आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-07)

आठ पहर यूं झूमते-प्रवचन-सातवां 

एक फकीर के पास तीन युवक आए और उन्होंने कहा कि हम अपने को जानना चाहते हैं। उस फकीर ने कहा कि इसके पहले कि तुम अपने को जानने की यात्रा पर निकलो, एक छोटा सा काम कर लाओ। उसने एक-एक कबूतर उन तीनों युवकों को दे दिया और कहा, ऐसी जगह में जाकर कबूतर की गर्दन मरोड़ डालना जहां कोई देखने वाला न हो।

पहला युवक रास्ते पर गया–दोपहर थी, रास्ता सुनसान था, लोग अपने घरों में सोये थे–देखा कोई भी नहीं है, गर्दन मरोड़ कर, भीतर आकर गुरु के सामने रख दिया। कोई भी नहीं था, उसने कहा, रास्ता सुनसान है, लोग घरों में सोये हैं, किसी ने देखा नहीं, कोई देखने वाला नहीं था। Continue reading “आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-07)”

आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-06)

आठ पहर यूं झूमते-(प्रवचन-छठवां)

फूल किसी से पूछते नहीं–कैसे खिलें। तारे किसी से पूछते नहीं–कैसे जलें। आदमी को पूछना पड़ता है कि कैसे वह वही हो जाए, जो होने को पैदा हुआ है। सहज तो होना चाहिए परमात्मा में होना। लेकिन आदमी कुछ अदभुत है, जिसमें होना चाहिए उससे चूक जाता है और जहां नहीं होना चाहिए वहां हो जाता है। कहीं कोई भूल है। और भूल भी बहुत सीधी है: आदमी होने को स्वतंत्र है, इसलिए भटकने को भी स्वतंत्र है। शायद यह भी हो सकता है कि बिना भटके पता ही न चले। बिना भटके पता ही न चले कि क्या है हमारे भीतर। शायद भटकना भी मनुष्य की प्रौढ़ता का हिस्सा हो।

मैं एक छोटी सी कहानी से समझाऊं। फिर हम समाधि के प्रयोग के लिए बैठें। Continue reading “आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-06)”

आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-05)

आठ पहर यूं झूमते-प्रवचन-पांचवां 

मेरे प्रिय आत्मन्!
बोलते समय, बोलने के पहले मुझे यह सोच उठता है हमेशा, किसान सोच लेता है कि जिस जमीन पर हम बीज फेंक रहे हैं उस जमीन पर बीज अंकुरित होंगे या नहीं? बोलने के पहले मुझे भी लगता है, जिनसे कह रहा हूं वे सुन भी सकेंगे या नहीं? उनके हृदय तक बात पहुंचेगी या नहीं पहुंचेगी? उनके भीतर कोई बीज अंकुरित हो सकेगा या नहीं हो सकेगा? और जब इस तरह सोचता हूं तो बहुत निराशा मालूम होती है। निराशा इसलिए मालूम होती है कि विचार केवल उनके हृदय में बीज बन पाते हैं जिनके पास प्यास हो और केवल उनके हृदय सुनने में समर्थ हो पाते हैं जिनके भीतर गहरी अभीप्सा हो। अन्यथा हम सुनते हुए मालूम होते हैं, लेकिन सुन नहीं पाते। अन्यथा हमारे हृदय पर विचार जाते हुए मालूम पड़ते हैं, लेकिन पहुंच नहीं पाते और उनमें कभी अंकुरण नहीं होता है।
प्यास के बिना कोई भी सुनना संभव नहीं है। इसलिए जरूरी नहीं है कि जितने लोग बैठे हैं वे सभी सुनेंगे। यह भी जरूरी नहीं है कि उन तक मेरी बात पहुंचेगी। लेकिन इस आशा में कि शायद किसी के पास पहुंच जाएगी, तो भी ठीक है। अगर एक के पास भी बात पहुंच जाए तो परिणाम, तो परिणाम होगा, निश्चित होगा। Continue reading “आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-05)”

आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-04)

आठ पहर यूं झूमते-प्रवचन-चौथा 

मेरे प्रिय आत्मन्!
मैं सोचता था किस संबंध में आपसे बात करूं, यह स्मरण आया कि आपके संबंध में ही थोड़ी सी बातें कर लेना उपयोग का होगा। परमात्मा के संबंध में बहुत बातें हमने सुनी हैं और आत्मा के संबंध में भी बहुत विचार जाने हैं। लेकिन उनका कोई भी मूल्य नहीं है। अगर हम उस स्थिति को न समझ पाएं जिसमें कि हम मौजूदा होते हैं। आज जैसी मनुष्य की दशा है, जैसी जड़ता और जैसा मरा हुआ आज मनुष्य हो गया है, ऐसे मनुष्य का कोई संबंध परमात्मा से या आत्मा से नहीं हो सकता है।
परमात्मा से संबंध की पहली शर्त है, प्राथमिक सीढ़ी है कि हम अपने भीतर से सारी जड़ता को दूर कर दें। और जो-जो तत्व हमें जड़ बनाते हों, उनसे मुक्त हो जाएं। और जो-जो अनुभूतियां हमें ज्यादा चैतन्य बनाती हों, उनके करीब पहुंच जाएं। Continue reading “आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-04)”

आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-03)

आठ पहर यूं झूमते-प्रवचन-तीसरा 

मैं अत्यंत आनंदित हूं और अनुगृहीत भी, सत्य के संबंध में थोड़ी सी बातें आप सुनने को उत्सुक हैं। यह मुझे आनंदपूर्ण होगा कि अपने हृदय की थोड़ी सी बातें आपसे कहूं। बहुत कम लोग हैं जो सुनने को राजी हैं और बहुत कम लोग हैं जो देखने को उत्सुक हैं। इसलिए जब कोई सुनने को उत्सुक मिल जाए और कोई देखने को तैयार हो, तो स्वाभाविक है कि आनंद अनुभव हो। हमारे पास आंखें हैं, और हमारे पास कान भी हैं, लेकिन जैसा मैंने कहा कि बहुत कम लोग तैयार हैं कि वे देखें और बहुत कम लोग तैयार हैं कि वे सुनें। यही वजह है कि हम आंखों के रहते हुए अंधों की भांति जीते हैं और हृदय के रहते हुए भी परमात्मा को अनुभव नहीं कर पाते। मनुष्य को जितनी शक्तियां उपलब्ध हुई हैं, उसके भीतर जितनी संभावनाएं हैं अनुभूति की, उनमें से न के बराबर ही विकसित हो पाती हैं। Continue reading “आठो पहर यूं झूमिये-(प्रवचन-03)”

आठो पहर यूं झूमिये-प्रवचन-02

आठ पहर यूं झूमते-प्रवचन-दूसरा

मेरे प्रिय आत्मन्!
मैं अत्यंत आनंदित हूं, लायंस इंटरनेशल के इस सम्मेलन में कि शांति के संबंध में थोड़ी सी बातें आपसे कर सकूंगा। इसके पहले कि मैं अपने विचार आपके सामने रखूं, एक छोटी सी घटना मुझे स्मरण आती है, उसे से मैं शुरू करूंगा।
मनुष्य-जाति के अत्यंत प्राथमिक क्षणों की बात है। अदम और ईव को स्वर्ग के बगीचे से बाहर निकाला जा रहा था। दरवाजे से अपमानित होकर निकलते हुए अदम ने ईव से कहा, तुम बड़े संकट से गुजर रहे हैं। यह पहली बात थी, जो दो मनुष्यों के बीच संसार में हुई, लेकिन पहली बात यह थी कि हम बड़े संकट से गुजरे रहे हैं। और तब से अब तक कोई बीस लाख वर्ष हुए, मनुष्य-जाति और बड़े और बड़े संकटों से गुजरती रही है। यह वचन सदा के लिए सत्य हो गया। ऐसा कोई समय न रहा, जब हम संकट में न रहे हों, और संकट रोज बढ़ते चले गए हैं। एक दिन अदम को स्वर्ग के राज्य से निकाला गया था, धीरे-धीरे हम कब नर्क के राज्य में प्रविष्ट हो गए, उसका भी पता लगाना कठिन है। Continue reading “आठो पहर यूं झूमिये-प्रवचन-02”

आठो पहर यूं झूमिये-प्रवचन-01

आठ पहर यूं झूमते-प्रवचन पहला

मेरे प्रिय आत्मन्!
एक राजकुमार था बचपन से ही सुन रहा था कि पृथ्वी पर एक ऐसा नगर भी है जहां कि सभी लोग धार्मिक हैं। बहुत बार उस धर्म नगर की चर्चा, बहुत बार उस धर्म नगर की प्रशंसा उसके कानों में पड़ी थी। जब वह युवा हुआ और राजगद्दी का मालिक बना तो सबसे पहला काम उसने यही किया कि कुछ मित्रों को लेकर, यह उस धर्म नगरी की खोज में निकल पड़ा। उसकी बड़ी आकांक्षा थी, उस नगर को देख लेने की, जहां कि सभी लोग धार्मिक हों। बड़ा असंभव मालूम पड़ता था यह। बहुत दिन की खोज, बहुत दिन की यात्रा के बाद, वह एक नगर में पहुंचा, जो पड़ा अनूठा था। नगर में प्रवेश करते ही उसे दिखाई पड़े ऐसे लोग, जिन्हें देख कर वह चकित हो गया और उसे विश्वास भी न आया कि ऐसे लोग भी कहीं हो सकते हैं। Continue reading “आठो पहर यूं झूमिये-प्रवचन-01”

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