नौवां-प्रवचन-(जीवन के तथ्यों से भागें नहीं)
कैसे विरोध में, कैसी जड़ता में ग्रस्त है उस संबंध में कल हमने थोड़ी सी बातें कीं। किन कारणों से मन की, मनुष्य की, पूरी संस्कृति की ये दुविधा है उस संबंध में थोड़ा सा विचार किया। दो-तीन बातें मैंने कल आपसे कहीं। पहली बात तो मैंने आपसे ये कही कि हम जब तक भी जीवन की समस्याओं को सीधा देखने में समर्थ नहीं होंगे और निरंतर पुराने समाधानों से, पुराने समाधानों, पुराने सिद्धांतों से अपने मन को जकड़े रहेंगे, तब तक कोई हल, कोई शांति, कोई आनंद या कोई सत्य का साक्षात असंभव है।
आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति इसके पहले कि जीवन सत्य की खोज में निकले, अपने मन को समाधानों और शास्त्रों से मुक्त कर ले। उनका भार मनुष्य के चित्त को ऊध्र्वगामी होने से रोकता है, इस संबंध में थोड़ा सा मैंने आपसे कहा। इन समाधानों से अटके रहने के कारण दुविधा पैदा होती है। और दूसरी बात हम अत्यधिक आदर्शवाद से भरे हों तो जीवन में पाखंड को जन्म मिलता है। Continue reading “धर्म की यात्रा-(प्रवचन-09)”