चिकलदरा शिविर-प्रवचन-दूसरा
सबसे पहले एक प्रश्न पूछा हैः और उससे संबंधित एक-दो प्रश्न और भी पूछें हैं। पूछा है मन चंचल है। और बिना अभ्यास और वैराग्य के वह कैसे स्थिर होगा। यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है और जिस ध्यान की साधना के लिए हम यहां इकट्ठे हुए हैं, उस साधना को समझने में भी सहयोगी होगा। इसलिए मैं थोड़ी सूक्ष्मता से इस संबंध में बात करना चाहूंगा।
पहली बात तो यह कि हजारों वर्ष से मनुष्य को समझाया गया है कि मन चंचल है और मन की चंचलता बहुत बुरी बात है। मैं आपको निवेदन करना चाहता हूं, मन निश्चित ही चंचल है, लेकिन मन की चंचलता बुरी बात नहीं है। मन की चंचलता उसके जीवंत होने का प्रमाण है। जहां जीवन है वहां गति है, जहां जीवन नहीं है जड़ता है, वहां कोई गति नहीं है। मन की चंचलता आपके जीवित होने का लक्षण है जड़ होने का नहीं। मन की इस चंचलता से बचा जा सकता अगर हम किसी भांति जड़ हो जाएं। Continue reading “चिकलदरा शिविर-(प्रवचन-02)”