दसवां-प्रवचन-(प्रेम ही परमात्मा है)
सागर के तट पर एक मेला भरा था। बड़े-बड़े विद्वान इकट्ठे थे उस सागर के किनारे। और स्वभावतः उनमें एक चर्चा चल पड़ी कि सागर की गहराई कितनी होगी? और जैसी कि मनुष्य की आदत है, वे सब सागर के किनारे बैठ कर विवाद करने लगे कि सागर की गहराई कितनी है? उन्होंने अपने शास्त्र खोल लिए। उन सबके शास्त्रों में गहराई की बहुत बातें थीं। कौन सही है, निर्णय करना बहुत मुश्किल हो गया। क्योंकि सागर की गहराई तो सिर्फ सागर में जाने से पता चल सकती है, शास्त्रों के विवाद में नहीं, शब्दों के जाल में नहीं। विवाद बढ़ता गया। और जितना विवाद बढ़ा, उतना निर्णय मुश्किल होता चला गया। असल में निर्णय लेना हो तो विवाद से बचना जरूरी है। निर्णय न लेना हो तो विवाद से ज्यादा सुगम और कोई रास्ता नहीं। Continue reading “धर्म साधना के सूत्र-(प्रवचन-10)”