तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-02)-प्रवचन-10

तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)

प्रवचन-दसवां-(केवल एक स्मरण ही)

दिनांक 10 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।

      पहला प्रश्न:

      प्यारे ओशो!

ऐसा क्यों हैं? जब कभी भी मैं आपके प्रवचन के बाद आपको छोड़कर जाता हूं, तो जो कुछ आपको सुनते हुए मुझे सुंदर और प्रभावी लगा था, वह मुझे शीघ्र ही निराशा करने लगता है। क्योंकि मैं स्वयं को उन आदर्शों को जी पाने में, जो आपके अपने प्रवचन में सामने रखे थे अपने को असमर्थ पाता हूं।

तुम किसके बारे में बात कर रहे हो? आदर्शों के? ठीक यही वह चीज़ है जो मैं नष्ट किये चले जाता हूं। मैं तुम्हारे सामने कोई भी आदर्श नहीं रख रहा हूं। मैं तुम्हें भविष्य के बारे में कोई कल्पनाएं और कथाएं नहीं दे रहा हूं, मैं तुम्हें किसी भी प्रकार का कोई भी भविष्य गारंटी नहीं दे रहा हूं। क्योंकि मैं जानता हूं कि भविष्य वर्तमान को स्थगित करने की एक तरकीब है। यह तुम्हें स्वयं से बचाने की एक तरकीब है, यह स्वयं से पलायन कर जाने का एक तरीका है। कामना करना एक धोखा है और आदर्श, कामनाएं सृजित करते हैं। मैं तुम्हें कोई भी ‘चाहिए’ अथवा कोई भी ‘नहीं चाहिए’ नहीं दे रहा हूं। मैं न तो तुम्हें कुछ विधायक दे रहा हूं और न नकारात्मक। मैं सामान्य रूप से तुमसे सभी आदर्शों को छोड़ने और होने के लिए कह रहा हूं।

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