उपनिषद का मार्ग-(इक्कीसवां प्रवचन)
भारत : एक अनूठी संपदा
(Note: Translated only first question from Talk #21 of Osho Upanishad given on 8 September 1986 pm in Mumbai. This is compiled in Mera Swarnim Bharat.)
प्रश्न- प्यारे ओशो!
भारत में आपके पास होना, दुनिया में और कहीं भी आपके सान्निध्य में होने से अधिक प्रभावमय है। प्रवचन के समय आपके चरणों में बैठना ऐसा लगता है जैसे संसार के केन्द्र में, हृदय-स्थल में स्थित हों। कभी-कभी तो बस होटल के कमरे में बैठे-बैठे ही आंख बंद कर लेने पर मुझे महसूस होता है कि मेरा हृदय आपके हृदय के साथ धड़क रहा है।
सुबह जागने पर जब आसपास से आ रही आवाजों को सुनती हूं, तो वे किसी भी और स्थान की अपेक्षा, मेरे भीतर अधिक गहराई तक प्रवेश कर जाती हैं। ऐसा अनुभव होता है कि यहां पर ध्यान बड़ी सहजता से, बिना किसी प्रयास के, नैसर्गिक रूप से घटित हो रहा है।
क्या भारत में आपके कार्य करने की शैली भिन्न है, अथवा यहां कोई ‘प्राकृतिक बुद्ध क्षेत्र’ जैसा कुछ है? Continue reading “उपनिषद का मार्ग-(प्रवचन-21)”