योग: नये आयाम-(प्रवचन-06)

छठवां प्रवचन-संन्यास की दिशा

मेरे प्रिय आत्मन्!

थोड़े से सवाल हैं, उनके संबंध में कुछ बातें समझ लेनी उपयोगी हैं।

एक मित्र ने पूछा है कि कुछ साधक कुंडलिनी साधना का पूर्व से ही प्रयोग कर रहे हैं। उनको इस प्रयोग से बहुत गति मिल रही है। तो वे इसको आगे जारी रखें या न रखें? उन्हें कोई हानि तो नहीं होगी?

 

हानि का कोई सवाल नहीं है। यदि पहले से कुछ जारी रखा है और इससे गति मिल रही है, तो तीव्र गति से जारी रखें। लाभ ही होगा। परमात्मा के मार्ग पर ऐसे भी हानि नहीं है।

 

दूसरे मित्र ने पूछा है–और और भी दो-तीन मित्रों ने वही बात पूछी है–कि यह रोना, चिल्लाना, हंसना, नाचना कब तक जारी रहेगा? Continue reading “योग: नये आयाम-(प्रवचन-06)”

योग: नये आयाम-(प्रवचन-05)

पांचवां प्रवचन-सरल सत्य

मेरे प्रिय आत्मन्!

विगत वर्ष दुनिया के बायोलाजिस्टों की, जीवशास्त्रियों की एक कांफ्रेंस में ब्रिटिश बायोलाजिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष बादकुन ने एक वक्तव्य दिया था। उस वक्तव्य से ही मैं आज की थोड़ी सी बात शुरू करना चाहता हूं। उन्होंने उस वक्तव्य में बड़ी महत्वपूर्ण बात कही, जो एक वैज्ञानिक के मुंह से बड़ी अदभुत बात है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन का विकास किन्हीं नई चीजों का संवर्धन नहीं है, नथिंग न्यू एडेड, वरन कुछ पुरानी बाधाओं का गिर जाना है, ओल्ड हिंडरेंसेस गॉन। मनुष्य के विकास में कुछ जुड़ा नहीं है, मनुष्य के भीतर जो छिपा है… कोई भी चीज प्रकट होती है, तो सिर्फ बीच की बाधाएं भर अलग होती हैं। पशुओं में और मनुष्य में विचार करें, तो मनुष्य के भीतर पशुओं से कुछ ज्यादा नहीं है, बल्कि कुछ कम है। पशु के ऊपर जो बाधाएं हैं, वे मनुष्य से गिर गई हैं; और पशु के भीतर जो छिपा है, वह मनुष्य में प्रकट हो गया है। Continue reading “योग: नये आयाम-(प्रवचन-05)”

योग: नये आयाम-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन-परम जीवन का सूत्र

मेरे प्रिय आत्मन्!

योग का आठवां सूत्र। सातवें सूत्र मैं मैंने आपसे कहा, चेतन जीवन के दो रूप हैं–स्व चेतन, सेल्फ कांशस और स्व अचेतन, सेल्फ अनकांशस।

आठवां सूत्र हैः स्व चेतना से योग का प्रारंभ होता है और स्व के विसर्जन से अंत। स्व चेतन होना मार्ग है, स्वयं से मुक्त हो जाना मंजिल है। स्वयं के प्रति होश से भरना साधना है और अंततः होश ही रह जाए, स्वयं खो जाए, यह सिद्धि है।

स्वयं को जो नहीं जानते, वे तो पिछड़े ही हुए हैं; जो स्वयं पर ही अटक जाते हैं, वे भी पिछड़ जाते हैं। जैसे सीढ़ी पर चढ़ कर कोई अगर सीढ़ी पर ही रुक जाए, तो चढ़ना व्यर्थ हो जाता है। सीढ़ी चढ़नी भी पड़ती है और छोड़नी भी पड़ती है। मार्ग पर चल कर कोई मार्ग पर ही रुक जाए, तो भी मंजिल पर नहीं पहुंच पाता। मार्ग पर चलना भी पड़ता है और मार्ग छोड़ना भी पड़ता है, तब मंजिल पर पहुंचता है। मार्ग मंजिल तक ले जा सकता है, अगर मार्ग को छोड़ने की तैयारी हो। और मार्ग ही मंजिल में बाधा बन जाएगा, अगर पकड़ लेने का आग्रह हो। Continue reading “योग: नये आयाम-(प्रवचन-04)”

योग: नये आयाम-(प्रवचन-03) 

तीसरा प्रवचन–प्रेम का केंद्र

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक सूत्र मैंने आपसे कहाः जीवन ऊर्जा है और ऊर्जा के दो आयाम हैं–अस्तित्व और अनस्तित्व। और फिर दूसरे सूत्र में कहा कि अस्तित्व के भी दो आयाम हैं–अचेतन और चेतन। सातवें सूत्र में चेतन के भी दो आयाम हैं–स्व चेतन, सेल्फ कांशस और स्व अचेतन, सेल्फ अनकांशस। ऐसी चेतना जिसे पता है अपने होने का और ऐसी चेतना जिसे पता नहीं है अपने होने का।

जीवन को यदि हम एक विराट वृक्ष की तरह समझें, तो जीवन-ऊर्जा एक है–वृक्ष की पींड़। फिर दो शाखाएं टूट जाती हैं–अस्तित्व और अनस्तित्व की, एक्झिस्टेंस और नॉन-एक्झिस्टेंस की। अनस्तित्व को हमने छोड़ दिया, उसकी बात नहीं की, क्योंकि उसका योग से कोई संबंध नहीं है। फिर अस्तित्व की शाखा भी दो हिस्सों में टूट जाती है–चेतन और अचेतन। अचेतन की शाखा को हमने अभी चर्चा के बाहर छोड़ दिया, उससे भी योग का कोई संबंध नहीं है। फिर चेतन की शाखा भी दो हिस्सों में टूट जाती है–स्व चेतन और स्व अचेतन। Continue reading “योग: नये आयाम-(प्रवचन-03) “

योग: नये आयाम-(प्रवचन-02) 

दूसरा प्रवचन-घर–मंदिर

योग के संबंध में चार सूत्रों की बात मैंने कल की। आज पांचवें सूत्र पर आपसे बात करना चाहूंगा।

योग का पांचवां सूत्र हैः जो अणु में है, वह विराट में भी है। जो क्षुद्र में है, वह विराट में भी है। जो सूक्ष्म से सूक्ष्म में है, वह बड़े से बड़े में भी है। जो बूंद में है, वही सागर में है।

इस सूत्र को सदा से योग ने घोषणा की थी, लेकिन विज्ञान ने अभी-अभी इसको भी समर्थन दिया है। सोचा भी नहीं था कि अणु के भीतर इतनी ऊर्जा, इतनी शक्ति मिल सकेगी, अत्यल्प के भीतर इतना छिपा होगा, ना-कुछ के भीतर सब कुछ का विस्फोट हो सकेगा। अणु के विभाजन ने योग की इस अंतर्दृष्टि को वैज्ञानिक सिद्ध कर दिया है। परमाणु तो दिखाई भी नहीं पड़ता आंख से। लेकिन न दिखाई पड़ने वाले परमाणु में, अदृश्य में विराट शक्ति का संग्रह है। वह विस्फोट हो सकता है। व्यक्ति के भीतर आत्मा का अणु तो दिखाई नहीं पड़ता है, लेकिन उसमें विराट ऊर्जा छिपी है और परमात्मा का विस्फोट हो सकता है। योग की घोषणा कि क्षुद्रतम में विराटतम मौजूद है, कण-कण में परमात्मा मौजूद है, यही अर्थ रखती है। Continue reading “योग: नये आयाम-(प्रवचन-02) “

योग: नये आयाम-(प्रवचन-01) 

योग नये आयाम-(योग)

पहला प्रवचन

जगत–एक परिवार

योग एक विज्ञान है, कोई शास्त्र नहीं है। योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है।

लेकिन चाहे जीसस, चाहे मोहम्मद, चाहे पतंजलि, चाहे बुद्ध, चाहे महावीर, कोई भी व्यक्ति जो सत्य को उपलब्ध हुआ है, बिना योग से गुजरे हुए उपलब्ध नहीं होता। योग के अतिरिक्त जीवन के परम सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय नहीं है। जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है।

इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है। नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। Continue reading “योग: नये आयाम-(प्रवचन-01) “

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