हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-10)

अवल गरीबी अंग बसै—दसवां प्रवचन

दिनाक 20 मई, 1979; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

अवल गरीबी अंग बसै, सीतल सदा सुभाव।

पावस बुढ़ा परेम रा, जल सूं सींचो जाव।।

लागू है बोला गा।, घर घर माहीं दोखी।

गुंज कुण। सो किजिए, कुण है थासे सोखी।।

जोबन हा जब जतन हा, काया बड़ी बुढ़ाण।

सुकी लकड़ी न लुलै, किस बिध निकसे काण।।

लाय लगी घर आपणे, घट भीतर होली। Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-10)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-09)

जागरण मुक्ति है—नौवां प्रवचन

दिनाक 19 मई 1979;  श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍न सार :

*युनिवर्सिटी की अनेक डिग्रिया प्राप्त करने, राजनीति में सक्रिय रहने, तथा अनेक गुरुओं के भटकाव मैं मैंने अपनी सारी जिंदगी बरबाद कर दी। आपने करुणावश मुझे उन्नीस सौ इकहत्तर में संन्यास दिया। अब सत्तर वर्ष की उस देखकर आंसू बहाता हूं। बराबर आता हूं और सोचता हूं कि इस बार भगवान से बहुत कुछ पूछूंगा। लेकिन आपके पास आते ही प्रश्न खो जाते हैं। बुढ़ापे के कारण अंग शिथिल होता जा रहा है। भगवान, मेरे अंतर को समझकर आप ही मार्गदर्शन करें।  Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-09)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-08)

शून्य होना सूत्र है—आठवां प्रवचन

दिनाक 18 मई, 1979; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍न सार :

*भगवान! बिहारी की एक अन्योक्ति है फूल्यो अनफूल्यो रहयो गंवई गांव गुलाब क्या भारत में आपके साथ भी यही हो रहा है? दूर दिगंत तक तो आपकी सुवास फैल रही है और भारत अछूता रहा जा रहा है!

*भगवान! मैं मोक्ष नहीं चाहता हूं मैं चाहता हूं कि बार -बार जीवन मिले। आप क्या कहते हैं?   

*भगवान! संन्यास लेने के बाद बहुत मिला-प्रेम, जीने का ढंग…। धन्यभागी हूं। परंतु कभी-कभी काफी घृणा से भर जाता हूं आपके प्रति। इतना कि गोली मार दूं। यह क्या है प्रभु, कुछ   समझ नहीं आता? Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-08)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-07)

मेरे हांसे मैं हंसूं—सातवां प्रवचन

दिनाक 17 मई, 1979; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

साइ बड़ो सिलावटो, जिण आ काया कोरी।

खूब रखाया कांगरा, नीकी नौ मोरी।।

‘लालू’ क्यूं सूत्यां सरै, बायर ऊबो काल।

जोखौ है इण जीवनै, जंववो घालै जाल।।

ऊपर तो बोली गई, आगे ओछी आव।

बेड़ी समदर बीज में, किण बिद लंगसी न्याव।। Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-07)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-06)

विद्रोह के पंख—छठवां प्रवचन

दिनाक 16 मई, 1979 श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍न सार :

*भगवान! किसी अन्य आश्रम से (जैसे युग निर्माण योजना, मथुरा; रामकृष्ण आश्रम आदि)  संबंधित कुछ मित्र आपके पास आना चाहते हैं और यहां के विविध ध्यान- प्रयोगों में भाग लेना चाहते हैं : कुछ ऐसे मित्र हैं जिनके लिये शेगाब के प्रसिद्ध संत गजानन महाराज या शिरडी   के सांईबाबा श्रद्धा-स्थान हैं; से भी आपके आश्रम के ध्यान- शिविर में भाग लेना चाहते हैं। परंतु इस धारणा से कि किसी एक जगह श्रद्धा हो तो दूसरी ओर जाना नहीं चाहिए, वह पाप  है-इसलिए हिचकिचाते हैं। भगवान, इस पर कुछ समझाने की कृपा करें। Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-06)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-05)

मेरा सूत्र : विद्रोह—पांचवां

दिनांक 15 मई, 1978; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न :

भगवान! एक बार किसी ने मुझे बतलाया था कि पूना भारत का आक्सफोर्ड है-संस्कृति का नगर और देश के विशिष्ट वर्ग का प्रतिनिधि। लेकिन यहां प्राय: हर रात अच्छी पोशाकें पहने लोग स्कूटर पर या कार पर चढ़कर कोरेगांव पार्क के इर्द -गिर्द घूमते हैं और संन्यासियों को, खासकर संन्यासिनियों को डंडे से बेरहमी से पीटते हैं। और अब तो मानो डंडे पर्याप्त नहीं रहे, इसलिए उन्होंने लोहे की चेनों का उपयोग करना शुरू किया है। भगवान, ये कैसे लोग हैं?  Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-05)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-04)

साक्षी हरिद्वार है—चौथा प्रवचन

दिनाक 14 मई, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

करसूं तो बांटे नहीं, बीजं। सेती आड।

वै नर जासीं नाली, चौरासी की खाड।।

काया में कवलास, न्हाय नर हर की पैडी।

वह जमना भरपूर, नितोपती गंगा नैड़ी।।

हरख जपो हरदुवार, सुरत की सैंसरधारा।

माहे मन्न महेश अलिल का अंत फुवारा।।

टोपी धर्म दया, शील का सुरंग का चोला।

जत का जोग लंगोट, भजन का भसमी गोला।। Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-04)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-03)

अपि तो किछु नाई—तीसरा प्रवचन

दिनाक 13 मई, 1979; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍न सार :

*भगवान, बाबा अलाउद्दीन अपने जीवन के अंतिम दिनों में कहा करते थे: सब माटी होए  गेलो, अपि तो किछु नाई, नाद-सुर को पार न पायो। क्या उन्हें कोई सदगुरु न मिला, इसलिए वे ऐसा कहते हुए मरे या कि नाद-सुर अनंत हैं, उसके पार होने का उपाय नहीं है इसलिए?   कृपा करके समझाएं!

*भगवान! ईश्वर -प्राप्ति में कार्य -कारण नहीं; तो फिर ध्यान का औचित्य समझाने की कृपा   करें! भगवान! स्वर सभी असमर्थ मेरे, कैसे अभिनंदन करूं? जी यही कहता, तुम्हारा मूक अभिनंदन करूं! Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-03)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-02)

हीर कटोरा हो गया रीत—दूसरा प्रवचन

दिनाक 12 मई, 1979; श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍न सार :

*भगवान! कैसे पता चले कि प्रेम कितना सपना है और कितना सच?

*भगवान! अहंकार होने का कोई कारण नहीं है, फिर भी अहंकार क्यों है?

*भगवान! अहंकार होने का कोई भी कारण नहीं है, फिर भी अहंकार क्यों है?

*भगवान!

हीर कटोरा हो गया रीता

भय कैसा यह तीखा -मीठा! Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-02)”

हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-01)

और है कोई लेने हारा—पहला प्रवचन

दिनांक 11मई, 1989;  श्री रजनीश आश्रम पूना।

सूत्र :

ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्लानी सा गोरख।

ररै रमै सूं निसतिरया, कोड अठासी रिख।।

हंसा तो मोती चुगैं, बगुला गार तलाई।

हरिजन हरिसू यूं मिल्या, व्यू जल में रस भाई।।

जुरा मरण जग जलम पुनि, अै जुग दुख घणाई। 

चरण सरेवा राजस, राख लेव शरणाई।।

क्यू पकड़ो हो डालिया, नहचै पकड़ो पेड़। Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं-(प्रवचन-01)”

हंसा तो मोती चुगैं( लाल नाथ)-ओशो

हंसा तो मोती चुगैं (लाल नाथ)—ओशो

दिनांक 11-05-1979 से 20-;5-1979 ओशो आश्रम पूना में श्री लाल नाथ के अमृृृत वचनों पर दिये गये ओशो के दस प्रवचनों का संकलन।

…..शहनाई तो सदा बजती रही है-सुननेवाले चाहिए। और इस भरी दुपहरी में भी शीतल छाया के वृक्ष हैं-खोजी चाहिए। इस उत्तप्त नगर में भी शीतल छा्ंव है, पर शीतल छा्ंव में शरणागत होने की क्षमता चाहिए। शीतल छा्ंव मुफ्त नहीं मिलती। शहनाई बजती रहती है, लेकिन जब तक तुम्हारे पास सुनने को हृदय न हो, सुनाई नहीं पड़ती। कृष्ण के ओंठों से बासुरी कभी उतरी ही नहीं है। बांसुरी बजती ही जाती है। बांसुरी सनातन है। कभी कोई सुन लेता है। तो जग जाता है; जग जाता है तो जी जाता है। जो नहीं सुन पाते, रोते ही रोते मर जाते हैं जीते ही नहीं, बिना जिये मर जाते हैं। Continue reading “हंसा तो मोती चुगैं( लाल नाथ)-ओशो”

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