात छोटी-सी है; पर इस छोटी-सी बात को आप से सुन-सुन कर भी हम क्यों नहीं समझ पाते हैं?

5—चौरासी कोटि योनियों का अभिप्राय कृपा करके समझाइए और हमें भय से मुक्त करिए। Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-04)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-03)

बड़ी से बड़ी खता—खुदी—(प्रवचन—तीसरा)

दिनांक 23 जूलाई, 1977;   श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सूत्र:

दीपक बारा नाम का, महल भया उजियार।।

महल भया उजियार, नाम का तेज विराजा।

सब्द किया परकास, मानसर ऊपर छाजा।।

दसों दिसा भई सुद्ध, बुद्ध भई निर्मल साची।

छूटी कुमति की गांठ, सुमति परगट होय नाची।।

होत छतीसो राग, दाग तिर्गुन का छूटा।

पूरन प्रगटे भाग, करम का कलसा फूटा।।

पलटू अंधियारी मिटी, बाती दीन्ही बार। Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-03)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-02)

मनुष्‍य का मौलिक गंवारपन—(प्रवचन—दूसरा)

दिनांक 22 जूलाई 1977;   श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

1—अजहूं चेत गंवार–पलटूदास जी का यह संबोधन तो सभी के लिए है; पर हम सबका एक मात्र गंवारपन क्या है? आप कृपा करके हमें कहें।

2—संत पलटूदास कहते हैं कि भागवत-धन की लूट हो रही है और जो चाहे सो लेय। यदि ऐसी बात है तो क्यों इस बात का धनी करोड़ों में एकाध हो पाता है?

3—संन्यास का फल मधुर है, फिर भी सभी उसे क्यों नहीं चखते? कृपा करके कहिए। Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-02)”

अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-01)

प्रवचन—पहला    आस्‍था का दीप—सदगुरू की आँख में

दिनांक 21 जुलाई, 1977;   श्री रजनीश आश्रम पूना।

नाव मिली केवट नहीं, कैसे उतरै पार। ।

कैसे उतरै पार पथिक विश्वास न आवै।

लगै नहीं वैराग यार कैसे कै पावै। ।

मन में धरै न ग्यान, नहीं सतसंगति रहनी।

बात करै नहिं कान, प्रीति बिन जैसी कहनी। ।

छूटि डगमगी नाहिं, संत को वचन न मानै।

मूरख तजै विवेक, चतुराई अपनी आनै। ।

पलटू सतगुरु सब्द का तनिक न करै विचार।

नाव मिली केवट नहीं, कैसे उतरै पार ।।1।।

 साहिब वही फकीर है जो कोई पहुंचा होय। । Continue reading “अजहू चेत गवांर-(प्रवचन-01)”

अजहूं चेत गवांर-(पलटू दास)-ओशो

 अजहूं चेत गंवार (संत पलटू दास)   ओशो

पलटू उत्सव के पक्षपाती हैं

प्रभु से मित्र ने का निकटतम मार्ग. है उत्सव।

निकटतम मार्ग है : नृत्य।

बुलाओ प्रभु को–आनंद के आंसुओं से बुलाओ!

पैरों में घूंघर बांधो। नृत्य, गीत-गान से बुलाओ!

हृदय की वीणा बजाओ! गीत को फूटने दो!

उत्सव की बांसुरी बजाओ, रास रचाओ!

देखते नहीं, परमात्मा चारो तरफ कितने उत्सव में है! Continue reading “अजहूं चेत गवांर-(पलटू दास)-ओशो”

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