छठवां प्रवचन-अभय
मेरे प्रिय आत्मन्!
सत्य की खोज में पिछले तीन दिनों से कौन सी भूमिकाएं आवश्यक हैं, कौन सी शर्त पूरी करनी होगी, स्वतंत्रता, सरलता और शून्यता की तीन सीढ़ियों पर मैंने आपसे बात की। इस संबंध में बहुत से प्रश्न उठे हैं, कुछ प्रश्नों पर भी मैंने अपना विचार आपको कहा। अभी भी बहुत से प्रश्न बाकी हैं, उनमें से कुछ पर अभी आपसे चर्चा करूंगा।
मनुष्य का चित्त स्वतंत्र न हो, तो सत्य को कभी भी नहीं जान सकता है। इस संबंध में ही बहुत से प्रश्न आए हैं।
हमारी सोचने की जो गुलाम पद्धति है, सोचने का जो परतंत्र रास्ता है, हर चीज के लिए दूसरे की तरफ देखने की जो आदत है, उसके कारण ही ये सारे प्रश्न उठते हैं। मनुष्य साधारणतः उधार विचारों पर जीता है। बारोड, दूसरों से लिए हुए विचारों पर जीता है। उसके अपने कोई विचार नहीं होते, उसकी अपनी कोई मौलिक चिंतना नहीं होती। Continue reading “सत्य की प्यास-(प्रवचन-06)”