दसघरा की दस कहानियां—मनसा-मोहनी


दसघरा की दस कहानियां—

हमारा गांव करीब 14वीं शताब्दी में दिल्ली के इस बीहड़ इलाके में आकर बसा था। जहां आज हम रहते है वो दसघरा गांव। इससे पहले कहते है कहीं सिंध प्रांत से चल कर दोनों भाई आये थे। पहले कुछ दिन ये दोनों भाई पास के बिजवासन गांव में रहे परंतु वहां के जाट भाई राणा है वह भी बहुत लड़के है इस लिए एक म्यान में दो तलवार से बेहतर है वो दोनों भाई आगे आ गए। एक यहां रह गया जिसका नाम मामन था हमारा पूरा गांव एक ही भाई की सन्तान है। दूसरा आगे चला गया। नंगली गांव जहां कभी मनोज कुमार की उपकार फिल्म की शूटिंग हुई थी। दिल्ली के आस पास हम दो ही गांव है जहां पर तुसीड़ गौत्र है। वरना तो आस पास, दहिया, दलाल, डबास, सौलंकी या राणा ही पाये जाते है।

गांव जहां पर बसा हुआ है वह अति विकट स्थिती है आस पास तीन और पहाड़ी है। जहां पानी की भी कमी हमेशा बन रही होगी। दूसरा पास अरावाली का जंगल है जहां पर उस समय जंगली जानवरों की बहुतायत रही होगी। गांव में के पास बतलाते है शेर तक देख गया है। लक्कड़ भग्गा तो करीब हमारे गांव के जंगल में 1976 में गांव के कुछ चरवाहों ने कुड़की डाल कर पकड़ लिया था। मैं उसका चस्मदीद गवाह हूं बाद में उसे चिडियाघर में भेज दिया गया। वह मादा थी जिसने वहां पर जाकर दो बच्चे दिये। यानि दूसरा भी उसका साथ होना चाहिए। क्योंकि अरावली हिल अब तो बीच-बीच में जनसंख्या के कारण टूट गई है। वरना तो कच्छ से ले कर हिमालय तक यह एक लय से जूड़ी है। जिसमें सालों पहले जनवार यहां से वहां आराम से विचारण कर जाते होंगे।

दूसरी सब से बड़ी खासियत हमारे गांव की अरावली हिल हे। बचपन से ही मैंने हजारों जड़ी बुटियां यहां वेद्य हकिमों को ले जाते हुए देखा है। दाँत साफ करने से ले कर सांप के काटने तक की। यही जड़ी बूटियां हिमालय की तराईयों में जब मैं ने देखी तो इनका रूप आकार बदल गया था। शायद हवा पानी के कारण कुछ जड़ी बूटियों के गुण धर्म भी जरूर बदने होंगे। एक का उदहारण देता हूं। हिंगोट…;एक फल पाया जाता है जो अखरोट की परजाती है परंतु यहां कठोर वातवरण के कारण वह शुष्क रह गया। और उसकी खोल भी कठोर हो कर उस पर गुद्दा जमा लिया। परंतु शायद गुण अखरोट से भी कई गुणा अधिक है जब किसी को काली खांसी तक हो जाती थी तो मां उसे चूल्हें में भून कर खाने को देती और चम्तकारी रूप से ठीक हो जाती थी। एक मेरी मित्र एक बार हमारे यहां रूकने के लिए आई उसे बहुत खांसी थी। मेरी पत्नी ने एक हिंगोट उसे गेस पर भून कर खाने को दी। क्योंकि उसका स्वाद बहुत ही कड़वा होता है। इस लिए वह आनाकानी करती रही परंतु उसे जबरदस्ती खाने को मजबूर किया और अब तक उसे खांसी नहीं हुई। जीवन भर का इलाज।

मेरा बचपन का सारा जीवन इसी अरावली में गुजरा है। बाद में भी बच्चों को मैंने इस पर्वत माला का बहुत आनंद दिया है। मेरी एक आने वाली किताब जो की एक कुत्ते की आत्म कथा है। जब आप उसे पढ़ोगे तो आपको हमारे जंगल का भव्य दर्शन होंगे। ये पुस्तक दोनों भाषाओं में आ रही है। इस लिए देर हो रही है। क्योंकि उस पोनी का जन्म इसी जंगल में हुआ था। शायद वह कुत्ता न हो कर एक भेडियां भी हो सकता है। क्योंकि कुछ चरवाहों ने उसे हमें लाकर दिया था जब वह मात्र एक महीने था।

मेरे गांव में वो सब है जो एक गांव के लिए होना चाहिए। शायद आज कल के बच्चे अपने इतिहास को नहीं जानते परंतु मैंने तीन पिढ़ियों तक तो इसे अनुभव किया है और चौथी पीढ़ी के बारे में उनके मुख से सूना है। आपविश्वास नहीं करेंगे की पानी की कमी के कारण हमारे गांव की पहाड़ी में एक छोटा सा बाँध भी बना हुआ है। जो हम बचपन में सुनते थे उसे नकटाहोद कहा जाता था। दादा भैया जो गांव का पुजनियां था उसके पास एक कुआ हुआ करता था वहां का पानी तो अमृत था। परंतु बाद में वह जगह अंग्रेजों द्वारा 1913 में इकवायर कर गई। जिस में उन्होंने अभी मोटर लगा कर पानी को खत्म कर दिया वह अब सूख गया। परंतु आप सोचिए कितने बुद्धिमान वे कर्मठ रहे होंगे हमारे पूर्वज जो बाँध तक सिचाई के लिए बना सकते थे। कुआ खोदना तो उनके बांए हाथ का खेल था। जहां आज गांव है वहां भी एक पक्का कुआ ह। जिस में जब चड़स चलता था मैं भी खूब नहाया हुआ था।

तब मैंने देखा एक दूसरे इलाके में जब कुआ खोदा जाने लगा तो इस आधुनिकता के बाद भी वह पाँच साल खोद कर रोक देना पड़ा क्योंकि उसके नीचे एक बड़ी शीला आ गई थी। तब उससे भी करीब चार-पाँच सो साल पहले इतना सूंदर कुआ कैसे खोद सके होंगे।

इस लिए मजबूरी में केवल दस कहानियां ही संकलित कर सका वैसे तो करीब आठ कहानियां और मेरे पास लिखी रखी है गांव की। परंतु शायद आगे आने पर इसके दूसरा भाग आपके सामने आ जाये। ये नाम के लिए ही मैंने दस चुनी ‘’दसघरा की दस कहानियां’’

इति शुभंम् नमन

मनसा-मोहनी दसघरा 

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