ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-10)

ध्यान दर्शन-(साधन-शिविर)..ओशो

प्रवचन-दसवां-(ध्यान: प्यास का अनुसरण)

मेरे प्रिय आत्मन्!

थोड़े से सवाल।

एक मित्र ने पूछा है कि जिस प्रभु का हमें पता नहीं, उसका नाम लेकर संकल्प कैसे करें?

प्रभु का तो पता नहीं है। लेकिन सच ही प्रभु का पता नहीं है? क्योंकि जब भी हम प्रभु से कोई प्रतिमा–कोई राम, कोई कृष्ण, कोई बुद्ध का खयाल ले लेते हैं, तभी कठिनाई हो जाती है। मेरे लिए प्रभु का अर्थ समग्र अस्तित्व है, टोटल एक्झिस्टेंस है। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-10)”

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-09)

ध्यान दर्शन-(साधन-शिविर)–ओशो

प्रवचन-नौवां-(ध्यान: परम स्वास्थ्य का द्वार)

मेरे प्रिय आत्मन्!

दोत्तीन सवाल हैं।

एक मित्र ने पूछा है कि ध्यान से स्वास्थ्य का क्या संबंध है?

बहुत संबंध है। क्योंकि बीमारी का बहुत बड़ा हिस्सा मन से मिलता है। गहरे में तो बीमारी का नब्बे प्रतिशत हिस्सा मन से ही आता है। ध्यान मन को स्वस्थ करता है। इसलिए बीमारी की बहुत बुनियादी वजह गिर जाती है।

यह जो ध्यान की प्रक्रिया है, इससे शरीर पर सीधा भी प्रभाव होता है। क्योंकि दस मिनट की तीव्र श्वास, आपकी जीवन ऊर्जा को, वाइटल एनर्जी को बढ़ाती है। सारा जीवन श्वास का खेल है। जीवन का सारा अस्तित्व श्वास पर निर्भर है। श्वास है तो जीवन है।

हम जिस भांति श्वास लेते हैं, वह पर्याप्त नहीं है। हमारे फेफड़े में, समझें, अंदाजन कोई छह हजार छिद्र हैं। हम जो श्वास लेते हैं वह दो हजार छिद्रों से ज्यादा छिद्रों तक नहीं पहुंचती। बाकी चार हजार छिद्र, दो तिहाई फेफड़े सदा ही कार्बन डाइआक्साइड से भरे रह जाते हैं। वह जो चार हजार छिद्रों में भरा हुआ कार्बन डाइआक्साइड है, वह हमारे शरीर की सैकड़ों बीमारियों के लिए कारण बनता है। वह कार्बन डाइआक्साइड समझें कि आपके भीतर जड़ है, जहां से सभी कुछ गलत निकल सकता है।

दस मिनट की भस्त्रिका, तीव्र श्वास, धीरे-धीरे आपके छह हजार छिद्रों को छूने लगती है, स्पर्श करने लगती है। आपके पूरे फेफड़े शुद्धतम प्राण से भर जाते हैं। इसका परिणाम होगा, गहरा परिणाम शरीर पर होगा।

दूसरे चरण का जो ध्यान का हिस्सा है, वह कैथार्सिस का है, रेचन का है।

आपको शायद पता न हो, जो लोग ध्यान से बिलकुल भी संबंधित नहीं हैं, वे लोग भी बीमारियों को अलग करने के लिए कैथार्सिस को अनिवार्य मानते हैं। आज अमेरिका में कोई दस लैब, दस बड़ी प्रयोगशालाएं हैं, जो सिर्फ कैथार्सिस से सैकड़ों तरह की बीमारियां ठीक करने में सफल हुई हैं। इसालेन में, कैलिफोर्निया में एक बड़ी प्रयोगशाला है, जहां वे पंद्रह दिन व्यक्ति को कैथार्सिस से गुजारते हैं। उसे लड़ना है, चीखना है, चिल्लाना है, तो उस सबका उपाय जुटाते हैं। उपाय ऐसा कि जो किसी के लिए वायलेंट न हो जाए। अगर उसे मारना है तो उसके लिए तकिए दे देते हैं कि वह तकिए पर मारे, चोट करे। चिल्लाना है तो एकांत में चिल्लाए, कूदे, फांदें। पंद्रह दिन में बड़ी से बड़ी बीमारियों पर परिणाम होता है। बड़ी से बड़ी बीमारियां गिर जाती हैं।

तो दूसरा चरण कैथार्सिस का स्वास्थ्य के लिए बहुत अदभुत परिणाम लाता है।

चौथे चरण में जब ‘मैं कौन हूं?’ के बाद हम बिलकुल शांत हो जाते हैं, तो धीरे-धीरे अनाहत भीतर पैदा होने लगता है। इस संबंध में दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं।

ओम शब्द को हमने बहुत सुना है, समझा है, जगह-जगह लिखा है। लेकिन हमें उसके बाबत कुछ बहुत पता नहीं है। वे लोग जो दिन भर ओम का रटन करते हैं, उन्हें भी पता नहीं है।

ओम, जब सब बंद हो जाता है, चित्त की सब क्रियाएं शांत हो जाती हैं, तब सुनी गई साउंड है। की गई नहीं, सुनी गई। आपके द्वारा की गई नहीं, आपके द्वारा सुनी गई। साउंडलेस साउंड है। ध्वनिरहित ध्वनि है। जब सब बंद हो जाता है, तो सिर्फ अस्तित्व, जब आप ही रह गए, मन न रहा, विचार न रहे, कोई आकांक्षा, वासना न रही, सिर्फ बीइंग, सिर्फ होना मात्र रह गया, उस क्षण में जो संगीत सुनाई पड़ता है, उस संगीत को हमने अपने मुल्क में ओम की तरह पकड़ा है, पहचाना है। यहूदियों ने, ईसाइयों ने, मुसलमानों ने आमीन की तरह उसे पहचाना, वह ओम का ही रूप है। जब भी कोई उस चौथे चरण में गया है, तो अ, उ, म के निकट कोई ध्वनि पकड़ी गई। चाहे उसे हम ओम कहें या आमीन कहें, ये हमारे ट्रांसलेशंस हैं। ये हम जब भाषा में कह रहे हैं तब हम उसको इस तरह कह रहे हैं।

उस ध्वनि का तो स्वास्थ्य पर बहुत ही अदभुत परिणाम होता है।

अभी आक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में एक अदभुत प्रयोगशाला काम कर रही है। उस प्रयोगशाला का नाम है डिलाबार। उसने अभी एक छोटा सा बहुत ही कीमती प्रयोग किया है, जो मनुष्य-जाति के लिए भविष्य में बड़े परिणाम ला सकता है।

दो क्यारियां मौसमी फूलों की, बीज डाल दिए गए हैं, अभी अंकुर नहीं आए हैं। दोनों को एक सी रोशनी का इंतजाम है, एक से बीज डाले गए, एक सा खाद, एक सा पानी, सब सुविधा एक सी है। एक क्यारी के ऊपर पॉप म्यूजिक बजाया गया है पूरे दिन, जब तक कि अंकुर नहीं फूट गए, पौधे नहीं बन गए। रोज घंटे भर पॉप म्यूजिक, जो आज सारी दुनिया में चलता है, जो आज की नई जेनरेशन का संगीत है, वह बजाया गया। और दूसरी क्यारी पर क्लासिकल, बीथोवन और मोझर्ट उनका संगीत बजाया गया एक घंटे रोज। माली को कुछ भी पता नहीं है कि क्या किया जा रहा है। माली दोनों क्यारियों की एक सी फिक्र कर रहा है। जिस पर पॉप म्यूजिक बजाया गया, उसके पौधे देरी से अंकुरित हुए, बीज देर से टूटे, पौधे छोटे रह गए, फूल कम आए, जो आए वे भी रुग्ण, बीमार, पूरे न खिले। जिस पर क्लासिकल, शास्त्रीय संगीत बजाया गया, उस पर अंकुर जल्दी आए, बीज जल्दी टूटे, पौधे ज्यादा बड़े हुए, फूल लद गए और जो भी फूल आए सभी स्वस्थ आए।

अब डिलाबार लेबोरेटरी में यह जो अनेक हजारों बार प्रयोग दोहराया गया है, उससे उनके परिणाम हैं। वे यह कहते हैं कि एक-एक ध्वनि का स्वास्थ्य मूल्य है, हेल्थ वैल्यू है। आप किस तरह की ध्वनियां सुन रहे हैं, यह आपके स्वास्थ्य के लिए निर्णायक होगा। और बहुत देर नहीं लगेगी कि साउंड थैरेपी पैदा हो जाएगी। देर नहीं लगेगी कि ध्वनियों से हम मरीजों को ठीक करने की कोशिश करने लगें।

लेकिन जो महाध्वनि है, वह ध्यान में सुनी जाती है। वह महाध्वनि ओम है। वह चौथे चरण में धीरे-धीरे प्रकट होनी शुरू होती है। आपको नहीं प्रकट करना है। आपके भीतर से प्रकट होनी शुरू होती है। और जब प्रकट होती है तब आप भी चिल्लाने लगते हैं।

अब यह फर्क समझ लेना जरूरी है। आप ओम-ओम कहते रहें, इससे कुछ न होगा। ओम आपके भीतर से फूटे, एक्सप्लोड हो, तब परिणाम होंगे। और अगर आप कहते रहे तो बहुत संभावना यह है कि आप इस फाल्स ओम से जो आप कह रहे हैं, इसी से तृप्त हो जाएं और एक्सप्लोजन कभी न हो पाए, विस्फोट कभी न हो। जिस दिन ओम का विस्फोट होता है, उस दिन आपका प्राण-प्राण, रोआं-रोआं चिल्लाने लगता है, सब तरफ से वही फूटने लगता है।

यह जो परम ध्वनि है, जब सब नहीं था, जब चांदत्तारे भी धुआं थे और जब सारा आकाश शून्य था, तब भी गूंज रही थी। और जब महाप्रलय में सब शांत हो जाता है, तब भी जो गूंजती रहेगी। वही जब हम भी बिलकुल पूर्ण शांत और महाप्रलय में प्रविष्ट हो जाते हैं–ध्यान महाप्रलय है, उसमें मैं खो जाता है–हमारे भीतर का सब शून्य हो जाता है, तब वह ध्वनि हमें सुनाई पड़नी शुरू होती है। उस महाध्वनि के साथ ही परम स्वास्थ्य उपलब्ध होता है।

लेकिन हमें इस सबका कोई बोध नहीं है। हम कुछ भी सुने चले जाते हैं। अगर आज दुनिया की नई पीढ़ी जिस तरह का संगीत सुन रही है, उसी तरह का सुने गई, तो मनुष्य-जाति का भविष्य तीस-चालीस साल से ज्यादा नहीं हो सकता। जिस तरह की कविता की जा रही है, अगर उसी तरह की की जाती रही और जिस तरह की पेंटिंग्स बनाई जा रही हैं, उसी तरह की बनाई जाती रहीं, तो पूरी जमीन पागलखाना हो जाएगी। क्योंकि प्रत्येक चीज का परिणाम है।

अगर पिकासो के एक चित्र को आप देखते हैं, तो बहुत ज्यादा देर नहीं देख सकते, थोड़ी देर में सिर घूमने लगेगा। क्योंकि चित्र हारमोनिअस नहीं है। चित्र में कोई संगीत नहीं है। चित्र अनार्किक है। अगर एक आदमी भी पिकासो बनाता है, तो गर्दन अलग, हाथ अलग, पैर अलग–सब टूटे-फूटे, कहीं कोई संगीत, लयबद्धता, रिदम नहीं है। कारण है, क्योंकि पिकासो अपने समय की उत्पत्ति है। पूरा समाज, पूरा जगत आज गैर-रिदमिक है, सब लय टूट गई है। उस लय टूटी हालत में सभी पागल हैं–चित्रकार भी, कवि भी, संगीतज्ञ भी। वे जो भी कर रहे हैं, वह भी हमारे समाज की बाइ-प्रोडक्ट है। वे वही कर रहे हैं, जो समाज से उनको मिला है।

ध्यान परम स्वास्थ्य का द्वार है।

एक और मित्र ने पूछा है कि क्या तीव्र श्वास को तीनों चरणों में जारी रखा जा सकता है?

आप पर निर्भर है। पहले चरण में रखना ही है, वह मस्ट। पहले चरण में छोड़ना नहीं है दस मिनट। उसके बाद आप पर निर्भर है। अगर आपको सुविधापूर्ण लगे तो आप बाकी दो चरणों में या एक चरण में जारी रख सकते हैं। चौथे चरण में जारी नहीं रखना है, वह मस्ट नॉट। पहले चरण में जारी रखना ही है, चौथे चरण में जारी नहीं रखना है। बाकी दो चरणों में आपकी निजी सुविधा की बात है। आपको लगे कि आप नाचने, कूदने, चिल्लाने के साथ गहरी श्वास जारी रख सकते हैं, रखें। ‘मैं कौन हूं?’ पूछने के साथ रख सकते हैं, रखें। लेकिन महत्व दूसरे चरण में कूदने, नाचने, रोने-चिल्लाने का होगा, एंफेसिस उस पर होगी, श्वास गौण होगी, प्रमुख नहीं। तीसरे चरण में ‘मैं कौन हूं?’ उसकी इंक्वायरी प्रमुख होगी, श्वास गौण होगी। और न रख सकें तो कोई हर्ज नहीं है, पहले चरण में पर्याप्त है।

सवाल ज्यादा देर तक श्वास गहरी रखने का नहीं है, सवाल दस मिनट इनटेंसली गहरा रखने का है, एक्सटेंसिवली नहीं। तीस मिनट भी अगर आपने धीरे-धीरे गहरी रखी तो परिणाम नहीं होगा और दस मिनट भी अगर पूरी ताकत से रखी तो परिणाम होगा। इसलिए सवाल इनटेंसिटी का है, एक्सटेंशन का नहीं है, विस्तार का नहीं है, गहराई का है। गहराई पर ध्यान दें।

एक मित्र ने पूछा है कि यहां तो आप खयाल देते हैं तो दस मिनट का पता चल जाता है, घर पर कैसे पता चलेगा?

कोई फर्क नहीं पड़ता। दस मिनट कि आठ मिनट हुए कि बारह मिनट हुए, तो कोई अंतर नहीं पड़ता। अनुमान से आप जारी रखें। और दस-पांच दिन में आपको अनुमान थिर हो जाएगा। हमारी कठिनाई हो गई है, क्योंकि हमने झूठे सब्स्टीटयूट बना लिए हैं। इसलिए हमारे भीतर की जो घड़ी है, वह काम नहीं कर पा रही है। अन्यथा बायोलाजिकल वॉच भी भीतर है, जो काम करती है। आपको ग्यारह बजे रात, बारह बजे रात नींद क्यों आने लगती है? सुबह अगर आप छह बजे उठते हैं या चार बजे, तो नींद क्यों टूट जाती है? अगर आप बारह बजे खाना खाते हैं या एक बजे, तो ठीक एक बजे भूख क्यों लग आती है? क्या कारण है?

एक बायोलाजिकल टाइम है, भीतर एक जैविक काम चल रहा है। जैसे ऋतुएं बदलती हैं। कहीं कोई घड़ी और कहीं कोई कैलेंडर नहीं है, वक्त पर बदल जाती हैं। सांझ होती है, सुबह होती है, सूरज वक्त पर सुबह बन जाता है, सांझ बन जाता है। वैसे भीतर एक रिदम है प्रत्येक चीज की, उस रिदम में अपने आप सब चीजें बैठ जाती हैं।

दस-पांच दिन आप ध्यान करेंगे, आपके भीतर की घड़ी पकड़ लेगी। ठीक दस मिनट, ठीक दस मिनट प्रक्रिया हो जाएगी। लेकिन हमारा भरोसा अपने पर खो गया है। जितने हमने इंस्ट्रूमेंट तैयार कर लिए हैं, उतना अपने पर भरोसा खो गया है। कोई अपने पर भरोसा नहीं है।

रात सोते वक्त तय करके सो जाएं कि सुबह पांच बजे उठना है, तो ठीक सुबह पांच बजे नींद खुल जाएगी। अब नींद में आपने उठ कर घड़ी नहीं देखी, जाग कर आप देखते हैं तो ठीक पांच बजे हैं। और कई बार तो ऐसा होगा कि आप ठीक पांच बजे का निर्णय करके सो जाएं, और घड़ी अगर गलत हो तो आप मिला लें, वह पांच ही बजा है, गलत हो तो आप पांच बजा लें।

थोड़ा ध्यान का प्रयोग बढ़ेगा तो आपके भीतर की बायोलाजिकल टाइम सेंस पैदा होनी शुरू हो जाएगी। वह सब अस्तव्यस्त हो गई है। क्योंकि हम उसका कोई उपयोग नहीं कर रहे हैं। सब चीज का समय है, वह भीतर से पकड़ लिया जाता है। उसकी बहुत फिक्र न करें। और दस के बारह मिनट होंगे कि आठ, इससे ज्यादा भूल नहीं होगी, उससे कोई हर्जा होने वाला नहीं है।

एक और मित्र ने पूछा है कि हृदय के मरीज हैं, या उस तरह की और बीमारियों के लिए, उनके लिए आप क्या सुझाव देते हैं?

उनके लिए मैं सुझाव दूंगा कि वे प्रयोग करें। बहुत संभावना तो यह है कि प्रयोग उनकी बीमारी को बदल दे, मिटा दे, समाप्त कर दे। परमात्मा पर छोड़ें थोड़ा। असल में, बीमारी जब से हमने डाक्टर पर छोड़ी है, तब से परमात्मा की कोई जरूरत नहीं रही। ऐसे डाक्टर उतने ही अंधेरे में है, जितने में मरीज है। कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं है दोनों के अंधेरे का। लेकिन उसकी इग्नोरेंस, एक्सपर्ट इग्नोरेंस है। उसका अज्ञान जो है वह विशेषज्ञ का है। इसलिए वह चारों तरफ दिखा पाता है कि नहीं, जानता है। हालांकि भीतर वह भी डर रहा है। उसे भी कुछ पता नहीं है, बहुत कुछ पता नहीं है, एक्सपर्ट इग्नोरेंस है, विशेषज्ञ है। उसे पक्का…

आपको तो कम से कम, मरीज को वह भरोसा दिला पाता है। उसका रिचुअल, उसका स्टेथस्कोप, उसका बल्डप्रेशर का नापने का यंत्र, उसके चलने का ढंग, उसके कपड़े, उसका चश्मा, उसकी डिग्री, आपको तो भरोसा दिला पाती है कि ठीक है, अब एक्सपर्ट के हाथ में हैं, मरें भी तो एक्सपर्ट के हाथ में मरें। लेकिन वह खुद भीतर उतना ही डरा हुआ है, जितने आप डरे हुए हैं। शायद आपसे ज्यादा डरा हुआ है। इसलिए कोई डाक्टर अपना इलाज नहीं कर पाता। कोई डाक्टर अपने लिए दवा प्रिस्क्राइब नहीं कर पाता। दूसरे डाक्टर के पास भागना पड़ता है उसको। खुद पर तो उसका भरोसा नहीं है। जब खुद पर बीमारी आती है, तो वह उतना ही कमजोर हो जाता है जितने कमजोर आप हैं। आपसे ज्यादा हो जाता है। क्योंकि उसको भलीभांति पता है कि वह जो कर रहा है, वह सब अंधेरे में टटोलना है।

मैं नहीं कहता हूं कि डाक्टर के पास न जाएं, जरूर जाएं। लेकिन परमात्मा के लिए भी थोड़ी जगह बचा कर रखें। और कई बार ऐसा होता है कि डाक्टर के द्वारा दिया गया स्वास्थ्य भी परमात्मा के द्वारा दी गई बीमारी से कम कीमत का होता है। लेकिन वह अलग बात है। छोड़ें, थोड़ा उस पर भी छोड़ें। छोड़ने की हिम्मत हो, तो तत्काल परिणाम हो सकते हैं।

अब हम प्रयोग के लिए बैठें। कुछ और सवाल होंगे तो वे रात…। आज आखिरी दिन है, इसलिए पूरी शक्ति लगानी है। और परमात्मा भी आप पर पूरी शक्ति देगा, उसकी अनुकंपा भी पूरी बरसेगी। इसलिए सारे लोग खड़े हो जाएं, जगह बना लें, बाहर फैल जाएं, मेरे पीछे आ जाएं, चारों ओर फैल जाएं। देखने वाले कोई भी मित्र हों तो ठीक मेरे सामने, सामने चले जाएं। देखने वाले मित्र और कहीं खड़े न हों, बिलकुल मेरे सामने खड़े हों। जल्दी फैल जाएं, देर न करें।

देखें यहां भीड़भाड़ न करें बीच में, इतने इकट्ठे नहीं खड़े हो सकेंगे। अभी सब लोग नाचेंगे-कूदेंगे, आपको कठिनाई होगी। थोड़े-थोड़े बाहर हो जाएं, अपनी जगह बना लें। और कोई भी व्यक्ति नाचने-कूदने में अपनी जगह न छोड़े, अपनी जगह पर ही रहे। इतने घने खड़े न हों, अन्यथा काम नहीं होगा। बाहर फैल जाएं, बाहर बहुत जगह है। जितने खुले में होंगे उतने आनंद से घटना घट सकेगी। देखने वाले मित्र मेरे आजू-बाजू कहीं भी खड़े नहीं रहेंगे। पीछे चले जाएं, ठीक मेरे सामने। वहां खड़े होकर देखते रहें चुपचाप।

ठीक है! जल्दी फैल जाएं। देखें बीच में बातचीत न करें। फैलने में इतनी तकलीफ न करें। ठीक है! कोई भी व्यक्ति बीच में चुपचाप नहीं खड़ा रहे देखने के लिए। आंख खोल कर नहीं खड़े रहना है। जिनको भी आंख खोल कर खड़े होना है, वे पीछे चले जाएं, चुपचाप वहां से देखें। बीच में नहीं खड़े रहेंगे। बीच में जिनको करना है वे ही खड़े रहें, बाकी लोग हट जाएं।

ठीक! अब आंख बंद कर लें। हाथ जोड़ लें। प्रभु से प्रार्थना कर लें। उसका अनुग्रह मान लें। उसके सामने संकल्प कर लें। हाथ जोड़ें, सिर झुका लें, उसके चरणों में अपने को छोड़ें। संकल्प करें: मैं प्रभु को साक्षी रख कर संकल्प करता हूं कि ध्यान में अपनी पूरी शक्ति लगा दूंगा। मैं प्रभु को साक्षी रख कर संकल्प करता हूं कि ध्यान में अपनी पूरी शक्ति लगा दूंगा। मैं प्रभु को साक्षी रख कर संकल्प करता हूं कि ध्यान में अपनी पूरी शक्ति लगा दूंगा। पूरी लगानी है। प्रभु की अनुकंपा जरूर मिलती है उसे जो अपने को पूरा दांव पर लगा देता है।

अब हाथ छोड़ दें, पहला चरण शुरू करें। श्वास…आंख बंद रखनी है चालीस मिनट। आंख बिलकुल बंद रखनी है चालीस मिनट। आंख खोली तो व्यर्थ हो जाएगा। आंख बंद रखें और तेज श्वास। दस मिनट में रोआं-रोआं कंपा डालना है। तेज…देखें कोई खड़ा न रह जाए। अपने पास-पड़ोस के मित्रों से प्रतियोगिता लें, कोई किसी से पीछे न रह जाए। जोर से…चोट करें…कुंडलिनी को जगाना है…चोट करें…चोट करें…चोट करें…रोएं-रोएं में बिजली दौड़ जाने दें…श्वास ही श्वास रह जाए। सब भूलें, बस श्वास ही बचे। यह सारा जगत श्वास का खेल है, अपने को श्वास में डुबा दें। तेज…तेज… शरीर डोले, डोलने दें…नाचे, नाचने दें…तेज श्वास…तेज श्वास…शक्ति भीतर उठने लगेगी…शक्ति उठ रही है, उठने दें…चोट करें…चोट करें…चोट करें…

सात मिनट बचे हैं…चोट करें…रोआं-रोआं कंपा डालें…शरीर को पूरा हिला डालें…श्वास…श्वास…श्वास…आनंद से करें…पूरे आनंद से भर जाएं और श्वास की चोट करें…आनंद से भर जाएं और श्वास की चोट करें। डोलें…फिक्र न करें…शरीर कंपता है, कंपने दें…उसे और कंपाएं और श्वास की चोट करें…तेज श्वास…तेज श्वास…संकल्प स्मरण करें…तेज श्वास…तेज श्वास…तेज श्वास…तेज श्वास… तेज श्वास…तेज श्वास…शरीर को जो होता है, होने दें…तेज श्वास लें…सब संकोच छोड़ें…तेज श्वास…

खड़े न रहें, व्यर्थ खड़े रह जाएंगे। तेज…तेज…तेज…तूफान उठा देना है…भीतर का जर्रा-जर्रा हिला देना है…तेज श्वास…तेज श्वास…डोलें…डोलें…तेज श्वास लें…तेज श्वास लें…

छह मिनट…तेज…फिर दूसरे चरण में उपाय न रहेगा…अभी जगा लें शक्ति को, फिर दूसरे में उपयोग कर लेंगे…जगाएं शक्ति को…चोट करें…जगाएं…जगाएं…

छोड़ें फिक्र, कपड़े-वपड़े की फिक्र न करें…ये सब बचाने की फिक्र न करें… तेज…तेज श्वास…तेज श्वास…तेज श्वास…तेज…

पांच मिनट बचे हैं, आधा समय है, कोई पीछे न रह जाए…जो मित्र पीछे खड़े रह गए हैं, तेजी में आएं…तेज श्वास…तेज श्वास…तेज श्वास…तेज श्वास…चोट करें…चोट करें…भीतर तूफान उठा दें…श्वास ही श्वास…बाहर-भीतर श्वास ही श्वास…तेज…तेज…तेज…तेज…श्वास…श्वास…श्वास…

हां, शरीर डोलता है, डोलने दें…हाथ-पैर हिलते हैं, हिलने दें…सिर कंपता है, कंपने दें…शरीर में शक्ति जगेगी तो यह सब होगा…जगाएं…आवाज निकले, निकलने दें…तेज…चार मिनट बचे हैं…बढ़ें…आगे बढ़ें…कोई किसी से पीछे न रह जाए…पूरी शक्ति लगाएं। इतने लोग हैं, पूरा तूफान आ जाना चाहिए। श्वास ही श्वास रह जाए। तेज…चोट करें…कुंडलिनी जागती है…चोट करें…चोट करें…चोट करें…आनंद से भर कर चोट करें…आनंद से भर कर चोट करें…आनंद से भर कर चोट करें…

तीन मिनट बचे हैं…बढ़ें…कोई पीछे न रह जाए…जोर से…जोर से…जोर से…जोर से…जोर से…जोर से…शक्ति जाग गई है, जोर लगाएं…पूरा जगा लें, जरा भी सोई न रह जाए…तेज…तेज…जब मैं कहूं–एक, दो, तीन, तो बिलकुल पागल हो जाना है।

एक!…दो!…तीन!…पूरी शक्ति लगा दें…एक मिनट के लिए पूरी तरह कूद जाएं…तेज…तेज…दूसरे चरण में चलना है, उसके पहले क्लाइमेक्स, पूरे चरम, जोर से…श्वास ही श्वास रह गई है…श्वास ही श्वास…जोर से…कुछ सेकेंड बचे हैं, पूरी ताकत लगाएं, फिर हम दूसरे चरण में चलें…शक्ति को पूरी चोट करके जगा लेना है, तभी दूसरे चरण में प्रवेश होगा…करें, देखें कोई खड़ा न रह जाए…और बीच में आंख खोल कर मत खड़े हों…तेज…तेज…आखिरी मौका है पहले चरण का…तेज…तेज…

दूसरे चरण में प्रवेश करें। शरीर में जो हो जोर से करें। दस मिनट तक शरीर से सब निकाल कर फेंक देना है–चिल्लाएं, रोएं, नाचें, हंसें। बढ़ें…आगे बढ़ें…कोई किसी से पीछे न रहे…प्रतियोगिता लें, पास वाले मित्रों से प्रतियोगिता लें, तेजी से आगे बढ़ें… चिल्लाएं, नाचें, रोएं, हंसें–आनंद से…जो भी हो रहा है, जोर से करें…जोर से…जोर से…पूरी शक्ति लगाएं…

सात मिनट बचे हैं, शक्ति पूरी लगाएं…पूरी लगाएं…चिल्लाएं…तूफान उठा दें…नाचें, चिल्लाएं…छह मिनट बचे हैं…बढ़ें…बढ़ें…पूरी ताकत से…सब निकाल कर फेंक दें जो भी मन में है…फेंकें, रोएं, चिल्लाएं, हंसें, नाचें…शरीर को जो भी करना है करने दें, रोकें नहीं…जोर से…जोर से…जोर से…आनंद से भर जाएं…नाचें, कूदें, चिल्लाएं…

पांच मिनट बचे हैं…पीछे न रह जाएं…बढ़ें…जोर से…जो भी कर रहे हैं, जोर से…जोर से…जोर से…चार मिनट बचे हैं…तूफान ला दें…इतने लोग हैं, बिलकुल तूफान आ जाना चाहिए…चिल्लाएं, नाचें, आनंद से भर जाएं…

तीन मिनट बचे हैं, पूरी शक्ति लगा दें, फिर हम तीसरे चरण में चलें। बढ़ें…बढ़ें…पास से प्रतियोगिता लें, कोई किसी से पीछे न रह जाए…नाचें, कूदें… शक्ति जाग गई है, काम करने दें…सब उलीच कर फेंक दें…जो भी निकलना चाहता है निकल जाने दें…

एक! पूरी शक्ति लगाएं। दो! पूरी शक्ति लगा दें। तीन! बिलकुल पागल हो जाएं…एक मिनट के लिए सब होश छोड़ दें…चिल्लाएं, नाचें, कूदें–अपनी जगह पर, अपनी जगह से न हटें…चिल्लाएं, कूदें, नाचें…एक मिनट बचा है, पूरी ताकत लगाएं, फिर हम तीसरे चरण में चलें…तूफान ले आएं…जोर से…जोर से…जोर से…कुछ सेकेंड बचे हैं, पूरी ताकत…पूरी ताकत…जोर से…जोर से…जोर से…आनंद से भरें…जोर से करें…

अब तीसरे चरण में प्रवेश करें। पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? नाचते रहें, डोलते रहें, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? नाचें, डोलें, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? डोलते रहें, नाचते रहें, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…

आनंद से पूछें। शक्ति जग गई है, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूछें, पूछें, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? सारी ताकत लगाएं, पूछें–मैं कौन हूं? मन को थका डालना है। पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…

आठ मिनट बचे हैं, ताकत पूरी लगा कर थका डालना है। मैं कौन हूं?…डोलते रहें, नाचते रहें, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…पूछें, पूछें, पूछें, समय न खोएं, जरा भी पीछे न पड़ें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…नाचें, कूदें, आखिरी चरण है…मैं कौन हूं?…पूरी ताकत लगाएं…

छह मिनट बचे हैं, पूरी ताकत लगा दें। मैं कौन हूं?…चिल्लाएं, नाचें, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…पांच मिनट, पांच मिनट बचे हैं…शक्ति लगाएं…स्मरण करें संकल्प का, शक्ति लगाएं…मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…चिल्लाएं, नाचें, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…शक्ति जाग गई है, पूछें, पूछें…चार मिनट बचे हैं, पूरी ताकत लगाएं, फिर हम विश्राम करेंगे…जो जितना थक जाएगा, उतने गहरे विश्राम में जा सकेगा…थका डालें–मैं कौन हूं?…कूदें, उछलें, नाचें, पूछें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…पूछें, पूछें…

तीन मिनट बचे हैं…बिलकुल पागल हो जाएं अब…छोड़ें सब फिक्र…मैं कौन हूं?…नाचें, कूदें–मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?…दो मिनट बचे हैं…बढ़ें…पूरी ताकत का खयाल करके लगा दें। एक!…दो!…तीन!…पूरी ताकत लगा दें…एक मिनट के लिए सब कुछ लगा दें–मैं कौन हूं?…नाचें, कूदें, पूछें–मैं कौन हूं?…बिलकुल पागल हो जाएं…बढ़ें…बढ़ें…चिल्लाएं, नाचें…एक मिनट की बात है, फिर हम विश्राम करेंगे। थका डालें, चिल्लाएं जोर से, नाचें जोर से…मैं कौन हूं? बढ़ें…बढ़ें…कुछ सेकेंड की बात और है…पूरी ताकत इकट्ठी करके लगा दें…

बस अब रुक जाएं…सब छोड़ दें…सब छोड़ दें…सब छोड़ दें…सब छोड़ दें… चौथे चरण में प्रवेश कर जाएं…चौथे चरण में प्रवेश कर जाएं। सब छोड़ दें, मिट गए, खो गए, परम आनंद में लीन हो जाएं। छोड़ें, सब छोड़ दें…छोड़ें, छोड़ें, सब छोड़ दें… जैसे बूंद सागर में खो जाए, ऐसे खो जाएं। जैसे बूंद सागर में खो जाए  ऐसे खो जाएं।

प्रकाश ही प्रकाश, चारों ओर अनंत प्रकाश। प्रकाश ही प्रकाश, चारों ओर अनंत प्रकाश। चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश। अंधकार कहीं भी नहीं। हृदय का कोना-कोना प्रकाश से भर गया है। आनंद ही आनंद। रोआं-रोआं आनंद की पुलक से भर गया है। आनंदित हों, हृदय को आनंद से भर जाने दें।

आनंद की वर्षा हो रही, आनंद की वर्षा हो रही। भीतर रोएं-रोएं, कोने-कोने, हृदय की धड़कन-धड़कन तक आनंद को प्रवेश कर जाने दें। आनंद को, आनंद को, आनंद को पी जाएं। आनंद ही आनंद की वर्षा हो रही, पी जाएं, पी जाएं, आनंद के साथ एक हो जाएं। अनंत आनंद, चारों ओर आनंद ही आनंद है, दुख का कहीं कोई निशान नहीं। प्रकाश ही प्रकाश, आनंद ही आनंद, आनंद ही आनंद, प्रकाश ही प्रकाश।

परमात्मा चारों ओर उपस्थित है। उसकी उपस्थिति अनुभव करें। बाहर भी वही, भीतर भी वही। वही है जन्म, वही है मृत्यु, वही है जीवन। परमात्मा चारों ओर उपस्थित है। बाहर भी वही, भीतर भी वही। स्मरण करें, स्मरण करें, पहचानें, वही हमारा स्वरूप है, परमात्मा ही स्वरूप है। चारों ओर वही है। भीतर भी, बाहर भी।

उसके स्पर्श को अनुभव करें। उसके प्रेम को अनुभव करें। उसके प्रकाश को अनुभव करें। उसके आनंद को अनुभव करें। चारों ओर परमात्मा ही परमात्मा। भीतर भी वही, बाहर भी वही। वही है, हम बूंद की तरह उसके सागर में खो गए हैं। वही है, वही है, वही है, आनंद से स्वीकार कर लें उसे। हृदय में द्वार दे दें उसे। आलिंगन कर लें उसका। वही है, वही है, चारों ओर वही है। भीतर, बाहर वही है।

प्रकाश ही प्रकाश, आनंद ही आनंद, परमात्मा ही परमात्मा। चारों ओर वही है। चारों ओर वही है। भीतर भी, बाहर भी। परमात्मा ही सत्य है, वही जीवन है। डूब जाएं, डूब जाएं, खो जाएं, खो जाएं, लीन हो जाएं, एक हो जाएं। रोएं-रोएं को कहने दें, धड़कन-धड़कन को कहने दें: परमात्मा ही सब कुछ है, परमात्मा ही सब कुछ है। बूंद जैसे सागर में खो जाती है ऐसे खो जाएं और एक हो जाएं।

आनंद के फूल खिल जाएंगे भीतर। प्रकाश की फुलझड़ियां फूटने लगेंगी भीतर। कोई नया ही संगीत बजने लगेगा भीतर। ओंकार की ध्वनि गूंजने लगेगी भीतर। ओंकार का नाद गूंजने लगेगा भीतर। हृदय की वीणा पर ओंकार का नाद गूंजने लगेगा, नाद गूंजने लगेगा। फूल खिल जाएंगे आनंद के भीतर। खिलते ही चले जाएंगे अनंत फूल। प्रकाश की फुलझड़ियां फूटने लगेंगी, अनंत फुलझड़ियां। प्रकाश ही प्रकाश। ओंकार का नाद गूंजने लगेगा भीतर, ओंकार का नाद गूंजने लगेगा भीतर। फूल खिल जाएंगे, उसके आनंद के अनंत फूल खिलते चले जाएंगे। प्रकाश के सूरज निकल आएंगे, प्रकाश ही प्रकाश रह जाएगा। ओंकार का नाद गूंजने लगेगा। श्वास-श्वास, हृदय की धड़कन-धड़कन ओंकार से भर जाती है।

अब दोनों हाथ जोड़ लें। सिर झुका लें उसके चरणों में। उसे धन्यवाद दे दें। दोनों हाथ जोड़ लें। सिर झुका लें उसके चरणों में। उसके ही चरण हैं चारों ओर, वही है। धन्यवाद दे दें। सिर रख दें उसके चरणों में। प्रभु की अनुकंपा अपार है! प्रभु की अनुकंपा अपार है! प्रभु की अनुकंपा अपार है! रख दें, रख दें, उसके चरण में स्वयं को रख दें। जैसे पूजा का फूल कोई उसके चरणों में रख दें, ऐसा छोड़ दें स्वयं को उसके चरणों में। प्रभु की अनुकंपा अपार है! प्रभु की अनुकंपा अपार है! प्रभु की अनुकंपा अपार है! छोड़ दें, छोड़ दें उसके चरणों में। प्रभु की अनुकंपा अपार है! प्रभु की अनुकंपा अपार है! प्रभु की अनुकंपा अपार है!

दोनों हाथ छोड़ दें। सिर ऊपर उठा लें। दो-चार गहरी श्वास ले लें, फिर अपनी-अपनी जगह बैठ जाएं। आंख खोल लें। आंख न खुले तो दोनों हाथ आंख पर रख लें। बैठते न बने तो जल्दी न करें, दो क्षण खड़े रहें, गहरी श्वास लें, फिर बैठ जाएं। उठते न बने तो जल्दी न करें, दो-चार गहरी श्वास लें, फिर उठ आएं। दो क्षण बैठ जाएं, दो बातें आपसे कह दूं, फिर हम विदा हों।

आंख न खुले, दोनों हाथ आंख पर रख लें। बैठते न बने, उठते न बने, दो-चार गहरी श्वास ले लें। आंख न खुले, दोनों हाथ आंख पर रख लें। बैठते न बने, उठते न बने, दो-चार गहरी श्वास ले लें, फिर उठ कर अपनी-अपनी जगह बैठ जाएं। उठते न बने, दो-चार गहरी श्वास ले लें, फिर उठ आएं। बैठते न बने, दो-चार गहरी श्वास ले लें, फिर बैठ जाएं। ध्यान से वापस लौट आएं। ध्यान से वापस लौट आएं। ध्यान से वापस लौट आएं। दो-चार गहरी श्वास ले लें, उठ आएं, अपनी जगह बैठ जाएं।

सांझ का प्रयोग आज आखिरी होगा। जिन मित्रों को परिणाम हुए हैं वे सौभाग्यशाली हैं। जिन्हें नहीं हुए हैं, थोड़े से ही लोग, उनका दुर्भाग्य उनके अपने हाथ में है। नहीं करेंगे, नहीं होगा। दूसरों को देखते रहेंगे, नहीं होगा। साहस नहीं जुटाएंगे, नहीं होगा। कम से कम एक कदम परमात्मा की तरफ उठाना ही पड़ता है। और वह कदम सदा ही साहस का, करेज का कदम है। क्योंकि अननोन में, अज्ञात में है, जिसका हमें कोई पता नहीं और जिसका हमें कोई रास्ता मालूम नहीं। जिनको हम साधारणतया बुद्धिमान कहते हैं, ऐसे लोग वंचित रह जाते हैं। कैलकुलेटिव, हिसाब लगाते खड़े रह जाते हैं। अज्ञात में छलांग लगाने के लिए एक तरह की सरलता, एक तरह का बचपन, एक तरह की जवानी, एक तरह का ताजापन, एक तरह का साहस और संकल्प चाहिए। उम्र से संबंध नहीं है, हृदय से संबंध है।

रात्रि आखिरी प्रयोग होगा। जो पीछे छूट गए हों या जिन्हें लग रहा हो कि वे नहीं पहुंच पा रहे हैं, वे पूरी शक्ति लगाएं। अभी भी बहुत देर नहीं हो गई। कभी भी बहुत देर नहीं हो जाती। और ऐसे तो सदा ही बहुत देर हो गई है। कितने जन्मों से खोजते हैं उसे, उसका कोई पता नहीं। नाम अलग-अलग रखते हैं, कोई आनंद कह कर उसे खोजता है, कोई शांति कह कर उसे खोजता है, कोई पद कह कर उसे खोजता है, कोई धन कह कर उसे खोजता है। लेकिन हम सब उसी को खोज रहे हैं। क्योंकि उसके बिना कोई संतोष संभव नहीं है। और उसके बिना कोई तृप्ति, कोई फुलफिलमेंट संभव नहीं है। तो रात के लिए इतना ही कहता हूं कि रात पूरी शक्ति लगा देनी है। और आज रात पूरा हो जाएगा प्रयोग, तब अपने घर पर द्वार बंद कर लें, कमरा बंद कर लें और प्रयोग जारी रखें।

एक मित्र ने पूछा है कि रात के प्रयोग में तो आप पर हम ध्यान देते हैं, तो घर पर क्या करें?

आंख बंद कर लें, मैं दिखाई पड़ना शुरू हो जाऊंगा। अगर यहां दिखाई पड़ा हूं, तो वहां भी दिखाई पड़ना शुरू हो जाऊंगा। फिर भी लगे कि सहायता लेने की जरूरत है, एक चित्र रख लें। वह भी थोड़े दिन ही जरूरत पड़ेगी, फिर जरूरत नहीं रह जाएगी।

सुबह की बैठक हमारी पूरी हुई।

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-08)

ध्यान दर्शन-(साधन-शिविर)–ओशो

प्रवचन-आठवां-(ध्यान: भीतर की यात्रा)

मेरे प्रिय आत्मन्!

थोड़े से सवाल ले लें, फिर हम ध्यान के प्रयोग के लिए बैठें।

एक मित्र ने पूछा है कि रात्रि का प्रयोग क्या रात्रि के लिए ही है और सुबह का प्रयोग सुबह के लिए ही?

ऐसा कुछ नहीं है। दोनों प्रयोगों में से जो आपको ज्यादा गहराई में ले जाता हो, उसे आप कभी भी कर सकते हैं। अगर आपको दोनों प्रयोग एक-दूसरे के लिए परिपूरक बनते हों, तो आप दोनों प्रयोगों को सुबह और सांझ, जब जैसी सुविधा हो वैसा कर सकते हैं। अगर दो में से कोई एक प्रयोग आपके लिए अर्थ न रखता हो, तो उसे छोड़ दे सकते हैं। एक प्रयोग से भी वही परिणाम हो जाएगा। दोनों प्रयोगों से भी इकट्ठा होकर परिणाम वही होगा। एक-एक व्यक्ति के ऊपर निर्भर है कि उसे जैसी सुविधा हो वैसा चुनाव कर ले। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-08)”

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-07)

ध्यान दर्शन-(साधन-शिविर)–ओशो

प्रवचन-सातवां-(ध्यान: समाधि की भूमिका)

मेरे प्रिय आत्मन्!

थोड़े से सवाल।

रखना ही होगा। यहां हम सिर्फ सीख रहे हैं। यहां सिर्फ आपको समझ में आ जाए पद्धति, इतना ही। फिर उस प्रयोग को घर जारी रखें तो उसमें गहराई बढ़ती जाएगी।

एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि यदि घर पर इसे हम जारी रखेंगे, तो आस-पास के लोग पागल समझने लगेंगे। चिल्लाएं या नाचें या हंसें। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-07)”

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-06)

ध्यान दर्शन-(साधन-शिविर)–ओशो

प्रवचन-छठवां-(ध्यान: सीधी छलांग)

मेरे प्रिय आत्मन्!

थोड़े से सवाल हैं। उन सवालों को छोड़ दूंगा, जो मात्र सैद्धांतिक हैं, थ्योरेटिकल हैं। यह बैठक सुबह और सांझ की मात्र साधकों के लिए है, सिद्धांतवादियों के लिए नहीं। सिद्धांतवादियों के लिए उनतीस तारीख से जो बैठक होगी, उसमें उन्हें जो पूछना हो पूछें। यहां तो उनसे ही बात कर रहा हूं जो करना चाहते हैं। और अक्सर ऐसा होता है, जो सोचना चाहते हैं वे करने का निर्णय कभी भी नहीं ले पाते। वे सोचते ही सोचते समाप्त हो जाते हैं। बहुत बार, सौ में निन्यानबे मौके पर, सोचना सिर्फ करने से बचने की तरकीब होती है। क्योंकि सोचने में कल तक के लिए टाला जा सकता है। जब तक निर्णय न हो, जब तक सिद्ध न हो, जब तक सिद्धांत स्पष्ट न हो, तब तक हम कुछ करेंगे नहीं। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-06)”

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-05)

ध्यान दर्शन-(साधन-शिविर)–ओशो

प्रवचन-पांचवां-(संन्यास: एक संकल्प)

मेरे प्रिय आत्मन्!

दोत्तीन सवाल हैं, उस संबंध में थोड़ी बात समझ लें।

एक मित्र ने पूछा है कि ध्यान के प्रयोग से शरीर थक जाता है, तो प्रयोग जारी रखें या न रखें?

ऐसा ही किसी दूसरे मित्र ने भी पूछा है कि ध्यान में हाथ की गति बहुत होती है और हाथ दुख जाता है, तो प्रयोग जारी रखना या नहीं?

आप में से भी बहुतों को शरीर के किसी अंग के थक जाने का खयाल आएगा। स्वाभाविक है। जब शरीर का कोई भी अंग इतनी गति करेगा, इतना व्यायाम हो जाएगा, तो थकेगा। लेकिन दो-चार-छह दिन। जैसा कोई भी नया व्यायाम करते वक्त थकान मालूम होगी, वैसी ही। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-05)”

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-04)

ध्यान दर्शन-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-चौथा-(ध्यान: आध्यात्मिक विज्ञान)

मेरे प्रिय आत्मन्!

ध्यान के संबंध में थोड़े से सवाल हैं, उन्हें समझ लें, और फिर हम प्रयोग के लिए बैठेंगे।

एक मित्र ने पूछा है कि रात्रि के ध्यान में चश्मे वाले क्या करें? स्पष्ट करें कि आपको देखना है या आपकी ओर देखना है?

दोनों ही काम करने हैं। क्योंकि बिना मेरी ओर देखे तो मुझे नहीं देख सकते। मेरी ओर तो देखना ही है। लेकिन सिर्फ ‘ओर’ ही नहीं देखना है। क्योंकि ‘ओर’ बहुत बड़ी बात है, उसमें और भी बहुत कुछ आता है। मेरी ओर देखना है, लेकिन मुझे ही देखना है। चश्मा लगाए ही रखें। रात के प्रयोग में आपको चश्मा निकालने की कोई जरूरत नहीं है। कम से कम जो बैठे हैं उन्हें तो बिलकुल जरूरत नहीं है। जो खड़े हैं वे चश्मा निकाल लेंगे। तो जिनको देखने की तकलीफ हो, दूर से न देख सकते हों, तो वे मेरे पास मंच के पास ही खड़े होंगे। बैठे हुए लोगों को चश्मा निकालने की कोई जरूरत नहीं है। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-04)”

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-03)

ध्यान दर्शन-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-तीसरा-(ध्यान: गुह्य आयामों में प्रवेश)

मेरे प्रिय आत्मन्!

कल प्रयोग हमने समझा है। आज उसकी गहराई बढ़नी चाहिए। संकल्प की कमी पड़ जाए, तो ही ध्यान में बाधा पड़ती है। और संकल्प की कमी कभी-कभी बहुत छोटी-छोटी बातों से पड़ जाती है।

जिंदगी में बहुत बड़े-बड़े अवरोध नहीं हैं, बहुत छोटे-छोटे अवरोध हैं। कभी आंख में एक छोटा सा तिनका पड़ जाता है, तो हिमालय भी दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। जरा सा तिनका आंख में हो तो हिमालय भी दिखाई नहीं पड़ता। कोई अगर विचार करे और तर्क करे और गणित लगाए, तो जरूर सोचेगा कि जिस तिनके ने हिमालय को ओट में ले लिया, वह तिनका हिमालय से बड़ा होना चाहिए। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-03)”

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-02)

ध्यान दर्शन-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-दूसरा-(ध्यान: स्वयं में डुबकी)

मेरे प्रिय आत्मन्!

ध्यान के संबंध में दोत्तीन प्रश्न पूछे गए हैं, उनकी मैं आपसे बात कर लूं, फिर रात के प्रयोग को समझाऊंगा और हम करेंगे।

एक मित्र ने पूछा है कि श्वास गहरी लेनी है या तीव्र? डीप या फास्ट?

तीव्रता का खयाल रखें, गहरी अपने से हो जाए तो बात अलग। आप गहरे का, डीप का खयाल न करें। आप सिर्फ तीव्रता का, फास्टनेस का खयाल रखें–जितने जोर से! जितनी तेजी से! तेजी इसलिए ताकि चोट हो सके। वह जो भीतर सोई हुई शक्ति है, उसे उठाया और जगाया जा सके। हैमरिंग के लिए, हथौड़े की तरह चोट हो सके कुंडलिनी पर, इसलिए तेज का खयाल रखें। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-02)”

ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-01)

 ध्यान दर्शन-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-पहला-(ध्यान: नया जन्म)

मेरे प्रिय आत्मन्!

जीवन में दो आयाम हैं, दो प्रकार के तथ्य हैं। एक तो ऐसे तथ्य हैं, जिन्हें जान लिया जाए तो ही किया जा सकता है। जानना जिनमें प्रथम है और करना द्वितीय है। जानना पहले है और करना पीछे है। दूसरे ऐसे तथ्य भी हैं जिन्हें पहले कर लिया जाए तो ही जाना जा सकता है। उनमें करना पहले है और जानना पीछे है।

विज्ञान पहले तरह का आयाम है, धर्म दूसरे तरह का। Continue reading “ध्यान-दर्शन-(प्रवचन-01)”

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