चौथा प्रवचन
अंतिम स्वर्ण सोपान: परम मौन
पहला प्रश्नः
न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः
वृद्धाः न ते ये न वदन्ति धर्मम्।
नासो धर्मो यत्र न सत्यमस्ति
न तत्सत्यं यच्छलेलानुविद्धम्।।
‘जिसमें वृद्ध नहीं हैं वह सभा नहीं है; जो धर्म को नहीं बतलाते वे वृद्ध नहीं हैं।
जिसमें सत्य नहीं है वह धर्म नहीं है; जिसमें छल मिला हुआ है वह सत्य नहीं है।’
महाभारत के इस सुभाषित पर कुछ कहने की कृपा करें।
सहजानंद, वृद्ध होना तो बहुत आसान है। कुछ न करो तो भी वृद्ध हो ही जाओगे। अधार्मिक भी वृद्ध हो जाता है, धार्मिक भी वृद्ध हो जाता है; पापी भी, पुण्यात्मा भी; साधु भी, असाधु भी। वृद्ध होना कोई कला नहीं है। पशु-पक्षी भी वृद्ध होते हैं, वृक्ष भी वृद्ध होते हैं, पहाड़-पर्वत भी वृद्ध होते हैं। Continue reading “बहुतेरे हैं घाट-(प्रवचन-04) “