भारत का भविष्य-(प्रवचन-17)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

(नोट-इस प्रवचन का आडियों टेप अब उपलब्ध नहीं है)

सत्रहवां-प्रवचन-(ओशो)

क्या भारत को क्रांति की जरूरत है?

क्या भारत को क्रांति की जरूरत है? यह प्रश्न वैसा ही है जैसे कोई किसी बीमार आदमी के पास खड़ा होकर पूछे कि क्या बीमार आदमी को औषधि की जरूरत है? भारत को क्रांति की जरूरत ऐसी नहीं है, जैसी और चीजों की जरूरत होती है, बल्कि भारत बिना क्रांति के अब जी भी नहीं सकेगा। इस क्रांति की जरूरत कोई आज पैदा हो गई है, ऐसा भी नहीं है। भारत के पूरे इतिहास में कोई क्रांति कभी हुई ही नहीं। आश्चर्यजनक है यह घटना कि एक सभ्यता कोई पांच हजार वर्षों से अस्तित्व में है लेकिन वह क्रांति से अपरिचित है। निश्चित ही जो सभ्यता पांच हजार वर्षों से क्रांति से अपरिचित है वह करीब-करीब मर चुकी होगी। हम केवल उसके मृत बोझ को ही ढो रहे हैं और हमारी अधिकतम समस्याएं उस मृत बोझ को ही ढोने से ही पैदा हुई हैं। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-17)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-16)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

सोलहवां-प्रवचन-(ओशो)

भारत का दुर्भाग्य

मेरे प्रिय आत्मन्!

भारत के दुर्भाग्य की कथा बहुत लंबी है। और जैसा कि लोग साधारणतः समझते हैं कि हमें ज्ञात है कि भारत का दुर्भाग्य क्या है, वह बात बिल्कुल ही गलत है। हमें बिल्कुल भी ज्ञात नहीं है कि भारत का दुर्भाग्य क्या है। दुर्भाग्य के जो फल और परिणाम हुए हैं वे हमें ज्ञात हैं। लेकिन किन जड़ों के कारण, किन रूट्स के कारण भारत का सारा जीवन विषाक्त, असफल और उदास हो गया है? वे कौन से बुनियादी कारण हैं जिनके कारण भारत का जीवन-रस सूख गया है, भारत का बड़ा वृक्ष धीरे-धीरे कुम्हला गया, उस पर फूल-फल आने बंद हो गए हैं, भारत की प्रतिभा पूरी की पूरी जड़, अवरुद्ध हो गई है? वे कौन से कारण हैं जिनसे यह हुआ है? Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-16)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-15)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

पंद्रहवां-प्रवचन'(ओशो)

भारत का भविष्य

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं। बहुत पुराने दिनों की घटना है, एक छोटे से गांव में एक बहुत संतुष्ट गरीब आदमी रहता था। वह संतुष्ट था इसलिए सुखी भी था। उसे पता भी नहीं था कि मैं गरीब हूं। गरीबी केवल उन्हें ही पता चलती है जो असंतुष्ट हो जाते हैं। संतुष्ट होने से बड़ी कोई संपदा नहीं है, कोई समृद्धि नहीं है। वह आदमी बहुत संतुष्ट था इसलिए बहुत सुखी था, बहुत समृद्ध था। लेकिन एक रात अचानक दरिद्र हो गया। न तो उसका घर जला, न उसकी फसल खराब हुई, न उसका दिवाला निकला। लेकिन एक रात अचानक बिना कारण वह गरीब हो गया था। आप पूछेंगे, कैसे गरीब हो गया? उस रात एक संन्यासी उसके घर मेहमान हुआ और उस संन्यासी ने हीरों की खदानों की बात की और उसने कहा, पागल तू कब तक खेतीबाड़ी करता रहेगा? पृथ्वी पर हीरों की खदानें भरी पड़ी हैं। अपनी ताकत हीरों की खोज में लगा, तो जमीन पर सबसे बड़ा समृद्ध तू हो सकता है। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-15)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-14)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

चौदहवां-प्रवचन-(ओशो)

सादगी का कभी-कभी मजाक करते हैं तो ऐसा नहीं है कि गांधी जी ने इस देश का निरीक्षण किया, पर्यटन किया और करुणा की वजह से उन्होंने जीवन में जो जरूरी थी उतनी चीजों से चला कर वह सादगी का अंगीकार किया था, वह करुणा की वजह से किया नहीं है वह?

करुणा की वजह से हो या न हो, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता। मेरे लिए यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि गांधी जी ने किस वजह से सादगी अख्तियार की। मेरे लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि सादगी का रुख मुल्क को गरीब बनाता है। मेरे लिए वह महत्वपूर्ण नहीं है। वह गांधी जी की व्यक्तिगत बात है कि वे करुणा से सादे रहे हैं, या उनको कोई ऑब्सेशन है इसलिए सादे रहे हैं, या दिमाग खराब है इसलिए सादे रहे हैं। इससे मुझे कोई प्रयोजन नहीं है। वह गांधी जी की निजी बात है। मेरे लिए प्रयोजन जिस बात से है वह यह है कि जो मुल्क सादगी को प्रतिष्ठा देता है वह मुल्क संपन्न नहीं हो सकता। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-14)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-13)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

तेरहवां-प्रवचन-(ओशो)

एक नये भारत की ओर

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक नये भारत की ओर? इस संबंध में थोड़ी सी बातें मैं आपसे कहना चाहूंगा।

पहली बात तो यह कि भारत को हजारों वर्ष तक यह पता ही नहीं था कि वह पुराना हो गया है। असल में पुराने होने का पता ही तब चलता है जब हमारे पड़ोसी नये हो जाएं। पुराने के बोध के लिए किसी का नया हो जाना जरूरी है।

भारत को हजारों वर्ष तक यह पता नहीं था कि वह पुराना हो गया है। इधर इस सदी में आकर हमें यह प्रतीति होनी शुरू हुई है कि हम पुराने हो गए हैं। इस प्रतीति को झुठलाने की हम बहुत कोशिश करते हैं। क्योंकि यह बात मन को वैसे ही दुख देती है जैसे किसी बूढ़े आदमी को जब पता चलता है कि वह बूढ़ा हो गया है तो दुख शुरू होता है। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-13)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-12)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

बारहवां-प्रवचन-(ओशो)

एक बहुत पुराने नगर में उतना ही पुराना एक चर्च था। वह चर्च इतना पुराना था कि उस चर्च में भीतर जाने में भी प्रार्थना करने वाले भयभीत होते थे। उसके किसी भी क्षण गिर पड़ने की संभावना थी। आकाश में बादल गरजते थे तो चर्च के अस्थि-पंजर कंप जाते थे। हवाएं चलती थीं तो लगता था चर्च अब गिरा, अब गिरा।

ऐसे चर्च में कौन प्रवेश करता? कौन प्रार्थना करता? धीरे-धीरे उपासक आने बंद हो गए। चर्च के संरक्षकों ने कभी दीवाल का पलस्तर बदला, कभी खिड़की बदली, कभी द्वार रंगे। लेकिन न द्वार रंगने से, न पलस्तर बदलने से, न कभी यहां ठीक कर देने से, वहां ठीक कर देने से, वह चर्च इस योग्य न हुआ कि उसे जीवित माना जा सके। वह मुर्दा ही बना रहा। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-12)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-11)

भारत का भविष्य-–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

ग्यारहवां-प्रवचन-(ओशो)

मेरे प्रिय आत्मन्!

बीती दो चर्चाओं के संबंध में बहुत से प्रश्न आए हैं। कुछ मित्रों ने पूछा है कि भारत सैकड़ों वर्षों से दरिद्र है, तो इस दरिद्रता में, इस दरिद्रता में तो गांधीवाद का हाथ नहीं हो सकता है? वह क्यों दरिद्र है इतने वर्षों से?

गांधीवाद का हाथ तो नहीं है, लेकिन गांधीवाद जैसी ही विचारधाराएं इस देश को हजारों साल से पीड़ित किए हुए हैं। उन विचारधाराओं का हाथ है। नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उन विचारधाराओं को हम क्या नाम देते हैं। दो विचारधाराओं पर ध्यान दिलाना जरूरी है। एक तो भारत में कोई तीन-चार हजार वर्षों से संतोष की, कंटेंटमेंट की जीवन धारणा को स्वीकार किया है। संतुष्ट रहना है, जितना है उसमें संतोष कर लेना है। जो भी है उसमें ही तृप्ति मान लेनी है। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-11)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-10)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

दसवां-प्रवचन-ओशो

ए रेडियो टॉक बाई ओशो

…अंत तक अमल नहीं करते।

पर मैं तो बहुत कुछ करना भी चाह रही हूं बीबी जी।

सच!

हां।

यह सच फिर वही बात की आपने, आप करना चाह रही हैं या कुछ कर रही हैं? मैं तो यह जानना चाहती हूं।

बीबी देखिए, देश-विवाह हमारा पहला कर्तव्य है, पहला धर्म है, बस इसी के लिए हम कुछ योजनाएं बना रहे हैं।

हां-हां, यानी और भी कुछ लोग हैं आपके पास?

हां, मेरी कुछ पड़ोसनें भी अपना सहयोग दे रही हैं। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-10)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-09)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

नौवां प्रवचन-(ओशो)

शिक्षा और समाज

व्यक्ति के अतिरिक्त और कोई जगह है नहीं। समाज और झूठ, जो बड़े से बड़ा झूठ है। समाज का झूठ दिखाई नहीं पड़ता। लगता ऐसा है कि वही सत्य है, और व्यक्ति तो कुछ भी नहीं। झूठ अगर बहुत पुराना हो, पीढ़ी दर पीढ़ी, लाखों साल में हमने उसे स्थापित किया हो, तो ख्याल में नहीं आता।

लेकिन ख्याल में आना शुरू हुआ है और दुनिया को यह धीरे-धीरे रोज अनुभव होता जा रहा है कि समाज के नाम से की गई कोई भी क्रांति सफल नहीं हुई। और समाज के नाम से हमने जो भी आज तक किया है उससे हमारी मुसीबत समाप्त नहीं हुई। मुसीबत बदल गई हो, यह हो सकता है। एक मुसीबत छोड़ कर हमने दूसरी मुसीबत पा लिए हों, यह तो हुआ है, मुसीबत समाप्त नहीं हो सकी। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-09)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-08)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

आठवां-प्रवचन-(ओशो)

डिक्टेटरशिप व्यक्ति की नहीं; विचार की

(प्रारंभ का मैटर उपलब्ध नहीं। )

…और दो बच्चे के बाद अनिवार्य आपरेशन। समझाने-बुझाने का सवाल नहीं है यह। जैसे हम नहीं समझाते हैं हत्यारे को कि तुम हत्या मत करो, हत्या करना बुरा है। हम कहते हैं, हत्या करना कानूनन बंद है। हत्या से भी ज्यादा खतरनाक आज संख्या बढ़ाना है। तो एक तो अनिवार्य संतति-नियमन। जो लोग बिल्कुल बच्चे पैदा न करें, उनको तनख्वाह में बढ़ती, सिनयारिटी, जो बिल्कुल बच्चे पैदा न करें, एक भी बच्चा पैदा न करें, उनको इज्जत, सम्मान, उनको जितनी सुविधाएं दे सकते हैं उनको सुविधाएं दी जानी चाहिए। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-08)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-07)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

सातवां-प्रवचन-(ओशो)

आध्यात्मिक दृष्टि

मोरार जी भाई देसाई ने कहा कि गांधी जी की आलोचना आर्थिक सोच-विचार करने वाले लोग करते थे, अब आध्यात्मिक लोगों ने भी इनकी आलोचना करनी शुरू कर दी है। शायद मोरार जी भाई को पता नहीं कि गांधी न तो आर्थिक व्यक्ति थे और न राजनैतिक। गांधी मूलतः आध्यात्मिक व्यक्ति थे। और इसलिए गांधी को समझने में न तो आर्थिक समझ के लोग उपयोगी हो सकते हैं और न राजनैतिक बुद्धि के लोग उपयोगी हो सकते हैं। गांधी को समझने में केवल वे ही लोग समर्थ हो सकते हैं जिनकी कोई आध्यात्मिक दृष्टि है। और जब तक गांधी पर आध्यात्मिक दृष्टि के लोग विचार नहीं करेंगे तब तक गांधी के संबंध में सत्य का उदघाटन असंभव है। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-07)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-06)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

छठवां-प्रवचन-(ओशो)

पुराने और नये का समन्वय

एक सवाल पूछा गया है, और वह सवाल वही है जो आपके प्राचार्य महोदय ने भी कहा। सरल दिखाई पड़ती है सैद्धांतिक रूप से जो बात, उसको आचरण में लाने पर तत्काल कठिनाइयां शुरू हो जाती हैं।

कठिनाइयां हैं, लेकिन असंभावनाएं नहीं हैं। डिफिकल्टीज हैं, इंपासिबिलिटीज नहीं हैं। कठिनाइयां तो होंगी हीं, क्योंकि सवाल बहुत बड़ा है। और अगर हम सोचते हों कि कोई ऐसा हल मिल जाएगा जिसमें कोई कठिनाई नहीं होगी, तो ऐसा हल कभी भी नहीं मिलेगा। कठिनाइयां हैं लेकिन कठिनाइयों से कोई सवाल हल होने से नहीं रुकता, जब तक कि असंभावनाएं न खड़ी हो जाएं।

तो एक तो मैं यह कहना चाहता हूं कि कठिनाइयां निश्चित हैं। थोड़ी नहीं, बहुत हैं। लेकिन हल की जा सकती हैं। क्योंकि कठिनाइयां ही हैं और कठिनाइयां हल करने के लिए ही होती हैं। लेकिन अगर हम कठिनाइयों को गिनती करके बैठ जाएं, घबड़ा जाएं, तो फिर एक कदम आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-06)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-05)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

पांचवां-प्रवचन-(ओशो)

भारत किस ओर?

मेरे प्रिय आत्मन्!

विदर इंडिया? भारत किस ओर? यह सवाल भारत के लिए बहुत नया है। कोई दस हजार वर्षों से भारत की दिशा सदा निश्चित रही है, उसे सोचना नहीं पड़ा है। दस हजार सालों से भारत एक अपरिवर्तित, अनचेंजिंग सोसाइटी रहा है। जिसमें कोई परिवर्तन नहीं होता रहा। एक स्टैग्नेंट, ठहरा हुआ समाज रहा है। जैसे कोई तालाब होता है, ठहरा हुआ, चारों तरफ से बंद, तो हम तालाब से नहीं पूछते किस ओर? उसकी कोई गति नहीं होती। नदी से पूछते हैं, किस ओर? उसकी गति होती है। भारत की जिंदगी और भारत का मनुष्य आज तक एक तालाब की भांति रहा है। उसके आस-पास यह सवाल कभी नहीं उठा, किस ओर? Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-05)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-04)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

चौथा-प्रवचन-(ओशो)

खोज की दृष्टि

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं)

यह सवाल एकदम जरूरी और महत्वपूर्ण है। यह बात ठीक है कि एक इंजीनियर के पास रोटी न हो, कपड़ा न हो, खोज की सुविधा न हो, काम न हो, तो वह क्या करे? लेकिन अगर पूरे देश के पास ही रोटी न हो, रोजी न हो, कपड़ा न हो, तो देश क्या करे? और इंजीनियर को कहां से रोटी, रोजी और कपड़ा दे?

जब हम यह बात कहते हैं कि अगर मेरे पास रोटी-रोजी-कपड़ा नहीं तो मैं कैसे कुछ करूं। तो हमें यह भी जानना चाहिए, इस पूरे मुल्क के पास भी रोजी-रोटी-कपड़ा नहीं है। ये आपको कहां से दे? Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-04)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-03)

भारत का भविष्य-(राष्ट्रीय-सामाजिक)

तीसरा-प्रवचन-(ओशो)

भारत की समस्याएं..कारण और निदान

मेरे प्रिय आत्मन्!

यह देश शायद अपने इतिहास के सबसे ज्यादा संकटपूर्ण समय से गुजर रहा है। संकट तो आदमी पर हमेशा रहे हैं। ऐसा तो कोई भी क्षण नहीं है जो क्राइसिस का, संकट का क्षण न हो। लेकिन जैसा संकट आज है, ठीक वैसा संकट मनुष्य के इतिहास में कभी भी नहीं था। इस संकट की कुछ नई खूबियां हैं, पहले हम उन्हें समझ लें तो आसानी होगी।

मनुष्य पर अतीत में जितने संकट थे, वे उसके अज्ञान के कारण थे। जिंदगी में बहुत कुछ था जो हमें पता नहीं था और हम परेशानी में थे। वह परेशानी एक तरह की मजबूरी थी, विवशता थी। नये संकट की खूबी यह है कि यह अज्ञान के कारण पैदा नहीं हुआ है, ज्यादा ज्ञान के कारण पैदा हुआ है। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-03)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-02)

भारत का भविष्य–(राष्ट्रीय-सामाजिक)

दूसरा-प्रवचन-(ओशो)

नये के लिए पुराने को गिराना आवश्यक

मेरे प्रिय आत्मन्!

सुना है मैंने, एक गांव में बहुत पुराना चर्च था। वह चर्च इतना पुराना था कि आज गिरेगा या कल, कहना मुश्किल था। हवाएं जोर से चलती थीं तो गांव के लोग डरते थे कि चर्च गिर जाएगा। आकाश में बादल आते थे तो गांव के लोग डरते थे कि चर्च गिर जाएगा। उस चर्च में प्रार्थना करने वाले लोगों ने प्रार्थना करनी बंद कर दी थी। चर्च के संरक्षक, चर्च के ट्रस्टियों ने एक बैठक बुलाई, क्योंकि चर्च में लोगों ने आना बंद कर दिया था। और तब विचार करना जरूरी हो गया था कि चर्च नया बनाया जाए। वे ट्रस्टी भी चर्च के बाहर ही मिले। उन्होंने अपनी बैठक में चार प्रस्ताव पास किए थे। वे मैं आपसे कहना चाहता हूं। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-02)”

भारत का भविष्य-(प्रवचन-01)  

भारत का भविष्य-(राष्ट्रीय-सामाजिक)

पहला-प्रवचन-(ओशो)

भारत को जवान चित्त की आवश्यकता

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात शुरु करना चाहूंगा।

सुना है मैंने कि चीन में एक बहुत बड़ा विचारक लाओत्सु पैदा हुआ। लाओत्सु के संबंध में कहा जाता है कि वह बूढ़ा ही पैदा हुआ। यह बड़ी हैरानी की बात मालूम पड़ती है। लाओत्सु के संबंध में यह बड़ी हैरानी की बात कही जाती रही है कि वह बूढ़ा ही पैदा हुआ। इस पर भरोसा आना मुश्किल है। मुझे भी भरोसा नहीं है। और मैं भी नहीं मानता कि कोई आदमी बूढ़ा पैदा हो सकता है। लेकिन जब मैं इस हमारे भारत के लोगों को देखता हूं तो मुझे लाओत्सु की कहानी पर भरोसा आना शुरू हो जाता है। ऐसा मालूम होता है कि हमारे देश में तो सारे लोग बूढ़े ही पैदा होते हैं। Continue reading “भारत का भविष्य-(प्रवचन-01)  “

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