छठवां प्रवचन-संन्यास की दिशा
मेरे प्रिय आत्मन्!
थोड़े से सवाल हैं, उनके संबंध में कुछ बातें समझ लेनी उपयोगी हैं।
एक मित्र ने पूछा है कि कुछ साधक कुंडलिनी साधना का पूर्व से ही प्रयोग कर रहे हैं। उनको इस प्रयोग से बहुत गति मिल रही है। तो वे इसको आगे जारी रखें या न रखें? उन्हें कोई हानि तो नहीं होगी?
हानि का कोई सवाल नहीं है। यदि पहले से कुछ जारी रखा है और इससे गति मिल रही है, तो तीव्र गति से जारी रखें। लाभ ही होगा। परमात्मा के मार्ग पर ऐसे भी हानि नहीं है।
दूसरे मित्र ने पूछा है–और और भी दो-तीन मित्रों ने वही बात पूछी है–कि यह रोना, चिल्लाना, हंसना, नाचना कब तक जारी रहेगा? Continue reading “योग: नये आयाम-(प्रवचन-06)”