चौथा प्रवचन-आदर्शें को मत थोपें
मेरे प्रिय आत्मन्!
तीन मुक्ति-सूत्रों के संबंध में सुबह मैंने आपसे बात की। सत्य को जानने की दिशा में, या आनंद की उपलब्धि में, या स्वतंत्रता की खोज में मनुष्य का चित्त सीखे हुए ज्ञान से, अनुकरण से और वृत्तियों के प्रति मूर्च्छा से मुक्त होना चाहिए, यह मैंने कहा।
इस संबंध में बहुत से प्रश्न आए हैं। उन पर हम विचार करेंगे।
बहुत से मित्रों ने पूछा है कि यदि शास्त्रों पर श्रद्धा न हो, महापुरुषों पर विश्वास न हो, तब तो हम भटक जाएंगे, फिर तो कैसे ज्ञान उपलब्ध होगा? Continue reading “आनंद की खोज-(प्रवचन-04)”