अजनबी तुम अपने से लगते हो-(कविता)-मनसा मोहनी  

अजनबी तुम अपने से लगते हो-(कविता)  

तड़प है परंतु दर्द कहां है उसमें,

वो तो एक एहसास है, पकड़ कहां है उसमें।

वो दूर है मगर दूर कहां है हमसें।

तार बिंधे है विरह के, राग कहां है इनमें।

पीर ने घेरा हमको, दर्द कहां है दिलमें

कुछ लोग कितने अनजान से होते है

परंतु कितने करीब होते है आपने

मानों वो मैं हूं और वो उसकी परछाई

कैसे एक याद की बदली घिर आई

मानों अभी वा पास आकर बैठ जाऐगा

और मिलेगे ह्रदय से ह्रदय के तार

तब बहेगे धार-धार आंसू के झरने Continue reading “अजनबी तुम अपने से लगते हो-(कविता)-मनसा मोहनी  “

33-सांसों का एतबार (कविता)

सांसों का एतबार –(मेरी कविता)

कितनी सपनों को था देखा हमने,

कितने तारे थे मेरे दामन में।।

कितनी रुसवाईयां सही थी हमने,

कितने बादों पर एतबार किया था।

सांसों के कुछ हारों को गुथा हमने।

रातों के तारों के छुपने से पहले,

कितने आंसुओं की पिरोती थी माला!

कितनी सिसकियाँ दबी घुटी सी,

सिसक-सिसक कर कुछ कहना चाहा,

सपनों को पलकों के जाने से पहले।

कितनी सीने में दबी थी आहें।

कोई तो जाकर उनसे कह दो।

एक मुकस्वर कोई दबा घुटा सा।

दूर खड़ा अब सिसक रहा है।

विरानी इन अंधी गलियों में

कोई तड़पता खड़ा  इधर है।

उनके आने का इन्‍तजार बहुत है।

अपनी सांसों का एतबार कहां है।

–स्‍वामी आनंद प्रसाद मनसा

32-धूल का कण-(कविता)

धूल का कण-(कविता)-मनसा दसघरा

धुल का कण सरक कर परों के तले,

उसका धीरता से यूं सिमटना, सुकड़ना और नाचना।

खिल-खिला कर करना उसका यूं अट्टहास,

क्यों नहीं आता उसको अहं से उठना।

क्‍या नहीं जानता वह अपनी ताकत को?

या भूल गया है अपने बल के प्रदर्शन को,

पर शायद नहीं चाहता वो ये सब करना

वो कैसा खिलखिलाता सा सुकोमल दिखता है Continue reading “32-धूल का कण-(कविता)”

31-ओशो की मधुशाला-(कविता)

ओशो की मधुशाला-(कविता)-मनसा दसघरा

प्रियतम  तेरे सपनों की, मधुशाला मैंने देखी है।

होश बढ़ता इक-इक प्‍याला, ऐसी हाला  देखी है।।

मदिरालय जाने बालों नें,

भ्रम न जाने क्‍यों पाला।

हम तो पहुंच गए मंजिल पे,

पीछे रह गई मधुशाला।। Continue reading “31-ओशो की मधुशाला-(कविता)”

30-जाग भरी उन्मादी-(कविता)

ये तमस भरी मदहोशी, ये जाग भरी उन्मादी।

जब पास बसे हो दोनों, क्यों पीलू ना आधी-आधी।
नयनों में तु बसता जाता, जग लागे हंसता-हंसता।

जब ह्रदय में तु आता, जीवन उत्सव बन जाता।

मन-मंदिर का ये चौका, क्यों लागे रीता-रीता। Continue reading “30-जाग भरी उन्मादी-(कविता)”

29-एक चौहराया-बटवारे का-(कविता)

चौराहे पर जलती थी एक लाल बत्‍ती

कैसे हंसी खिलखिलाती सी दिखती थी

कैसा दिखाता था वहाँ सब कुछ

आदर्श और सौम्य माहोल

जैसे कायदे कानून वहां

अपनी शान का प्रदर्शन कर रहे हो

न वहां अराजकता, न अफरातफरी Continue reading “29-एक चौहराया-बटवारे का-(कविता)”

28-नहीं बनना भगवान-(कविता)

था वो पथ एक दम वीरान,

और यही थी उसकी पहचान

बस अभी-अभी गुजरा है,

कोई पथिक एक अंजान

देखा था मैंने भी उसको

एक धुधंली छाया था

किसी धुंधली झिलमिहल कि तरह

वह ले रहा था नित नये रूप

नहीं बन रहे थे पथ पर उस पथिक के पद चाप। Continue reading “28-नहीं बनना भगवान-(कविता)”

27-हठीला-गर्बीले केकटस-(कविता)

कल जब मैंने पूछा

उस हठीले गर्बीले

ज़हरीले केकटस से

तुम कैसे करते हो निर्णय

फूल और कांटों के बनाने में

कैसे कर पाते हो

एक अदभुत संतुलन और विभेद Continue reading “27-हठीला-गर्बीले केकटस-(कविता)”

26-पूछ सकते हो क्‍यों हूं मैं यहां?-(कविता)

पूछ सकते हो तुम मुझसे

क्‍यों हूं ‘’मैं’’ यहां?

पर है ये प्रश्न,

एक अति-प्रश्न,

अपने में एक अर्थ हीनता लिए

क्‍या हो सकता है कुछ अर्थ जीवन का?

फिर वो जीवन का प्रश्न नहीं रहा

जीवन है एक होने का नाम

एक पूर्ण-सौंदर्य लिए हुए अपने में Continue reading “26-पूछ सकते हो क्‍यों हूं मैं यहां?-(कविता)”

25-नेता कि अमृत वाणी-(कविता)

नेता कि ललकार

भयंकर गरजन करके

सीने को तान अहं से कहता है….

हरा सके जो चुनाव में, विजय तभी तू जान।

भूखे रहकर चार दिन,  मचा दिया घमासान।।

नेता की फुफकार से जल रही थी घास।

झूठे तोहमत लगा कर तुम करते हो बदनाम। Continue reading “25-नेता कि अमृत वाणी-(कविता)”

24-कोई रात अंधेरी आने दो-(कविता)

तुम कहते थे कोई रात अंधेरी आने दो।

जग के सपनों को तुम जीवित कर जाओगे।

 

01-है गर्ल घटक, विष कंठों में है  हला-हल।

सूनी आँखों मे जीवन कि न अब हलचल।

चलना ही तो है, अंगारों पर चलता चल।।

बस ये पल अपना, जीवन में न कोई कल।

बदल रहा मन, छलता तुझको है बल-छल।

सूख रहा जीवन का झरना नित-पल-पल।

जो अविरल बहता था उत्‍सव में है कल-कल। Continue reading “24-कोई रात अंधेरी आने दो-(कविता)”

23-पीपल तू अब नहीं बचेगा?-(कविता)

देखना पीपल अब तू नहीं बच सकेगा?

सुकोमल सा था तब ये सब सहा तूने,

तपती दुपहरी का किस साहस से सामना किया,

रिम-झिम बरसतें सावन में

गर्दन तक डूब कर भी तू नहीं डरा।

जिस दिन वो दीवार बन रही थी,

नहीं घुटा तेरा दम उस पर भी Continue reading “23-पीपल तू अब नहीं बचेगा?-(कविता)”

22-लूटने की आस है-(कविता)

टुकड़ा मेरा यूं रूठ कर,  कुछ दूर रह गया।

मुझसे मेरे ऐ दोस्‍त तू रूठ क्‍यों गया।

कहने लगा वो मन मेरा किसी घर की तलाश है।

जीते रहे यूं संग तेरे,   जैसे  की लाश  है।।

ढ़ूँढ़ा जिसे ता उम्र भर फिर भी न मिल सका।

गिर-गिर के उठ गया, वो न अब भी उदास है। Continue reading “22-लूटने की आस है-(कविता)”

21-जब बरसता है तुम्‍हारा माधुर्य-(कविता)

जब बरसता है माधुर्य तुम्‍हारा

छलक़ता है भर-भर प्‍याला मेरा

तब झूम उठता है उपवन का पौर-पौर

गाने लगते है कंठ-कोकिला के कोर-कोर

पर होती है उनमें तेरी ही—एक स्‍वर लहरी?

चाहे वह बादलों की गढ़-गढ़ाहट

उसका भयाक्रांत गर्जन

दूर क्षितिज से गा उठती है

कोई मधुर मेध-मल्‍हार सा Continue reading “21-जब बरसता है तुम्‍हारा माधुर्य-(कविता)”

20- हे अवतारे-अन्‍ना हज़ारे ( कविता )

है अवतारे, अन्‍ना हज़ारे

कितने प्‍यारे, जग से न्‍यारे

आकर हमे जगा रे……….।।

1 भागे भ्रष्‍टाचार आगे-आगे।

लोकपाल बिल ला…रे।।

2 बूझेगा दीपक भ्रष्‍टा चार का।

ऐसी आंधी चला रे……. Continue reading “20- हे अवतारे-अन्‍ना हज़ारे ( कविता )”

19-बीज—(कविता)

एक बीज दबा जब मिट्टी में

इक साध लिए एक आस लिए।

कोई दूर खड़ा एक मेध तुझे

इक उष्णता का एहसास लिए।

01-कल होगी यौवन की वर्षा

फिर प्राणों में होगा संचार।

फूटेगी सुकोमल सी कलियां

फैलेगा तृप्‍ति का संसार। Continue reading “19-बीज—(कविता)”

18-गति हीन शुन्‍य–(कविता)

हे-गति हीन शुन्‍य,

तू ही है,

सब गति का स्‍त्रोत

यहीं है तेरी पूर्णता

जिसका न कोई आदि है

न है कोई अंत

और तू देख सकता है

सबको भिन्‍न-भिन्‍न रूप Continue reading “18-गति हीन शुन्‍य–(कविता)”

17-कौन अँधेरा तुम्‍हें जगाता—कविता

कौन अँधेरा तुम्‍हें जगता।

कौन पपीहा तुम्‍हें बुलाता।।

किन छंदो में तुम्‍हें बाँधता।

किन सप्‍तक में राग बजाता।।

1-कहीं दूर तो है कोई पूर्ण।

नित-नित मुझको जो है लुभाता Continue reading “17-कौन अँधेरा तुम्‍हें जगाता—कविता”

16-भ्रम-चाप–(कविता)

एक निर्जन-वीरान, अंत हीन सुना पथ,

जब मैं तुझ पर चलता हूं

सुनाई देते है पदचाप पीछे से

जैसे कर रहा है मेरा पीछा कोई

या हमसफर है साथ कोई

एक भ्रम-चाप लिए हुए कोई

या ये है मेरा ही भ्रम भाव Continue reading “16-भ्रम-चाप–(कविता)”

15-दूज का चाँद—(कविता)

बैठा है दूज का चाँद आसमान पर

सुबह-सुबह घुटने मोड कर

एक छुई मुई प्रेमिका की तरह

शायद वो कर रह है इंतजार

किसी पूर्णिमा के आने का

परन्‍तु वो कितना पूर्ण लगता है Continue reading “15-दूज का चाँद—(कविता)”

14-कोई गीत उठा है प्राणों में (कविता)

कोई गीत उठा प्राणों में जब,

मैं क्‍यों उसको फिर गा न सका।

कोई टीस उठी इस  ह्रदय में,

क्‍यों तुमको मैं दिखला न सका।।

1–   कोई समिर मधुर जीवन में चली,

फिर नाच उठा आँगन सारा?

देखो जीवन का बोझ लिए,

नित चल-चल कर अब मैं हारा। Continue reading “14-कोई गीत उठा है प्राणों में (कविता)”

13-टूट गया तू —(कविता)

तू बना है क्‍यों आजान,

तू बिछुड़ गया अपनी धूरी से

टूट गया तू अपनी साख से

कैसा कलरव था वो जीवन

उसको तु पहचान।

जो जाना था तुने राग से

भूल गया इस झीने यूग में

तू भी इसके जैसा हो गया है।

तेरी प्रेम-प्रित अब रहीं कहां Continue reading “13-टूट गया तू —(कविता)”

12-रात की खामोशी—(कविता)

ऐ खुबसूरत श्‍याम

तुम क्‍या रात की खामोशी में खोने चली है

मिटाने चलो हो अपने होने को

या तु चली है कुछ नये का

अंकुरण करने के लिए,

पर जरा संभल कर रहना वहां

तुझे मिलेगा मेरा प्रितम, Continue reading “12-रात की खामोशी—(कविता)”

11-उन्माद बना कुछ रहने दो—(कविता)

मत पूछो बहते जीवन का, उन्माद रहेगा कब तक।
आती जाती इन सांसों का, साथ चलेगा कब तक।।
01-बजने दो दिल के तारों से, झंकार छुपे उन रागों को।
जीवन को फिर बुनने दो उसके उलझे टूटे घागो को।
मत पूछो सुने ह्रदय में, आलाप उठेगा कब तक।।

Continue reading “11-उन्माद बना कुछ रहने दो—(कविता)”

10-उजाला—कविता

कब तक खड़ा रहेगा ये उजाला

मेरे द्वारा पर और करता रहेगा

यूं यूगो यूगो तन्‍हा मेरा इंतजार…

पर मैं हूं कि आंखें बंद किये

उलझा हूं किन्‍हीं अंधेरी गलियों में

ढूंढ रहा हूं, उन आस्‍था और विश्‍वासों में

उन वादो ओर सिकवा में

जो कभी के दफ़न हो गये है

नैतिकता और संस्‍कारों के तले

किसी अनबूझी कब्र की लकिरों तले Continue reading “10-उजाला—कविता”

09-लादेन-एक काली अमावस-(कविता)

काल बन कर निगल गई

उस काली परछाई को

हो गई जो समय के गर्त में दफ़न

जो समझता था

अपने को काल का पर्यायवाची

कलंक-कलुषित जीवन

मिटा दिया एक काल ने

फिर एक बार

कि शायद ले सके कोई सुंदर रूप

कोई मां भर दे उस कुरूप चेहरे पर

फिर से एक नया रंग ओर रूप

और खिला सके उसके ह्रदय में भी

प्रेम का कोई नया अंकुर

तपिस कम कर दे उस

धधकते दावाकूल की

और बूझा दे उसकी कुरूप प्‍यास

और काट दे उसके सब कंटक

जो उसने उगा लिये थे

अपने चारो और

वो खिल सके

किसी बगिया का फूल बन कर

भर दे किलकारी

उस सुने आँगन में फिर एक बार

पर काश ये इतना आसान होता

कर्म और प्रकृति को भेदना

कौन मां समा सकेगी

उस काल अग्‍नि को अपने गर्व में

नहीं उसे भटकना ही होगा

अंनत तक

तब तक जब तक वह

प्रायश्चित कि अग्‍नि में न

हो जाये पवित्र……

बनी रहेगी वह अमावस्‍या

काली बन कर काल गर्त में

एक उदित प्रकाश की प्यास

लिए उस स्वणित पूर्णिमा का थिर इंतजार…..

स्‍वामी आनंद प्रसाद ‘’मनसा’’

 

08-प्रधान मंत्री-मनमोहन–(कविता)

कोई पुकारता रहा,

दर्द बहता रहा, मन ये सहता रहा।

रूह रोती रही

पीड़ा पीती रही

चित्कार चीखती रही

वासना सिमटती रही

आहें भरते रहे

दिल को सीते रहे

और एक तुम हो कि….

मौनी बन कर ताकते रहे

न सहला सके जख्‍मों को

ये कैसा साधु भाव है तेरा

सब देखता रहा तमाश दूर खड़ा

एक अपरिचित सा अंजान बनकर

बाँटता रहा….उस मौन की हदे,

अपना ही बना रहा पराया।

क्‍या शरीर के साथ ही

ह्रदय भी पत्‍थर हो गया है तेरा….

देश के प्रधान….मंत्री….मनमोहन

स्‍वामी आनंद प्रसाद मनसा

 

07-न और न छौर—(कविता)

न कोई ओर है न छौर है उसका,

केवल एक गति भर है,

जो एक सम्‍मोहन बन कर छाई है।

हर और जहां-तहां,

चर-अचर, उस बिंदू के छोर तक।

बन कर एक उदासी

जो आभा की तरह चमकती है, Continue reading “07-न और न छौर—(कविता)”

06-तुम हो एक अंधकार—(कविता)

कुछ दीवारें दे रही थी

एक रूप और आकर का भ्रम मुझे

गिरा दिया मैंने उसे एक रात के अंधेरे में

जो एक पकड़ थी मेरे होने की

जो चिपक गई थी

वह किसी कोने में अंहकार बन कर Continue reading “06-तुम हो एक अंधकार—(कविता)”

05-एक प्रेम प्रीत की पाती-(कविता)

बहता जीवन पल-पल उत्‍सव

कल-कल बहता झरना बन।

कुछ मधुर राग किन्‍हीं छंदों में

कानों में आकर कर गुन-गुन।

देखो मेरे तुम उत्‍सव को

नित खेल खेलता अटखेली।

वह नहीं पकड़ता दीवारे

बह नहीं बाँधता बंधन बेडी। Continue reading “05-एक प्रेम प्रीत की पाती-(कविता)”

04-सबसे प्यारे-नयन तुम्हारे—(कविता)

नयन तुम्हारे जग से न्यारे, तुम तो प्रितम सबसे प्यारे।

आस बनी अब घडकन मेरी, कभी तो मिलेगे हमें किनारे।

01-याद तुम्हारी जब-जब आई दामन में खुशीया भर लाई

मैं बेठी थी घाट किनारे, डूब गई तो सम्हल न पाई

तेरी याद में जग को छोडा प्रेम प्रित बन गई रूसावाई

पकड-पकड कर अब हम हारे

छूट गये वो थे जो प्यारे…… Continue reading “04-सबसे प्यारे-नयन तुम्हारे—(कविता)”

03-सजी दूल्हनियां—(कविता)

रात सजी दुल्हनियां जैसी, तारों की ओढ़ चुनरीयां।

मुझे छुपाले खुद में प्रियतम हो गई तो अब सांवलियां।

 

01-चांद निहारे, पपीहा पुकारे,जीवन में कब हो उजियारे।

एक झलक तो देजा प्रितम, क्यों छुप-छुप करे इशारे।

चलत-चलते थक गई अब तो, मिले न कोई किनारे।

थक गई में तो चलते-चलते,मिला नहीं वो किनारे।

जीवन सांसे छलक रही हे, रीतगई रे गागरियां।

मुझे छूपाले…… Continue reading “03-सजी दूल्हनियां—(कविता)”

02-सुखे पत्ते कहीं खडकते-(कविता)

सुखे पत्ते कहीं खडकते, तेरी याद में यहां तडपते।

बगियां में उपवन का मौसम लेकिन हम तो कांटे चुनते।।

01—अषाढ बितगया बिता सावन, प्रितम को ले आ मनभावन।

झुंगुर बोले दिल को छोले, पीडा से भर गया है दामन। Continue reading “02-सुखे पत्ते कहीं खडकते-(कविता)”

01-आजा हो आजा मेरे प्यार-(कविता)

आजा हो आजा मेरे प्यार, आजा…

सांसो का क्या ऐतबार आजा, आजा हो….आजा मेरे प्यार।

1-जलती चीता पर जीवन बैठा।

कोई नहीं अब सब जग रूठा।

वादा करके तु हो गया झूठा। Continue reading “01-आजा हो आजा मेरे प्यार-(कविता)”

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