सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-05)

प्रवचन पांचवां-(प्रेम के पंख)

सत्य को या परमात्मा को जानना कोई बौद्धिक ऊहापोह, कोई विचार मात्र करने की बात नहीं है, वरन वे ही व्यक्ति सत्य से परिचित हो पाते हैं, जो अपने भीतर सत्य को ग्रहण करने की क्षमता, पात्रता या ग्राहकता पैदा कर लेते हैं। हम केवल उतने ही अर्थों में जानते हैं, जितनी जानने की क्षमता हममें पैदा होती है और इसलिए स्मरण रखें कि जो हमारा ज्ञान है, वही सत्य की सीमा कभी भी नहीं है। हमारे ज्ञान से सत्य हमेशा बड़ा है। क्यों? क्योंकि जितना हम जानते हैं, उससे बहुत ज्यादा जानने को सदा शेष है। जो हमारा ज्ञान है, वही सत्य नहीं है। सत्य हमारे ज्ञान से सदा बड़ा है। क्यों? क्योंकि हमारी जानने की क्षमता पूर्ण नहीं है। वह मनुष्य जो अपने ज्ञान को ही सत्य की सीमा समझ लेता है, रुक जाता है, ठहर जाता है। संसार में भी जो हम जानते हैं, वह हमारी इंद्रियों के द्वारा सीमित है। यदि किसी व्यक्ति के पास आंख न हो, तो उसे इस जगत में प्रकाश जैसी कोई भी चीज नहीं होगी। अगर एक ऐसा समाज हो अंधों का, जहां किसी के पास आंख न हो, तो उस समाज के भीतर प्रकाश के संबंध में कोई धारणा नही होगी। Continue reading “सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-05)”

सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-04)

प्रवचन चौथा -(स्यवं का सत्य)

मेरे प्रिय आत्मन्!

बोलते समय, बोलने के पहले मुझे यह सोच उठता है हमेशा, किसान सोच लेता है कि जिस जमीन पर हम बीज फेंक रहे हैं उस जमीन पर बीज अंकुरित होंगे या नहीं? बोलने के पहले मुझे भी लगता है, जिनसे कह रहा हूं वे सुन भी सकेंगे या नहीं? उनके हृदय तक बात पहुंचेगी या नहीं पहुंचेगी? उनके भीतर कोई बीज अंकुरित हो सकेगा या नहीं हो सकेगा? और जब इस तरह सोचता हूं तो बहुत निराशा मालूम होती है। निराशा इसलिए मालूम होती है कि विचार केवल उनके हृदय में बीज बन पाते हैं जिनके पास प्यास हो और केवल उनके हृदय सुनने में समर्थ हो पाते हैं जिनके भीतर गहरी अभीप्सा हो। अन्यथा हम सुनते हुए मालूम होते हैं, लेकिन सुन नहीं पाते। अन्यथा हमारे हृदय पर विचार जाते हुए मालूम पड़ते हैं, लेकिन पहुंच नहीं पाते और उनमें कभी अंकुरण नहीं होता है। Continue reading “सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-04)”

सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन-(मौन का अर्थ)

मेरे प्रिय आत्मन्!

मैं सोचता था किस संबंध में आपसे बात करूं, यह स्मरण आया कि आपके संबंध में ही थोड़ी सी बातें कर लेना उपयोग का होगा। परमात्मा के संबंध में बहुत बातें हमने सुनी हैं और आत्मा के संबंध में भी बहुत विचार जाने हैं। लेकिन उनका कोई भी मूल्य नहीं है। अगर हम उस स्थिति को न समझ पाएं जिसमें कि हम मौजूदा होते हैं। आज जैसी मनुष्य की दशा है, जैसी जड़ता और जैसा मरा हुआ आज मनुष्य हो गया है, ऐसे मनुष्य का कोई संबंध परमात्मा से या आत्मा से नहीं हो सकता है।

परमात्मा से संबंध की पहली शर्त है, प्राथमिक सीढ़ी है कि हम अपने भीतर से सारी जड़ता को दूर कर दें। और जो-जो तत्व हमें जड़ बनाते हों, उनसे मुक्त हो जाएं। और जो-जो अनुभूतियां हमें ज्यादा चैतन्य बनाती हों, उनके करीब पहुंच जाएं। Continue reading “सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-03)”

सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन-(श्रद्धा नहीं, जिज्ञासा)

मैं अत्यंत आनंदित हूं और अनुगृहीत भी, सत्य के संबंध में थोड़ी सी बातें आप सुनने को उत्सुक हैं। यह मुझे आनंदपूर्ण होगा कि अपने हृदय की थोड़ी सी बातें आपसे कहूं। बहुत कम लोग हैं जो सुनने को राजी हैं और बहुत कम लोग हैं जो देखने को उत्सुक हैं। इसलिए जब कोई सुनने को उत्सुक मिल जाए और कोई देखने को तैयार हो, तो स्वाभाविक है कि आनंद अनुभव हो। हमारे पास आंखें हैं, और हमारे पास कान भी हैं, लेकिन जैसा मैंने कहा कि बहुत कम लोग तैयार हैं कि वे देखें और बहुत कम लोग तैयार हैं कि वे सुनें। यही वजह है कि हम आंखों के रहते हुए अंधों की भांति जीते हैं और हृदय के रहते हुए भी परमात्मा को अनुभव नहीं कर पाते। मनुष्य को जितनी शक्तियां उपलब्ध हुई हैं, उसके भीतर जितनी संभावनाएं हैं अनुभूति की, उनमें से न के बराबर ही विकसित हो पाती हैं। Continue reading “सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-02)”

सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-01)

पहला प्रवचन-(सत्यम्, शिवम्, सुंदरम्)

मेरे प्रिय आत्मन्!

मनुष्य के जीवन में या जगत के अस्तित्व में एक बहुत रहस्यपूर्ण बात है। जीवन को तोड़ने बैठेंगे तो जीवन भी तीन इकाइयों में खंडित हो जाता है। अस्तित्व को खोजने निकलेंगे तो अस्तित्व भी तीन इकाइयों में खंडित हो जाता है। तीन की संख्या बहुत रहस्यपूर्ण है। और जब तक धार्मिक लोग तीन की संख्या की बात करते थे तब तक तो हंसा जा सकता था, लेकिन अब वैज्ञानिक भी तीन के रहस्य को स्वीकार करते हैं। पदार्थ को तोड़ने के बाद अणु के विस्फोट पर, एटामिक एनालिसिस से एक बहुत अदभुत बात पता लगी है, और वह यह है कि अस्तित्व जिस ऊर्जा से निर्मित है उस ऊर्जा के तीन भाग हैं–न्यूट्रान, प्रोटान, इलेक्ट्रान। एक ही विद्युत तीन रूपों में विभाजित होकर सारे जगत का निर्माण करती है। Continue reading “सत्य का अन्वेषण-(प्रवचन-01)”

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