आनंद की खोज-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन-आदर्शें को मत थोपें 

मेरे प्रिय आत्मन्!

तीन मुक्ति-सूत्रों के संबंध में सुबह मैंने आपसे बात की। सत्य को जानने की दिशा में, या आनंद की उपलब्धि में, या स्वतंत्रता की खोज में मनुष्य का चित्त सीखे हुए ज्ञान से, अनुकरण से और वृत्तियों के प्रति मूर्च्छा से मुक्त होना चाहिए, यह मैंने कहा।

इस संबंध में बहुत से प्रश्न आए हैं। उन पर हम विचार करेंगे।

बहुत से मित्रों ने पूछा है कि यदि शास्त्रों पर श्रद्धा न हो, महापुरुषों पर विश्वास न हो, तब तो हम भटक जाएंगे, फिर तो कैसे ज्ञान उपलब्ध होगा? Continue reading “आनंद की खोज-(प्रवचन-04)”

आनंद की खोज-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन

विश्वास-सबसे बड़ा बंधन

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक संध्या एक पहाड़ी सराय में एक नया अतिथि आकर ठहरा। सूरज ढलने को था, पहाड़ उदास और अंधेरे में छिपने को तैयार हो गए थे। पक्षी अपने निबिड़ में वापस लौट आए थे। तभी उस पहाड़ी सराय में वह नया अतिथि पहुंचा। सराय में पहुंचते ही उसे एक बड़ी मार्मिक और दुख भरी आवाज सुनाई पड़ी। पता नहीं कौन चिल्ला रहा था? पहाड़ की सारी घाटियां उस आवाज से भर गई थी। कोई बहुत जोर से चिल्ला रहा था–स्वतंत्रता, स्वतंत्रता, स्वतंत्रता।

वह अतिथि सोचता हुआ आया, किन प्राणों से यह आवाज उठ रही है? कौन प्यासा है स्वतंत्रता को? कौन गुलामी के बंधनों को तोड़ देना चाहता है? कौन सी आत्मा यह पुकार कर रही? प्रार्थना कर रही? Continue reading “आनंद की खोज-(प्रवचन-03)”

आनंद की खोज-(प्रवचन-02) 

दूसरा प्रवचन

जीवंत शांति शक्तिशाली है

मनुष्य के मन पर शब्दों का भार है; और शब्दों का भार ही उसकी मानसिक गुलामी भी है। और जब तक शब्दों की दीवालों को तोड़ने में कोई समर्थ न हो, तब तक वह सत्य को भी न जान सकेगा, न आनंद को, न आत्मा को। इस संबंध में थोड़ी सी बातें कल मैंने आपसे कहीं।

सत्य की खोज में–और सत्य की खोज ही जीवन की खोज है–स्वतंत्रता सबसे पहली शर्त है। जिसका मन गुलाम है, वह और कहीं भला पहुंच जाए, परमात्मा तक पहुंचने की उसकी कोई संभावना नहीं है। जिन्होंने अपने चित्त को सारे बंधनों से स्वतंत्र किया है, केवल वे ही आत्माएं स्वयं को, सत्य को और सर्वात्मा को जानने में समर्थ हो पाती हैं।

ये थोड़ी सी बातें कल मैंने आपसे कहीं। उस संबंध में बहुत से प्रश्न मेरे पास आए हैं। Continue reading “आनंद की खोज-(प्रवचन-02) “

आनंद की खोज-(प्रवचन-01) 

आनंद की खोज-(विविध)

पहला प्रवचन-शब्दों से मुक्त हो जाए

एक छोटी सी घटना से मैं आज की चर्चा शुरू करूंगा।

एक गांव में एक अपरिचित फकीर का आगमन हुआ था। उस गांव के लोगों ने शुक्रवार के दिन, जो उनके धर्म का दिन था, उस फकीर को मस्जिद में बोलने के लिए आमंत्रित किया। वह फकीर बड़ी खुशी से राजी हो गया। लेकिन मस्जिद में जाने के बाद, जहां कि गांव के बहुत से लोग इकट्ठा हुए थे, उस फकीर ने मंच पर बैठ कर कहाः मेरे मित्रो, मैं जो बोलने को हूं, जिस संबंध में मैं बोलने वाला हूं, क्या तुम्हें पता है वह क्या है? बहुत से लोगों ने एक साथ कहाः नहीं, हमें कुछ भी पता नहीं है। वह फकीर मंच से नीचे उतर आया और उसने कहाः ऐसे अज्ञानियों के बीच बोलना मैं पसंद न करूंगा, जो कुछ भी नहीं जानते। जो कुछ भी नहीं जानते हैं उस विषय के संबंध में जिस पर मुझे बोलना है, उनके साथ कहां से बात शुरू की जाए? इसलिए मैं बात शुरू ही नहीं करूंगा। वह उतरा और वापस चला गया। Continue reading “आनंद की खोज-(प्रवचन-01) “

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