प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-16)

हंसो, जी भर कर हंसो—(सोलहवां प्रवचन)

दिनांक २६ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—अजीब लत लगी है रोज सुबह आपके साथ बैठ कर हंसने की!

2—कल किसी प्रश्न के उत्तर में आपने बताया कि क्यों साधारण व्यक्ति की समझ में आपकी बात आती नहीं। मुझे याद आया, आप पहली बार उन्नीस सौ चौंसठ में पूना आए थे, दो दिन आपके प्रवचन सुने थे, आप को स्टेशन पर छोड़ने आया था। तब मैंने आपको पूछा था: आपकी बात साधारण आदमी की समझ में आना मुश्किल लगता है। तब आपने कहा था: माणिक बाबू, कौन व्यक्ति खुद को साधारण समझता है? क्या ज्यादातर व्यक्ति इसी भ्रांति में होते हैं? यह व्यक्ति की असाधारणता की कल्पना नष्ट करने के लिए नव संन्यास उपयुक्त है। असाधारण को साधारण बनाने की आपकी कीमिया अदभुत है! इस पर कुछ प्रकाश डालने की कृपा करें। Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-16)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-15)

एक नई मनुष्य-जाति की आधारशिला—(पंद्रहवां प्रवचन)

पंद्रहवां प्रवचन; दिनांक २५ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—आप सरल, निर्दोष चित्त की सदा प्रशंसा करते हैं। यह सरलता, यह निर्दोष चित्त क्या है?

2—क्या आप अंग्रेजी भाषा के विरोध में हैं? आप कुछ भी कहें, मैं तो अंग्रेजी सीखूंगी।

3—पूरब-पश्चिम, विज्ञान-धर्म और बाहर-भीतर का संतुलन जो आप करने का प्रयास कर रहे हैं, यह साधारण जन की समझ में क्यों नहीं आता है? Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-15)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-14)

तथाता और विद्रोह—(चौदहवां प्रवचन)

दिनांक २४ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—आप कहते हैं कि धर्म स्वीकार है, तथाता है और आप यह भी कहते हैं कि धर्म विद्रोह है। धर्म एक साथ तथाता और विद्रोह दोनों कैसे है?

2—मीरा के इस वचन पीवत मीरा हांसी रे से कई गुना अदभुत वचन तो यह है कि म्हारो देश मारवाड़ जिसके कारण मेरे हृदय में अन्य जाग्रत व्यक्तियों की अपेक्षा मीरा का अधिक सम्मान है। आप क्या कहते हैं?

3—आज तक जाने गए बुद्धपुरुषों को किसी पशु ने मारा हो ऐसा उल्लेख नहीं है और शास्त्रों में कई ऐसे भी उल्लेख हैं कि नाग या शेर या सिंह जैसे पशु भी बुद्धपुरुषों के पास आकर बैठते थे। भगवान, इसका राज क्या है? Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-14)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-13)

धर्म और विज्ञान की भूमिकाएं-(तेरहवां प्रवचन)

दिनांक २३ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1–श्रेष्ठ मानव-शरीर पैदा करने का आयोजन विज्ञान कैसे कर सकता है, इसकी आपने चर्चा की। लेकिन केवल श्रेष्ठ आत्माएं विज्ञान कैसे चुन सकता है? और श्रेष्ठ आत्माओं को ही उत्कृष्ट शरीर में प्रवेश कैसे कराएगा? यह काम तो आप जैसे शुद्ध प्रबुद्ध आत्मा को ही करना पड़ेगा। विज्ञान कोई वैज्ञानिक या हिटलर पैदा कर सकेगा। लेकिन कोई कृष्ण, महावीर या बुद्ध पैदा कराने का आयोजन कैसे हो सकता है? इस बात पर प्रकाश डालने की कृपा करें।

2—क्या संसार में कोई भी अपना नहीं है?

3—आपके आश्रम में तो बिना अंग्रेजी जाने जीना मुश्किल है। जितने विदेशी मैंने यहां देखे इतने एक स्थान पर तो एकत्रित कहीं न देखे थे। अब मैं क्या करूं? मैं तो आश्रम में ही रहने आई थी। क्या अब बुढ़ापे में अंग्रेजी सीखूं? Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-13)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-12)

नियोजित संतानोत्पत्ति—(बारहवां प्रवचन)

दिनांक २२ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—आपने योजनापूर्ण ढंग से संतानोत्पत्ति की बात कही और उदाहरण देते हुए कहा कि महावीर, आइंस्टीन, बुद्ध जैसी प्रतिभाएं समाज को मिल सकेंगी। मेरा प्रश्न है कि ये नाम जो उदाहरण के नाते आपने दिए, स्वयं योजित संतानोत्पत्ति अथवा कम्यून आधारित समाज की उपज नहीं थे। इसलिए केवल कम्यून से प्रतिभाशाली संतानोत्पत्ति की बात अथवा संतान का विकास समाज की जिम्मेवारी वाली बात पूरी सही नहीं प्रतीत होती।

2—क्या जीवन-मूल्य समयानुसार रूपांतरित होते हैं?

3—आप कहते हैं: न आवश्यकता है काबा जाने की, न काशी जाने की। क्या आपकी दृष्टि में स्थान का कोई भी महत्व नहीं है? Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-12)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-11)

मेरा संदेश है: ध्यान में डूबो-(ग्यारहवां प्रवचन)

दिनांक २१ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—संबोधि क्या है? और संबोधि दिवस पर आपका संदेश क्या है?

2—जैसा आपने कहा कि जब हम सब जाग जाएंगे उस दिन आप हंसेंगे। क्या इसका यह अर्थ नहीं हुआ कि हम आपको कभी हंसते नहीं देख सकेंगे?

3—जब भी कोई लड़की वाला मुझसे वर के रूप में देखने आता है तो मैं फौरन अपने कमरे में देववाणी ध्यान या सक्रिय ध्यान शुरू कर देता हूं। परिवार वाले इससे नाराज हैं। क्या और भी कोई सरल उपाय है?

4—राजनीति की मूल कला क्या है? Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-11)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-10)

प्रार्थना की कला—(दसवां प्रवचन)

दिनांक २० मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—हे अनंत! अपने में ले ले,

तुम में मिल जाऊंगा अनजान

मिलकर तेरे साथ हृदय का,

पूरा कर लूंगा अरमान।

प्रभु, यही प्रार्थना है!

2—मैं युवा था तो कभी मृत्यु का विचार भी नहीं करता था और अब जब वृद्ध हो गया हूं तो मृत्यु सदा ही भयभीत करती है। मैं क्या करूं? क्या मृत्यु से छुटकारा संभव है? Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-10)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-09)

ध्यान का दीया—(नौवां प्रवचन)

दिनांक १९ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—अज्ञेयवाद (एग्नास्टिसिज्म) क्या है, जिसकी सराहना आप अक्सर करते हैं?

2—कई महात्मागण, साधु और मुनि आपकी बातें चुरा कर इस भांति बोलते हैं कि जैसे उन्हीं की हों। क्या इन्हें समय रहते रोकना आवश्यक नहीं है?

3—प्रायः सभी तथाकथित धर्मों में, खासकर ईसाइयत में प्रायश्चित्त को बड़ा धार्मिक गुण माना जाता है किंतु कल आपने बताया कि प्रायश्चित्त क्रोध का ही शीर्षासन करता हुआ रूप है। कृपा करके इस संदर्भ में आगे कुछ कहें। Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-09)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-08)

अपने दीपक स्वयं बनो—(आठवां प्रवचन)

दिनांक १८ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—भक्ति, ज्ञान और कर्म स्वभाव से या प्रभाव से होता है? प्रभु, समझाने की कृपा करें!

2—परमात्मा को पाकर इस अनुभव को प्रकट क्यों नहीं किया जा सकता है? Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-08)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-07)

युवा होने की कला—(सातवां प्रवचन)

दिनांक १७ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—आपने अक्सर भारत के बुढ़ापे की और उससे पैदा हुई उसकी जड़ता की चर्चा की है। कृपया बताएं कि क्या यह जाति फिर से युवा हो सकती है? और कैसे?

2—जाएंगे कहां सूझता नहीं

चल पड़े मगर रास्ता नहीं

क्या तलाश है कुछ पता नहीं

बुन रहे हैं ख्वाब दम-बदम! Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-07)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-06)

मुझको रंगों से मोह—(छठवां- प्रवचन)

दिनांक १६ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—आसक्ति क्या है? हम चीजों, विचारों और व्यक्तियों से इतने आसक्त क्यों हो जाते हैं? और क्या आसक्ति से छुटकारा भी है?

2—मैं प्रार्थना करना चाहती हूं। क्या प्रार्थना करूं, कैसे प्रार्थना करूं, इसका मार्गदर्शन दें।

3—आप दल-बदलुओं के संबंध में क्यों कुछ नहीं कहते? इनके कारण ही तो देश की बरबादी हो रही है। Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-06)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-05)

हंसा, उड़ चल वा देस—(पांचवां-प्रवचन)

दिनांक १५ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1–प्रश्न कुछ बनता नहीं, पता नहीं कुछ पूछना भी चाहती हूं या नहीं, पर आपसे कुछ सुनना चाहती हूं। मेरे लिए मेरा नाम मत लेना।

2—हमें किसी से प्रेम है या मोह है, यह कैसे जाना जा सकता है?

3—लल्लू के पट्ठों के संबंध में थोड़ा कुछ और कहें! Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-05)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-04)

जीवन एक अभिनय—(चौथा प्रवचन)

दिनांक १४ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—क्या इस बार फिर मैं आपको चूक जाऊंगा?

2—कल आपने मंगलदास को कहा कि पुराने संन्यास में डर नहीं है, नव-संन्यास में डर है। लेकिन मेरी पत्नी मेरे पुराने संन्यास व्रत-नियम आदि से डरती थी और अब पांच वर्षों से मेरे नव-संन्यास से वह डरती नहीं बल्कि उसे श्रद्धापूर्वक लेती है। वह भी आपकी संन्यासिनी है और मस्त है।

3—कल आपने वह प्यारी लखनवी कहानी कही। उत्सुकता है जानने की कि फिर उन छह-छह इंच ऊंचे और साठ-साठ वर्ष बूढ़े दोनों भाइयों का आगे क्या हुआ! Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-04)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-03)

मेरा संन्यास वसंत है—(तीसरा प्रवचन)

दिनांक १३ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

1—मैं आपके नव-संन्यास से भयभीत क्यों हूं? वैसे पुराने ढंग के संन्यास से मुझे जरा भी भय नहीं लगता है।

पहला प्रश्न: भगवान,

मैं आपके नव-संन्यास से भयभीत क्यों हूं? वैसे पुराने ढंग के संन्यास से मुझे जरा भी भय नहीं लगता है।

मंगलदास,

नए से सदा भय लगता है–नए के कारण ही। मन पुराने से सदा राजी होता है; क्योंकि मन पुराने में ही जीता है। नये में मन की मृत्यु है, पुराने में मन का पोषण है। जितना पुराना हो, मन उससे उतना ही ज्यादा राजी होता है। जितना नया हो, मन उतना ही घबड़ाता है उतना ही भागता है। Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-03)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-02)

खोलो शून्य के द्वार—(दूसरा प्रवचन)

दिनांक १२ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

1—अभी न ले जाएं उस पार

इन अंधियारी रातों में अब

चंदा देखा पहली बार

क्षण भर तो जी लेने दें अब

रुक कर निरख तो लेने दें अब

कुछ कह लेने कुछ सुन लेने दें

भ्रम है सपना है यह कह कर

अभी न खोलें शून्य के द्वार

अभी न ले जाएं उस पार

2—आप क्या कहते हैं, मैं समझ नहीं पाता हूं। क्या करूं?

3—क्या संसार में कोई भी अपना नहीं है? Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-02)”

प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-01)

तेरी जो मर्जी-(पहला प्रवचन)

दिनांक ११ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

1—नई प्रवचनमाला को आपने नाम दिया है: प्रीतम छबि नैनन बसी! क्या इसके अभिप्राय पर कुछ प्रकाश डालने की कृपा करेंगे?

2—मैं अत्यंत आलसी हूं। इससे भयभीत होता हूं कि मोक्ष-उपलब्धि कैसे होगी। मार्ग-दर्शन दें!

3—बस यही एक अभीप्सा है:

मौन के गहरे अतल में डूब जाऊं

छूट जाए यह परिधि परिवेश

शब्दों का महत व्यापार

सीखा ज्ञान सारा

और अपने ही निबिड़ एकांत में Continue reading “प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रवचन-01)”

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