अजनबी तुम अपने से लगते हो-(कविता)
तड़प है परंतु दर्द कहां है उसमें,
वो तो एक एहसास है, पकड़ कहां है उसमें।
वो दूर है मगर दूर कहां है हमसें।
तार बिंधे है विरह के, राग कहां है इनमें।
पीर ने घेरा हमको, दर्द कहां है दिलमें
कुछ लोग कितने अनजान से होते है
परंतु कितने करीब होते है आपने
मानों वो मैं हूं और वो उसकी परछाई
कैसे एक याद की बदली घिर आई
मानों अभी वा पास आकर बैठ जाऐगा
और मिलेगे ह्रदय से ह्रदय के तार
तब बहेगे धार-धार आंसू के झरने Continue reading “अजनबी तुम अपने से लगते हो-(कविता)-मनसा मोहनी “