दसवां-प्रवचन-(नाचो–क्रांति है नाच)
एक गुरु अपने शिष्य के कमरे के बाहर रोज आता है और एक ईंट को पत्थर पर घिसता है। शिष्य वहीं ध्यान करता है और ईंट के घिसने से, रोज-रोज घिसने से नाराज होता है। एक रोज तो उसे बहुत गुस्सा आया कि यह और कोई कर रहा हो तो ठीक है, यह मेरा गुरु ही आकर मुझे परेशान करता है, ईंट घिसता है। आंख खोली और कहाः आप यह क्या पागलपन करते हैं? क्यों मुझे परेशान कर रहे हैं? उसने कहाः तुझे मैं परेशान नहीं कर रहा। मैं ईंट को घिस-घिस कर आईना बनाना चाहता हूं। वह हंसने लगा, उसने कहाः तुम पागल हो गए हो। ईंट को कितना ही घिसो, आईना कभी नहीं हो सकती। तो उसके गुरु ने कहाः अगर मैं मेहनत करूंगा तो भी नहीं बनेगी क्या? मैं पूरी मेहनत करूंगा, मैं जीवन भर घिसता रहूंगा, फिर तो बनेगा?
जीवन भर भी घिसोगे, तो भी नहीं बनेगा। ईंट घिसने से आईना नहीं बनती। उसके गुरु ने कहाः तू भी बहुत घिस रहा है, लेकिन मेरी दृष्टि में ईंट घिस रहा है और आईना बनाना चाहता है। और सोचता है, मेहनत करूंगा तो हो जाएगा। Continue reading “अमृत द्वार-(प्रवचन-10)”