बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-12)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

प्रवचन-बारहवां-( तर्क और तर्कातीत का संतुलन) 

 (The Psychologe Of The Esoteric)-का हिन्दी रूपांतरण है)

ओशो पश्चिम की युवा पीढ़ी विद्रोह क्यों कर रही है और
पश्चिम से इतने अधिक युवा लोग क्यों पूरब के धर्म और
दर्शन में उत्सुक होते जा रहे हैं क्या इस पर आप कुछ
कहेंगे? क्या आपके पास पश्चिम के लिए कोई विशेष संदेश है?

मन एक बहुत विरोधाभासी व्यवस्था है। मन ध्रुवीय विपरीतताओं में कार्य करता है। लेकिन हमारी सोच हमारी सोचने की तर्कयुक्त विधि सदा एक भाग को चुन लेती है और दूसरे को इनकार कर देती है। तो तर्क एक अ-विरोधाभासी तरीके से आगे बढ़ता है और मन विरोधाभासी तरीके से कार्य करता है। जीवन विपरीतताओं में कार्य करता है, और तर्क एक दिशा में कार्य करता है–विपरीतताओं में नहीं। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-12)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-11)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान–ओशो

प्रवचन-ग्याहरवां-(सम्यक प्रश्न) 

 (The Psychologe Of The Esoteric)- का हिन्दी रूपांतरण है)

सैद्धौतिंक प्रश्न मत पूछो। क्योंकि सिद्धांत हल कम करते हैं और उलझाते अधिक हैं। अगर कोई सिद्धांत न हों तो समस्याएं कम होंगी। ऐसा नहीं है कि सिद्धांत प्रश्नों या समस्याओं को हल करते हों बल्कि इसके विपरीत सिद्धांतों से प्रश्न उठ खड़े होते हैं। और दार्शनिक प्रश्न भी मत पूछो क्योंकि दार्शनिक प्रश्न बस प्रश्न जैसे प्रतीत होते हैं। वे प्रश्न हैं नहीं। यही कारण है कि कोई उत्तर संभव नहीं हो पाया है। अगर कोई प्रश्न वास्तव में एक प्रश्न है तो वह उत्तर देने योग्य है। अगर कोई प्रश्न झूठा है, बस एक भाषा शास्त्रीय संशय है तब इसका उत्तर नहीं दिया जा सकता है। यही कारण है कि दर्शनशास्त्र उत्तर देता रहा है और किसी भी बात का उत्तर नहीं दिया जा सका है। दर्शनशास्त्री लोग Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-11)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-10)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान–ओशो

प्रवचन-दसवां-( सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् दिव्यता के झरोखे)

 (The Psychologe Of The Esoteric)- का हिन्दी रूपांतरण है)

ओशो भारतीय दर्शन में परम सत्य की प्रकृति को सत्य
सत्यम् सौंदर्य सुंदरम: और शुभपन शिवम्के रूप में
परिभाषित किया गया है। क्या ये भगवत्ता के लक्षण हैं?

ये भगवत्ता के गुण नहीं हैं। बल्कि हमारे द्वारा किए गए इसके अनुभव हैं। वे गुण जैसे कि वे हैं उस तरह भगवत्ता से संबद्ध नहीं हैं, वे हमारी अनुभूतियां हैं। भगवत्ता स्वयं में अज्ञेय है। या तो प्रत्येक गुण इसी का है या कोई गुण इसका नहीं है। लेकिन मानवीय मन का निर्माण जिस तरह से हुआ है यह भगवत्ता को तीन झरोखों के माध्यम से अनुभव कर सकता है तुम उसकी झलक या सौंदर्य के माध्यम से या सत्य के माध्यम से या शुभ के माध्यम से पा सकते हो। मनुष्य के मन के ये ही तीन आयाम हैं। ये हमारी सीमाएं हैं। ढांचा हमारे द्वारा दिया गया है भगवत्ता अपने आप में रूप के परे है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-10)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-09)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान–ओशो

प्रवचन-नौवां (ज्ञान का भ्रम)

 (The Psychologe Of The Esoteric)-का हिन्दी रूपांतरण है)

किसी सिद्धांत की शिक्षा देना अर्थहीन है। मैं कोई दर्शनशास्त्री नहीं हूं मेरा मन दर्शनशास्त्र का विरोधी है। क्योंकि दर्शनशास्त्र कहीं नहीं ले गया है और न कहीं ले जा सकता है। वह मन जो सोच-विचार करता है और वह मन जो प्रश्न उठाता है जान नहीं सकता है।

बहुत से सिद्धांत हैं और अन्य बहुत से सिद्धांतों के लिए अनंत संभावनाएं हैं। लेकिन सिद्धांत एक कल्पना है एक मानवीय कपोल-कल्पना। कोई खोज नहीं, बल्कि एक आविष्कार। आदमी का मन बहुत सी व्यवस्थाएं और सिद्धांत निर्मित करने में समर्थ है, लेकिन सत्य को सिद्धांतों के द्वारा जान पाना असंभव है। और जौ मन जानकारी से भरा हुआ है वह ऐसा मन है जो अज्ञानी ही बना रहेगा। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-09)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-08)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान–ओशो

प्रवचन-आठवां (बनाना और होना)

 (The Psychologe Of The Esoteric)-का हिन्दी रूपांतरण है)

ओशो कृपया हमें सात शरीरों के तनावों और विश्रांतियों
के बारे में कुछ बताइए।

सारे तनाव का मूल-स्रोत कुछ और हो जाने की चाहत है। व्यक्ति सदा कुछ और होने की कोशिश कर रहा है। कोई भी जैसा वह है उसके साथ विश्राम में नहीं है। होना स्वीकृत नहीं है, होने से इनकार किया गया है और कुछ और बन जाने को, होने के आदर्श के रूप में ले लिया गया है। इसलिए मूलभूत तनाव सदा ही जो तुम हो और जैसे तुम हो जाना चाहते हो, के बीच है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-08)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-07)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान–ओशो

प्रवचन-सातवां-(सात शरीरों का अतिक्रमण)

(The Psychologe Of The Esoteric)-का हिन्दी रूपांतरण है)

ओशो आपने कहा कि हमारे सात शरीर हैं : एक भाव
शरीर एक मनस शरीर तथा कुछ और शरीर। कभी-कभी
भारतीय भाषा को पाश्चात्य मनोविज्ञान की शब्दावली के
साथ समायोजित कर पाना कठिन हो जाता है। पश्चिमी
विचारधारा में हमारे पास इसके लिए कोई सिद्धांत नहीं हैं
लेकिन आपने कल जिन शरीरों के बारे में बताया उनमें से
कुछ शरीरों को मैंने पहचाना है और उनको अनुभव किया है।
हम अपनी भाषा में इन विभिन्न शरीरों के नामों का
अनुवाद कैसे कर सकते हैं? आत्मिक शरीर के बारे में
कोई समस्या नहीं है; लेकिन भाव शरीर सूक्ष्म शरीर…?
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बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-06)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(ओशो)

प्रवचन—छट्टवां—(सपनों का मनोविज्ञान) 

(The Psychology of The Esoteric)–का हिन्दी रूपांतरण है)

 ओशो स्वप्नों के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

स्वप्नों के अनेक प्रकार होते हैं। हमारे सात शरीर हैं और प्रत्येक शरीर के अपने स्वप्न होते हैं। भौतिक शरीर अपने स्वप्न निर्मित करता है। अगर तुम्हारा पेट गड़बड़ है तो एक विशेष प्रकार का स्वप्न निर्मित होगा। अगर तुम अस्वस्थ हो, अगर तुम ज्वरग्रस्त हो तो भौतिक शरीर अपनी तरह से स्वप्न निर्मित करेगा। एक बात निश्चित है कि स्वप्न किसी स्थ्याता से किसी डिस-ईजृ से निर्मित होता है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-06)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-05)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान–ओशो

प्रवचन-पांचवां-(गुहा के खेल विकास में अवरोध)

(The Psychology of The Esoteric)–का हिन्दी रूपांतरण है)

 ओशो क्या शरीर और मन पदार्थ और चेतना भौतिक और आध्यात्मिकता के बीच कोई विभाजन है? आध्यात्मिक चेतना को उपलब्ध करने के लिए कोई शरीर और मन का अतिक्रमण कैसे कर सकता है?

पहली बात तो यह समझ लेनी है कि शरीर और मन के बीच का विभाजन आत्यंतिक रूप से झूठ है। अगर तुम इस विभाजन से आरंभ करते हो तो कहीं नहीं पहुंचोगे; क्योंकि झूठा आरंभ कहीं नहीं ले जाता है। इससे कुछ नहीं आ सकता है क्योंकि प्रत्येक कदम के विकसित होने का अपना गणित है। दूसरा कदम पहले से आएगा, और तीसरा दूसरे से, और ऐसा ही होता चला जाएगा। यह एक तार्किक श्रृंखला है। इसलिए जिस पल तुम पहला कदम उठाते हो तुमने एक प्रकार से सब-कुछ चुन लिया है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-05)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-04)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान–ओशो  

प्रवचन-चौथा-( कुंडलिनी:योग उदगम की ओर वापसी) 

(The Psychology of The Esoteric)का हिन्दी रूपांतरण है)

 पहला प्रश्न–ओशो कुंडलिनी क्या है? कुंडलिनी योग क्या है और
कुंडलिनी योग पश्चिम की सहायता कैसे कर सकता है?
और कुंडलिनी जागरण की आपकी विधियां परंपरागत
नियंत्रित विधियों के स्थान पर अराजक क्यों हैं?

अस्तित्व ऊर्जा है ऊर्जा अनेक ढंगों और अनेक रूपों में गति है। जहां तक मनुष्य के अस्तित्व का प्रश्न है कुंडलिनी उनमें से एक है। कुंडलिनी मनुष्य के मनस और मनुष्य के शरीर की केंद्रीभूत ऊर्जा है।

ऊर्जा या तो अप्रकट रह सकती है या प्रकट। यह बीज में रह सकती है, या यह प्रकट रूप में अभिव्यक्त हो सकती है। प्रत्येक ऊर्जा या तो बीज में है या प्रकट रूप में है। कुंडलिनी का अभिप्राय है तुम्हारी समग्र क्षमता, तुम्हारी संपूर्ण संभावना। लेकिन यह बीज नहीं है यह संभावना है। यह साकार हो सकती है लेकिन यह साकार नहीं है। कुंडलिनी पर कार्य करने की विधियां तुम्हारी क्षमता को साकार करने की विधियां हैं। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-04)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-03)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

प्रवचन-तीसरा (काम, प्रेम और प्रार्थना: दित्यता के तीन चरण)

(The Psychology of the Esoteric-का हिन्दी रूपांतरण है)

ओशो कृपया हमारे लिए काम-ऊर्जा के आध्यात्मिक
महत्व की व्याख्या करें। काम का ऊर्ध्वगमन और
आध्यात्मीकरण हम किस प्रकार से कर सकते हैं? क्या
यह संभव है कि काम का संभोग का ध्यान की भांति
चेतना के उच्चतर आयामों में जाने के लिए छलांग लगाने
के एक तख्ते की भांति उपयोग किया जा सके?

काम-ऊर्जा जैसी कोई चीज नहीं होती है। ऊर्जा एक है और एक समान है। काम इसका एक निकास द्वार, इसके लिए एक दिशा, इस ऊर्जा के उपयोगों में से एक है। जीवन-ऊर्जा एक है; किंतु यह बहुत सी दिशाओं में प्रकट हो सकती है। काम उनमें से एक है। जब जीवन-ऊर्जा जैविक हो जाती है तो यह काम-ऊर्जा होती है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-03)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-02)

बुद्धत्व  का मनोविज्ञान-ओशो

प्रवचन-दूसरा-(ध्यान का रहस्य) 

(The Psychology of the Esoteric-का हिन्दी रूपांतरण है)

पहला प्रश्न:

   ओशो मैं एक वर्तुल में घूमता रहा हूं और कभी-कभी

लगता है कि मैंने वर्तुल पूरा कर लिया है। लेकिन दूसरे ढंग

से देखने पर लगता है कि मैं परिधि से चिपका हुआ हूं।

क्या आपके पास ऐसी कोई कार्य योजना या ध्यान की

कोई विधि या व्यक्ति को ध्यान के योग्य बना देने की कोई

तरकीब है जिसे आप आरंभ में बताएंगे?

ध्यान केवल एक विधि नहीं है; यह केवल कोई तकनीक नहीं है। तुम इसे सीख नहीं सकते। यह एक विकास है-तुम्हारे संपूर्ण जीवन का, तुम्हारी संपूर्ण जीवनचर्या से। ध्यान कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे, जैसे कि तुम हो, उसमें जोड़ा जा सके। इसको तुमसे जोड़ा नहीं जा सकता है; यह तुम्हारे पास एक मौलिक रूपांतरण, एक परिवर्तन के माध्यम से आ सकता है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-02)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-01)

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

प्रवचन-पहला-(अंतस-क्रांति)

(The Psychology of the Esoteric-का हिन्दी अनुवाद है)

 ओशो मनुष्य के विकास के पथ पर क्या यह संभव है कि
भविष्य में किसी समय सारी मनुष्य-जाति संबुद्ध हो जाए?
आज मनुष्य विकास के किस बिंदु पर है?

मनुष्य के साथ विकास की प्राकृतिक स्वत: चलने वाली प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। मनुष्य अचेतन विकास की अंतिम रचना है। मनुष्य के साथ सचेतन विकास का आरंभ होता है। बहुत सी बातें खयाल में ले लेनी है।

पहली बात अचेतन विकास यांत्रिक एवं प्राकृतिक होता है। यह अपने आप से होता है। इस प्रकार के विकास के माध्यम से चेतना विकसित होती है। किंतु जैसे ही चेतना अस्तित्व में आती है, अचेतन विकास रुक जाता है, क्योंकि इसका उद्देश्य पूरा हो चुका है। Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-(प्रवचन-01)”

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो

 (The Psychology of the Esoteric-का हिन्दी रूपांतरण है)

 प्रवेश से पूर्व

परंपरागत विधियां व्यवस्थित है क्योंकि उस समय का व्यक्ति, उस समय लोग और वे लोग जिनके लिए उन विधियों को विकसित किया गया था-भिन्न थे। आधुनिक मनुष्य एक बहुत नवीन घटना है, और किसी भी परंपरागत विधि का, जिस रूप में वह है, ठीक उसी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि आधुनिक

मनुष्य कभी अस्तित्व में था ही नहीं। आधुनिक मनुष्य एक नई घटना है। इसलिए एक प्रकार से तो सारी परंपरागत विधियां असंगत हो चुकी हैं। उनका सार-तत्व असंगत नहीं Continue reading “बुद्धत्व का मनोविज्ञान-ओशो”

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