घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-07)

सातवां-प्रवचन-(धर्म मनुष्य-केंद्रित हो)

हजारों वर्षों से धर्म के नाम पर खोज चलती है। किसकी खोज चलती है? परमात्मा की खोज चलती है, मोक्ष की खोज चलती है, लेकिन हजारों साल के बाद भी न तो परमात्मा का कोई पता है, न आत्मा का कोई पता है, न मोक्ष का कोई पता। मेरे देखे यह खोज ही गलत हो गई। यह खोज वैसे ही गलत हो गई है जैसे कोई अंधा आदमी प्रकाश की खोज करे। यह खोज इसलिए गलत नहीं हो गई है कि प्रकाश नहीं है। प्रकाश तो है, लेकिन अंधा आदमी प्रकाश की खोज कैसे करे? और अंधा आदमी अगर प्रकाश की खोज में पड़ जाए, तो एक बात निश्चित है कि अंधे को प्रकाश नहीं मिल सकता है। अंधे आदमी को प्रकाश की बात ही नहीं करनी चाहिए। अंधे आदमी को आंख की खोज करनी चाहिए। आंख होगी तो प्रकाश होगा, आंखें नहीं होंगी तो प्रकाश नहीं होगा। प्रकाश हो और आंख न हो तो भी प्रकाश नहीं है। धर्म की खोज को ईश्वर की दिशा में लगाने से ही धर्म जगत में विकसित नहीं हो पाया। असली सवाल ईश्वर नहीं है, असली सवाल मनुष्य है। मनुष्य की खोज धर्म का आधार बनानी चाहिए। जिस दिन मनुष्य अपने को खोज लेता है, जिस दिन मनुष्य अपने को जान लेता है, उस दिन ईश्वर अनजाना नहीं रह जाता है। उस दिन मोक्ष भी अपनाया नहीं रह जाता। धर्म का केंद्र मनुष्य होना चाहिए, ईश्वर नहीं। Continue reading “घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-07)”

घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-06)

छठवां-प्रवचन-(जीवन..एक स्वप्न)

कबीर एक दिन कह रहे हैं: आकाश में बादल घिरे हैं। उनका घनघोर नाद सुनाई पड़ रहा है।

साधुओं ने आकाश की तरफ देखा। वहां न कोई बादल है, न घनघोर नाद है। उन्होंने बहुत हैरान होकर कबीर की ओर देखा। लेकिन, कबीर की आंखें बंद है, और वे किसी भीतरी आकाश की और किन्हीं उन बादलों की बात कर रहे हैं, जो मनुष्य की अंतरात्मा में घिरते और बरसते हैं। फिर कबीर ने कहाः साधुओ, अमृत की वर्षा हो रही है। फिर उन सारे घिरे लोगों ने बाहर की तरफ देखा। उसी आकाश की तरफ जिससे हम परिचित हैं। लेकिन, वहां कोई वर्षा नहीं हो रही है। अमृत तो दूर, पानी की बूंद भी नहीं पड़ रही है। उन्होंने चैंक कर फिर कबीर की तरफ देखा। लेकिन उनकी आंखें बंद हैं और वही कहे जा रहे हैं कि सुने नहीं, पीओ, अमृत बरस रहा है, खाली मत रह जाओ और वे सब पूछते हैं कबीर से, कहां बरस रहा है? कहां है बादल? कहां है आकाश? कहां है अमृत? Continue reading “घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-06)”

घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-05)

पांचवां-प्रवचन-(प्रेम नगर के पथ पर

प्रेम के गीत आदमी हजारों वर्षों से गाता रहा है। सुनने में वे आनंदपूर्ण होते हैं। उनमें भरा हुआ भाव और संगीत भी हृदय को छूता है। लेकिन यह बात स्मरण रहे कि आदमी ने अब तक प्रेम के गीत गाए हैं। प्रेम को नहीं जाना, और प्रेम के गीत के कारण यह भूल भी बहुत लोगों को पैदा हो गई कि मनुष्य के हृदय में प्रेम है और हम एक दूसरे को प्रेम करते हैं। अभी तक प्रेम का नगर बस नहीं सकता है। गीत सुंदर हैं लेकिन गीत सच्चे नहीं हैं! अभी प्रेम के नगर को बसने में देर है। यह सत्य कितना ही कटु मालूम हो लेकिन इस सत्य को सोच लेना जरूरी है कि गीतों में हम जो गाते रहे हैं कहीं वे झूठ तो नहीं हैं? कहीं वे मन को समझा लेने की बात तो नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि जीवन में जो नहीं है उसे गाकर हम पूर्ति कर लेते हैं? सच्चाई यही है कि गीत और हमारी जिंदगी में बड़ा फर्क है। अगर कोई हमारे गीतों को सुनेगा तो भ्रम में पड़ जाएगा। Continue reading “घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-05)”

घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-04)

चौथा-प्रवचन

कृष्ण की अनासक्ति, बुद्ध की उपेक्षा, महावीर की वीतरागता, क्राइस्ट की तटस्थता

क्राइस्ट की तटस्थता और बुद्ध की उपेक्षा, महावीर की वीतरागता और कृष्ण की अनासक्ति, इनमें बहुत सी समानताएं हैं। लेकिन बुनियादी भेद भी है। समानता अंत पर है, उपलब्धि पर है; भेद मार्ग में है। अंतिम क्षण में ये चारों बातें एक ही जगह पहुंचा देती हैं। लेकिन चारों के रास्ते बड़े अलग-अलग हैं। जीसस जिसे तटस्थता कहते हैं, बुद्ध जिसे उपेक्षा कहते हैं, इनमें बड़ी गहरी समानता है। यह जगत कैसा है, इस जगत की धाराएं जैसी है, इस जगत के अंतद्र्वंद्व जैसे हैं, इस जगत में भेद और विरोध जैसे हैं..उनके प्रति को तटस्थता हो सकती है। लेकिन तटस्थता कभी भी प्रसन्नता नहीं हो सकती। तटस्थता बहुत गहरे में उदासी बन जाएगी। इसलिए जीसस उदास हैं और अगर वे किसी आनंद को पाते भी हैं, तो वह इस उदासी के रास्ते से ही उन्हें उपलब्ध होता है। लेकिन उसका पूरा रास्ता उदास हैं। वे जीवन के पथ पर गीत गाते हुए नहीं निकलते। तटस्थता उदासी बन ही जाएगी। Continue reading “घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-04)”

घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-03)

तीसरा-प्रवचन–(ज्ञान-गंगा)

प्रेम से बड़ी इस जगत में दूसरी कोई अनुभूति नहीं है। प्रेम की परिपूर्णता में ही व्यक्ति विश्वसत्ता से संबंधित होता है। प्रेम की अग्नि में ही स्व और पर के भेद भस्म हो जाते हैं और उसकी अनुभूति उपलब्ध होती है, जो कि स्व और पर के अतीत है। धर्म की भाषा में इस सत्य की अनुभूति का नाम ही परमात्मा है। विचारपूर्वक देखने पर विश्व की समस्त सत्ता एक ही प्रतीत होती है। उसमें कोई खंड दिखाई नहीं पड़ते हैं। भेद और भिन्नता के होते हुए भी सत्ता अखंड है। जितनी वस्तुएं हमें दिखाई पड़ती हैं और जितने व्यक्ति वे कोई भी स्वतंत्र नहीं हैं। सबकी सत्ता परस्पर आश्रित है। एक के अभाव में दूसरे का ही अभाव हो जाता है। स्वतंत्र सत्ता तो मात्र समग्र विश्व की है। यह सत्य विस्मरण हो जाए तो मनुष्य में अहम का उदय होता है। वह स्वयं को शेष सबसे पृथक और स्वतंत्र होने की भूल कर बैठता है, जब कि उसका होना किसी भी दृष्टि और विचार से स्वतंत्र नहीं है। मनुष्य की देह प्रति क्षण पंच भूतों से निर्मित होती रहती है, उनमें से किसी का सहयोग एक पल को भी छूट जाए तो जीवन का अंत हो जाता है। यह प्रत्येक को दृश्य है। जो अदृश्य है वह इसी भांति सत्य है। चेतना के अदृश्य द्वारों से परमात्मा का सहयोग एक क्षण को भी विलीन हो जाए तो भी मनुष्य विसर्जित हो जाता है। Continue reading “घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-03)”

घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन–(जीवन और मृत्यु)

सारे मनुष्य का अनुभव शरीर का अनुभव है, सारे योगी का अनुभव सूक्ष्म शरीर का अनुभव है, परम योगी का अनुभव परमात्मा का अनुभव है। परमात्मा एक है, सूक्ष्म शरीर अनंत है, धूल शरीर अनंत है। वह जो सूक्ष्म है वह नए स्थूल शरीर ग्रहण करता है। हम यहां देख रहे हैं कि बहुत से बल्ब जले हुए हैं। विद्युत तो एक है, विद्युत बहुत नहीं है। वह ऊर्जा, वह शक्ति वह इनर्जी एक है लेकिन दो अलग बल्बों से वह प्रकट हो रही है। बल्ब का शरीर अलग-अलग है, उसकी आत्मा एक है। हमारे भीतर से जो चेतना झांक रही है वह चेतना एक है लेकिन एक उपकरण है सूक्ष्म देह, दूसरा उपकरण है स्थूल देह। हमारा अनुभव स्थूल देह तक ही रुक जाता है। यह जो स्थूल देह तक रुक गया अनुभव है यही मनुष्य के जीवन का सारा अंधकार और दुख है। लेकिन कुछ लोग सूक्ष्म शरीर पर भी रुक सकते हैं। जो लोग सूक्ष्म शरीर पर रुक जाते हैं वे ऐसा कहेंगे कि आत्माएं अनंत हैं। लेकिन जो सूक्ष्म शरीर के भी आगे चले जाते हैं वे कहेंगे परमात्मा एक है, आत्मा एक है, ब्रह्म एक है। Continue reading “घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-02)”

घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-01)

पहला-प्रवचन-सरलता-(सजगता और शून्यता)

सुबह-सुबह एक झील के किनारे से नौका छूटी। कुछ लोग उस पर सवार थे। नौका ने झील में थोड़ा ही प्रवेश किया होगा कि जोर का तूफान आ गया और बादल घिर आए। नौका डगमगाने लगी। आज की नौका नहीं थी, दो हजार वर्ष पहले की थी। उसके डूबने का डा पैदा हो गया। जितने लोग उस नौका पर थे, सारे लोग घबड़ा गए। प्राणों का संकट खड़ा हो गया। लेकिन उस समय भी उस नौका पर एक आदमी शांत सोया हुआ था। उन सारे लोगों ने जाकर उस आदमी को जगाया और कहा कि क्या सारे रहे हो और कैसे शांत बने हो। प्राण संकट में हैं, मृत्यु निकट में है और नौका के बचने की कोई उम्मीद नहीं है। तूफान बड़ा है और दोनों किनारे दूर है। उस शांत सोए हुए व्यक्ति ने आंखें खोलीं और कहाः कितने कम विश्वास के तुम लोग हो, कितनी कम श्रद्धा है तुममें। कहो झील से कि शांत हो जाए। वे लोग हैरान हुए कि झील किसी के कहने से शांत होती है! यह कैसी पागलपन की बात है! लेकिन वह शांत सोया हुआ आदमी उठा और झील के पास गया और उसने जाकर झील से कहा, झील! शांत हो जाओ! और आश्चर्यों का आश्चर्य कि झील शांत हो गई। Continue reading “घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-01)”

घाट भुलाना बाट बिनु-(भुमिका)

घाट भुलाना बाट बिनु-(विविध)

जादूगर आनंद के लिए.. रामचंद्र

अंतर्वस्तु

आमुख

ओशो के प्रवचनों में रहस्य और अर्थ का रचनात्मक सम्मिश्रण मिलता है और उनके व्यक्तित्व में तरलता एवं सुदृढ़ता का मणि-कांचन संयोग। वे निर्भीक हैं, फिर भी उनमें उस व्यक्ति की झिझक है जो जाड़े में किसी जल-प्रवाह को पैदल चल कर पार करता हो! वे जागरूक हैं, फिर भी उस व्यक्ति के समान हैं जो चारों ओर अपने पड़ोसियों से भयभीत हो!

वे उस बर्फ की तरह तरल हैं जो पिघल रही हो!

वे ठोस हैं मानों कोई अनगढ़ा काठ हों!

वे प्रशस्त हैं मानों कोई उपत्यका हों!

वे मलिन हैं मानों पंकिल जल हों! Continue reading “घाट भुलाना बाट बिनु-(भुमिका)”

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