ग्यारहवां प्रवचन-(नया मनुष्य)
मेरे प्रिय आत्मन्!
बीसवीं सदी नये मनुष्य की जन्म की सदी है। इस संबंध में थोड़ी सी बात आपसे करना चाहूंगा। इसके पहले कि हम नये मनुष्य के संबंध में कुछ समझें, यह जरूरी होगा कि पुराने मनुष्य को समझ लें। पुराने मनुष्य के कुछ लक्षण थे। पहला लक्षण पुराने मनुष्य का था कि वह विचार से नहीं जी रहा था, विश्वास से जी रहा था। विश्वास से जीना अंधे जीने का ढंग है। माना कि अंधे होने की भी अपनी सुविधाएं हैं। और यह भी माना कि विश्वास के अपने संतोष और अपनी सांत्वनाएं हैं। और यह भी माना कि विश्वास की अपनी शांति और अपना सुख है। लेकिन यदि विचार के बाद शांति मिल सके और संतोष मिल सके, विचार के बाद यदि सांत्वना मिल सके और सुख मिल सके, तो विचार के आनंद का कोई भी मुकाबला विश्वास का सुख नहीं कर सकता है। Continue reading “विज्ञान, धर्म और कला-(प्रवचन-11)”