दसवां-प्रवचन-(शाश्वत संगीत भीतर है)
प्रश्न-सार
01-॰ मैं सुखी होना चाहता हूं। अहंकार को मिटाने से तो मैं स्वयं ही मिट जाऊंगा; और मैं रहूंगा ही नहीं तो सुखी कैसे होऊंगा? अस्तित्व खोने की अपेक्षा दुखमय अस्तित्व ही क्यों न ठीक होगा?
02-॰ संतों में किसी ने उस परम अनुभूति को प्रकाश कहा है, किसी ने रंगों की होली, किसी ने अमृत का स्वाद। यह भेद क्यों?
03-॰ भगवान,
जगजीवन के साथ मेरे जीवन का अंतिम मोड़ आ चुका है। आपके चरणों में लपटाई रहूं, यही प्रार्थना है। Continue reading “अरी मैं तो नाम के रंग छकी-(प्रवचन-10)”