पांचवां प्रवचन-(अनौपचारिक दृष्टि)
मेरे प्रिय आत्मन्!
बीते तीन दिनों में जीवन के तीन सूत्रों पर हमने विचार किया।
आश्चर्य, आनंद और अद्वैत। आज अंतिम सूत्र पर सुबह हमने बात की है। उस संबंध में जो प्रश्न पूछे गए हैं, उन पर अभी हम विचार करेंगे।
कुछ मित्रों ने पूछा है कि अद्वैत भाव की सिद्धि के लिए किस भांति चित्त को निर्दिष्ट किया जाए, किस भांति, किस मार्ग पर जीवन को गतिमान किया जाए? अद्वैत कैसे फलित हो सकता है?
इस संबंध में कुछ बात समझ लेनी उपयोगी होगी। पहली बातः अद्वैत की उपलब्धि कोई फिलॅासफी, कोई तत्वज्ञान की उपलब्धि नहीं है। इसलिए घर में बैठ कर वेदांत और तत्वदर्शन के शास्त्रों को पढ़ लेने से उस दिशा में कोई भी कदम नहीं उठता है, न उठ सकता है। अद्वैत की उपलब्धि तो एक विशिष्ट अनुभव की दिशा में, अनुभूति की दिशा में, जीवंत अनुभूति की दिशा में चलने से संभव हो सकती है। उस जीवंत अनुभूति की तरफ पहला चरण होगा..क्या होगा पहला चरण? कैसा होगा? कैसे हम पहली सीमा तोड़ेंगे द्वैत की और अद्वैत की तरफ बढ़ेंगे? Continue reading “शून्य समाधि-(प्रवचन-05)”