शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-10

भूत, भविष्य और वर्तमान के पार-(प्रवचन-दसवां) ओशो

Hsin Hsin Ming (शुन्य की किताब)–ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद) 

सूत्र:

यहां शून्यता? कहा शून्यता

लेकिन असीम ब्रह्मांड सदा तुम्हारी आंखों के सामने रहता है
असीम रूप से बड़ा, असीम रूप से छोटा;

कोई भेद नहीं है

क्योंकि सभी परिभाषाएं तिरोहित हो गई हैं

और कोई सीमाएं दिखाई नहीं देतीं।

होने और न होने के साथ भी ऐसा है।

उन संदेहों और तर्कों में समय को मत गंवाओ

जिनका इसके साथ कोई संबंध नहीं है।

 एक वस्तु, सारी वस्तुएं

बिना किसी भेदभाव के एक- दूसरे में गति करती हैं और
घुल- मिल जाती हैं।

इस बोध में जीना अपूर्णता के विषय में चिंतारहित होना है।
इस आस्था में जीना अद्वैत का मार्ग है

क्योंकि अद्वैत व्यक्ति वह है जिसके पास श्रद्धावान मन है।

 अनेक शब्द।

मार्ग भाषा के पार है

क्योंकि उसमें न बीता हुआ कल है
न आने वाला कल है न आज है।
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शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-09

अद्वैत-(प्रवचन-नौवां) ओशो

Hsin Hsin Ming (शुन्य की किताब)–ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद)

सूत्र:

 तथाता के इस जगत में न तो कोई स्व है और न ही स्व के अतिरिक्त कोई और।

इस वास्तविकता से सीधे ही लयबद्ध होने के लिए-जब संशय उठे, बस कहो, ‘अद्वैत।

इस ‘अद्वैत’ में कुछ भी पृथक नहीं है कुछ भी बाहर नहीं है।

कब या कहा कोई अर्थ नहीं रखता; बुद्धत्व का अर्थ है इस सत्य में प्रवेश।

और यह सत्य समय या स्थान में घटने- बढ़ने के पार है;

इसमें एक अकेला विचार भी दस हजार वर्ष का है।

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शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-08

सच्ची श्रद्धा का जीवन-(प्रवचन-आठवां) ओशो

Hsin Hsin Ming (शुन्य की किताब)–ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद) 

 सूत्र:

 गति को स्थिरता और स्थिरता को गतिमय समझो,

और गति और स्थिरता की दशा दोनों विलीन हो जाती हैं।
जब द्वैत नहीं रहता, तो अद्वैत भी नहीं रह सकता।

इस परम अंत की अवस्था पर कोई नियम,

या कोई व्याख्या लागू नहीं होती।

मार्ग के अनुरूप हो चुके अखंड मन के लिए

सभी आत्म- केंद्रित प्रयास समाप्त हो जाते हैं।

संदेह और अस्थिरता तिरोहित हो जाते हैं

और सच्ची श्रद्धा का जीवन संभव हो जाता है।

एक ही प्रहार से हम बंधन से मुक्त हो जाते हैं;

न हमें कुछ पकड़ता है और न हम कुछ पकड़ते हैं।

मन की शक्ति के प्रयास के बिना,

सभी कुछ शून्य है स्पष्ट है स्व-प्रकाशित है।

यहां विचार, भाव, ज्ञान, और कल्पना का कोई मूल्य नही

गति को स्थिरता और स्थिरता को गतिमय समझो,

और गति और स्थिरता की दशा दोनों विलीन हो जाती हैं। Continue reading “शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-08”

शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-07

सभी स्वप्न समाप्त हो जाने चाहिए-(प्रवचन-सातवां) ओशो

Hsin Hsin Ming (शुन्य की किताब)–ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद) 

सूत्र:

शांति और अशांति भ्रांति के परिणाम है;

बुद्धत्व के साथ कोई पसंदगी और नापसंदगी नहीं होती।
सभी द्वैत अज्ञानपूर्ण निष्कर्ष से आते हैं।

वे ऐसे हैं जैसे कि सपने या आकाश- कुसुम;

उन्हें पकड़ने की चेष्टा करना मूढ़ता है।

लाभ और हानि, उचित और अनुचित,

अंत में ऐसे विचार तत्काल समाप्त कर देने चाहिए।

 अगर आंख कभी नहीं सोती,

तो स्वभावत सारे स्वप्न समाप्त हो जाएंगे।

अगर मन कोई भेद नहीं करता,

दस हजार चीजें जैसी वे है? एक ही तत्व की हैं।
इस एक तत्व के रहस्य को समझ लेना Continue reading “शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-07”

शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-06

लक्ष्य के लिए प्रयास न करे-(प्रवचन-छठवां)

Hsin Hsin Ming (शुन्य की किताब)–ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद) 

सूत्र:

महापथ में जीना न तो सरल है न कठिन,

लेकिन वे जिनके विचार सीमित हैं वे भयभीत और संकल्पहीन हैं।

जितनी तीव्रता से वे शीघ्रता करते हैं उतना ही वे धीमे जाते हैं

और पकड़ सीमित नहीं हो सकती,

संबोधि के विचार से आसक्त हो जाना भी भटक जाना है।

बस वस्तुओं को अपने ढंग से होने दो और फिर न आना होगा, न जाना।

 

वस्तुओं के स्वभाव (तुम्हारे अपने स्वभाव) के अनुसार चलो;

और तुम मुक्त भाव से और अविचलित रह कर चलोगे।

जब विचार बंधन में होता है सत्य छिपा रहता है

क्योंकि सभी कुछ धुंधला और अस्पष्ट होता है

और निर्णय करने का बोझिल अभ्यास कष्ट और थकान लाता है।
भेदभावों और विभाजनों से क्या लाभ हो सकता है?
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शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-04

शुन्यता ही एकात्मा है-(प्रवचन-चौथा)

Hsin Hsin Ming (शुन्य की किताब)–ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद) 

सूत्र:

मूल की ओर लौटना अर्थ को पा लेना है

लेकिन आभासों के पीछे जाना स्रोत से चूक जाना है।

आंतरिक बुद्धत्व के क्षण में दृश्य और खालीपन का अतिक्रमण होता है।

जो परिवर्तन इस शून्य जगत में दिखाई देते हैं

उन्हें हम अपने अज्ञान के कारण वास्तविक मानते हैं।

सत्य के लिए खोज मत करो;

केवल धारणाओं को पकडना छोडू दो।

 द्वैत की स्थिति में मत रहो;

ऐसे पथों से सावधानीपूर्वक बचो।

यदि यह और वह:उचित और अनुचित इसका थोड़ा सा निशान भी रहे,

तो मन का सार- तत्व उलझन में खो जाएगा।

यद्यपि सभी द्वैत एक से ही आते है इस एक से भी आसक्त मत हो जाओ। Continue reading “शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-04”

शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-03

बोलना और सोचना छोड़ दो-(प्रवचन-तीसरा)

Hsin Hsin Ming (शुन्य की किताब)—-ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद) 

सूत्र:

वस्तुओं के यथार्थ को अस्वीकार करना,

उनकी वास्तविकता से चूक जाना है;

यह कहना कि वस्तुएं असार हैं

उनकी वास्तविकता से फिर चूक जाना है।

जितना तुम सत्य के विषय में बोलते और सोचते हो,
उतना ही तुम उससे दूर भटक जाते हो।

बोलना और सोचना छोड़ दो,

तो फिर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे तुम न जान सकोगे।

वास्तविकता सदा से वहां है बस तुम्हारे हृदय के निकट, तुम्हारी आंखों के निकट, तुम्हारे हाथों के निकट प्रतीक्षा करती हुई। तुम उसे छू सकते हो तुम उसे अनुभव कर सकते हो, तुम उसे जी सकते हो-लेकिन तुम उसका चिंतन नहीं कर सकते। देखना संभव है अनुभूति संभव है, स्पर्श संभव है लेकिन सोच-विचार करना संभव नहीं है। विचार-प्रक्रिया की प्रकृति को समझने की कोशिश करो। विचार सदा किसी के विषय में होता है, वह कभी सीधा-सीधा नहीं होता। तुम वास्तविकता को देख सकते हो, लेकिन तुम्हें इसके विषय में सोचना पड़ेगा और ‘ विषय में ‘ एक जाल है, Continue reading “शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-03”

शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-02

मार्ग परिपूर्ण है–प्रवचन–दूसरा

Hsin Hsin Ming (शुन्य की किताब)–ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद)

सूत्र:

जब चीजों का गहन अर्थ समझा नहीं जाता,

तब मन की सारभूत शांति अकारण ही विचलित हो जाती है।

महापथ है विराट आकाश की भांति

जहां न कुछ कम है न ही कुछ अधिक।

सच तो यह है कि स्वीकार या अस्वीकार करने के अपने चुनाव के कारण,

हम चीजों के वास्तविक स्वभाव को नहीं देखते।

न तो बाहरी वस्तुओं की उलझनों में जीओ?

न ही आंतरिक शून्यता की अनुभूति में।

कृत्य की कामना मत करो और यह जान कर कि सब–

कुछ एकात्म है शांत हो जाओ

और ऐसे भ्रांतिपूर्ण विचार स्वत? ही विदा हो जाएंगे।

जब तुम अक्रिया को पाने के लिए कर्म को रोकने का प्रयास करते हो
तो तुम्हारा वही प्रयास तुम्हें क्रिया से भर देता है।
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शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-01

महापथ कठिन नहीं है–पहला प्रवचन

सूत्र:

महापथ उनके लिए कठिन नहीं है

जिनकी अपनी कोई प्राथमिकताएं नहीं हैं।

जब प्रेम और घृणा दोनों नहीं होते,

सब–कुछ सुस्पष्ट होता है और कुछ भी छिपा नहीं रहता।

थोड़ा सा भेद और पृथ्वी और स्वर्ग में

अनंत दूरी हो जाती है।

अगर तुम सत्य को देखना चाहते हो,

तो पक्ष या विपक्ष में राय मत बनाओ।

तुम्हारी पसंद और नापसंद

का संघर्ष ही मन का रोग है। Continue reading “शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-प्रवचन-01”

शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-(ओशो)

शुन्य की किताब-(Hsin Hsin Ming)-ओशो

(ओशो की अंग्रेजी पुस्तक Hsin Hsin Ming का हिन्दी अनुवाद शुन्य की किताब जो झेन गुरु सोसान के सुत्रों पर ओशो के अमृत प्रवचनों का संकलन है।)

 प्रवेश से पूर्व

प्रतीक जिस वस्तु को अभिव्यक्त करता है उसका ज्यादा महत्व नहीं रह गया है। गुलाब का महत्व नहीं है ‘गुलाब’ शब्द महत्वपूर्ण हो गया है। और मनुष्य शब्द का इतना आदी हो गया है शब्द से इतना आविष्ट हो गया है कि शब्द से प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। कोई ‘नीबू’ का नाम ही लेता है तो तुम्हारे मुंह में पानी आता है। यह शब्द का आदी हो जाना है। हो सकता है नीबू भी इतना प्रभावकारी न हो भले ही नीबू टेबल पर रखा हो और तुम्हारे मुंह में पानी भी न आए। लेकिन कोई कहता है ‘नीबू’? और तुम्हारे मुंह में पानी आ जाता है। शब्द वास्तविक से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है- यही उपाय है-और जब तक तुम इस शब्द- आसक्ति को नहीं छोड़ते तुम्हारा वास्तविकता से साक्षात्कार नहीं होगा। दूसरा कोई और अवरोध नहीं है। Continue reading “शूून्य की किताब–(Hsin Hsin Ming)-(ओशो)”

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